नीर का तीर : होली व रंगपंचमी पर फाइटर से होगा ‘दवा-दारू’ का छिड़काव, बाद में इसके निःशुल्क प्याऊ भी खुलेंगे !
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नीरज कुमार शुक्ला
रतलाम । मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात को चमकाने वाले नरेंद्र मोदी ने पीएम बनते ही देशभर के शहर और गांवों को साफ-सुथरा रखने के लिए स्वच्छता अभियान छेड़ दिया। उन्होंने गंदगी साफ करने का आह्वान किया था लेकिन कुछ लोगों ने इस ‘सफाई’ को अलग ही अर्थों में ले लिया। कई तो सफाई करने और देने के मामले में ‘गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड’ बनाने में ही जुट गए हैं। सफाई भी ऐसी जो व्यवस्थाओं, जिम्मेदारियों, समझ और पद की प्रतिष्ठा का ही ‘कचरा कर’ रही है। आइये, जानते हैं रतलाम के ऐसे ही कुछ सफाई वीरों के बारे में...।
सफाई वीरों में सबसे ऊपर हैं रतलाम शहर की एक संस्था के मुखिया, नाम तो आप जानते ही हैं। कुछ महीनों पूर्व इनकी ‘भक्ति’ अखबारों की सुर्खियां भी बनीं थी। राजनीतिक गलियारों में लोग इनकी तुलना भी एक राष्ट्रीय पार्टी के प्रमुख किरदार जिन्हें लोग ‘पप्पू’ पुकारते हैं, से करने लगे हैं। वजह, इनकी जुबान कब-कहां फिसल जाए, कह नहीं सकते। इसके लिए वरिष्ठ अकेले में और कई दफा सार्वजनिक तौर पर भी इनकी ‘चेतना’ जागृत करने का प्रयास कर चुके हैं लेकिन सारी कोशिशें उल्टे घड़े पर पानी डालने वाली ही साबित हुईं। सुना है कि इन्हें शहर में कुत्ते फूटी आंख नहीं सुहाते और इनका बस चले तो ये कुत्तों को गोली ही मार दें। ठीक है, आप भक्त हों या भगवान, हमें क्या। आप जो करें सो कम है। आपको नाचने-गाने का शौक है तो भी हमें क्या। हमने या किसी और ने कब अपने शौक पालने से रोका है, लेकिन इतना तो कहना बनता ही है, कि- पद की गरिमा भी तो कोई चीज है। जरूरी तो नहीं कि हर बात का ही करचा कर दो।
उधर, राजधानी में ‘उमा’ और ‘शिव’ में ‘मय’ के लिए ठनी रार के कारण हुए मंथन में नई शराब नीति बाहर आई तो इधर, दारू ‘दवा’ बन गई। दारू के दवा बनते ही पियक्कड़ों की बांछें खिल गईं, उन्हें नगर सरकार के बजट का बेसब्री से इंतजार है। सभी को उम्मीद है कि इस बार के बजट में सार्वजनिक प्याऊ की तरह शहर में जगह-जगह ‘दवा-दारू’ के निःशुल्क काउंटर खोले जाने का ऐलान जरूर होगा। उम्मीद तो यह भी की जा रही है कि जिस तरह कोरोना काल में सेनेटाइजर का छिड़काव किया गया था, उसी तरह होली और रंगपंचमी पर नगर निगम के फायर फाइटर से शराब का छिड़काव भी होगा।
बाकी बातें छोड़ो... आप तो केवल ‘कचरा कर’ दो
जिम्मेदार तो पहले ही स्वच्छता अभियान का कचरा कर चुके हैं। स्वच्छता में श्रेष्ठता हासिल करने के नाम पर कागजों पर इतनी सफाई हुई कि नगर सरकार का बजट तो साफ हो गया, गलियां और सड़कें (कुछ विशेष सड़कों को छोड़कर) गंदी कि गंदी ही रहीं। कई कॉलोनियों और मुहल्लों में तो किसी जिम्मेदार ने झांका तक नहीं। चुनाव में वोट के लिए जनता के आगे गिड़गिड़ाने वाले भी गधे के सिर से सींघ की तरह नदारद हैं। जिन्हें जनता ने चुनाव कर नगर सरकार का हिस्सा बनाया वे या तो सेल्फिश हो गए या फिर सिस्टम के मकड़जाल में उलझ कर हेल्पलेस हो गए। इनमें भी सेल्फिश की तादाद ज्यादा है। इसलिए खुद जनता को ही अपनी बात और समस्या बताने के लिए जिम्मेदारों तक जाना पड़ रहा है। यह जनता का दुर्भाग्य ही है कि जिम्मेदार उन्हें समाधान के बजाय समस्या बताकर चलता कर रहे हैं। हाल ही में एक जिम्मेदार ने लोगों से कह दिया कि- बाकी बातें छोड़ो, आप तो केवल ‘कचरा कर’ दो।
नकल की पर अक्ल अपनों को रेवड़ी बांटने में लगाई
पद का कचरा करने के मामले में कुछ संगठन और उनके नेता भी कम नहीं हैं। बानगी एक राष्ट्रीय पार्टी की जिसे लोग ‘डूबता जहाज’ मानने लगे हैं। हर दूसरे-चौथे दिन कोई न कोई इस जहाज से कूदता नजर आता है और ‘वे कभी उसका हिस्सा थे’, यह कहने तक से कतराते / डरते हैं। कहते हैं कि ‘नकल में अक्ल’ की भी जरूरत होती है लेकिन राजनीति में इस पर अमल हो, जरूरी नहीं। उक्त राष्ट्रीय पार्टी में यह बात देखने को मिली जिसमें हाल ही में एक पद सृजित हुआ, संगठन मंत्री का। रतलाम शहर में यह पद पार्टी के ऐसे योद्धा को नवाजा गया है जो पार्षद जैसे छोटे से चुनाव में अपनी पत्नी तक को नहीं जिता पाया। ऐसी नियुक्ति का विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव पर क्या असर होगा, यह सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। नेतृत्व के दृष्टिहीन होने में कोई बुराई नहीं लेकिन हर जगह ‘अपनों’ को ही ‘रेवड़ी’ बांटना समझदारी नहीं है।
…इन्होंने तो विकास यात्रा का ही कचरा कर दिया
शहर लेकर गांव तक ‘सबका साथ - सबका विकास’ का नारा गूंज रहा है। सरकारी खर्च पर यात्राओं के नाम पर राजनीतिक विकास दौड़ लगा रहा है। यह दौड़ रतलाम शहर में भी हुई। मंच सजे, ढोल बजे, कस्में हुईं और वादे भी हुए। कुछ इच्छा से शामिल हुए, कुछ अनिच्छा से। इच्छा से शामिल हुए नेताओं ने विकास की बात की, विजन भी बताया जबकि अनिच्छा से आए नेता या तो नींद निकालते रहे या ऊंघते रहे। एक आयोजन में आरडीए अध्यक्ष के एक दावेदार पूरे समय उबासी ही लेते रही। इसी तरह खुद को रतलाम शहर का अगला विधायक मान बैठे सत्ताधारी दल के जिले के तीसरे नंबर के पदाधिकारी ऊंघते रहे। वहीं दूसरी ओर जिले के पिपलौदा विकासखंड में विकास यात्रा के एक मंच पर वहीं के एक स्थानीय नेता ने अपनी ही पार्टी के जनप्रतिनिधि के खिलाफ अनाप-शनाप बोल कर सार गुड़ गोबर कर दिया।