एक देश एक चुनाव : सृजन भारत के संयोजक अनिल झालानी की 8 साल की मुहिम रंग लाई, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को जिम्मेदारी देने से लगी पुष्टि की मुहर

भारत गौरव अभियान (अब सृजन भारत) के संयोजक अनिल झालानी की एक साथ अधिकतम चुनाव की 8 साल की मुहिम अब जाकर रंग लाई।

एक देश एक चुनाव : सृजन भारत के संयोजक अनिल झालानी की 8 साल की मुहिम रंग लाई, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को जिम्मेदारी देने से लगी पुष्टि की मुहर
एक देश एक चुनाव।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । देश में राजनैतिक और प्रशासनिक अस्थिरता और बड़े आर्थिक नुकसान की प्रमुख वजह लगातार चुनाव होते रहना है। केंद्र सरकार द्वारा ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ (one nation one election) के लिए समिति गठित करना इसी समस्या के समाधान की दिशा में बढ़ाया गया महत्वपूर्ण कदम है। इसने भारत गौरव अभियन (Bharat Gaurav Abhiyan) जो अब सृजन भारत (Srijan Bharat Campaign) है, के संयोजक अनिल झालानी (Anil Jhalani) की लंबी मुहिम की सार्थकता भी साबित कर दी है। समिति का अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) को बनाया जाना इसकी पुष्टि करता है।

समस्या बताना ही काफी नहीं है, इसका हल क्या है यह बताना ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस मामले में भारत गौरव अभियन  (अब सृजन भारत) के संयोजक अनिल झालानी मिसाल हैं। राजनैतिक, प्रशासनिक और सामाजिक सुधार के लिए समर्पित झालानी समस्या ही नहीं बताते, उसके उचित समाधान भी सुझाते हैं। ‘एक देश एक चुनाव’ ऐसा ही समाधान है जिसकी पैरवी वे 8 वर्ष से कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने मुहिम शुरू कर केंद्र सरकार, तत्कालीन राष्ट्रपति, विधि विभाग और भारत निर्वाचन आयोग से निरंतर पत्राचार किया। केंद्र सरकार द्वारा एक देश एक चुनाव के लिए गठित समिति इसकी परिणिति मानी जा सकती है।

जुलाई 2016 में पहली बार सुझाया विकल्प

अनिल झालानी द्वारा 28 जुलाई 2016 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) को पत्र लिखकर एक साथ चुनाव का विकल्प सुझाया था। इसकी प्रतिलिपि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और मुख्य निर्वाचन आयुक्त को भी भेजी। इसमें पहली बार उन्होंने रोज-रोज चुनाव से होने वाली समस्याओं का जिक्र करते हुए छोटे से संशोधन की आवश्कता जताई थी। झालानी ने बताया था कि जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुसार किसी भी रिक्त सीट या विधानसभा या लोकसभा का उप चुनाव 6 माह में कराया जाना आवश्यक है। यदि इसमें संशोधन कर इस अवधि को एक वर्ष या नौ माह कर दिया जाए तो कोई भी विघटित विधानसभा, लोकसभा उपचुनाव और रिक्त विधानसभाओं के चुनाव कुछ महीनों टाले जा सकते हैं। ऐसे में बहुत से चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं।

यहीं नहीं रुकी मुहिम

झालानी की मुहिम यहीं नहीं रुकी, उन्होंने 2 दिसंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विधि एवं न्याय एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद (Ravi Shankar Prasad) को पृथक से पत्र लिखे। प्रतिलिपि तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार, मुख्य निर्वाचन आयुक्त को भी भेजी। 18 अगस्त 2017 को मुख्य निर्वाचन आयुक्त, 30 अप्रैल 2018 को विधि आयोग के अध्यक्ष, 26 अगस्त 2019 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) और मुख्य निर्वाचन आयुक्त को पत्र भेजे। इसमें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दोहराए ‘एक देश – एक चुनाव’ के संकल्प का स्मरण कराते हुए हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र के साथ दिल्ली विधानसभा के चुनाव कराने का सुझाव दिया। 17 जुलाई 2020 को तत्कालीन राष्ट्रपति कोविंद को लिखे पत्र में उक्त राज्यों के साथ ही अक्टूबर-नवंबर 2020 में प्रस्तावित बिहार और अप्रैल 2021 में होने वाले बंगाल व असम के चुनाव का जिक्र कर जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन की आवश्यकता जताई। 27 दिसंबर 2020 और 17 अप्रैल 2023 को विधि आयोग के अध्यक्ष सहित सभी को पुनः स्मरण पत्र भेजे गए।

मुहिम को मिली तवज्जो, शुरू हो गई वैधानिक प्रक्रिया

झालानी की मुहिम को सरकार द्वारा गंभीरता से लिए जाने की अधिकारिक पुष्टि संबंधित विभागों और कार्यालयों द्वारा उन्हें दिए प्रत्युत्तर से होती है। 2 दिसंबर 2016 के पत्र के संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय से सेक्शन ऑफिसर अलोक सुमन ने झालानी को पत्र लिखा। इसमें बताया कि झालानी का सुझाव आवश्यक कार्रवाई के लिए संबंधित विभाग को भेज दिया है। इसके बाद 13 जनवरी 2021 और 4 फरवरी 2021 को विधि आयोग ने भी झालानी के सुझावों के परीक्षण और कार्रवाई जारी होने जाने की जानकारी पत्र भेजकर दी।

यह संयोग तो नहीं हो सकता

पिछले दिनों केंद्र सरकार ने एक देश एक चुनाव को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति गठित कर दी है। कोविंद को यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने से ही साफ है कि एक देश एक चुनाव को लेकर राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने विशेष प्रयास किए। इस दौरान अनिल झालानी द्वारा उन्हें लिखे पत्रों में दिए सुझावों का जिक्र नहीं हुआ हो, यह संभव नहीं है। झालानी का तत्कालीन राष्ट्रपति कोविंद को इस बारे में लगातार पत्र लिखना और उन्हें ही समिति का अध्यक्ष बनाना महज इत्तिफाक नहीं हो सकता।