नीर का तीर : तीन घटनाएं, संगठनात्मक चुनाव का दौर और सत्ताधारी दल के जिला स्तरीय मुखिया के ‘वजूद’ पर उठते सवाल ! तीर और भी हैं...
सत्ता और संगठन में समन्वय और तारतम्य की कमी ने सत्ताधारी दल के जिला प्रमुख की क्षमता और वजूद पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कभी उन पर मेहरबान रहे माननीय भी उन्हें तवज्जो नहीं दे रह और नया गुट भी पनप रहा है जो जिला प्रमुख की कुर्सी हिलने का संकेत दे रहे हैं।
नीरज कुमार शुक्ला
केंद्र से लेकर नगर की सरकार तक काबिज राजनीतिक दल के रतलाम जिले के मुखिया के ‘वजूद’ पर ‘अपने’ ही सवाल उठा रहे हैं। इसकी वजह बीते कुछ समय में जिले में घटित कुछ घटनाएं हैं। इनमें इस राजनीतिक दल से जुड़े लोगों पर ही खाकी वाले अमले का गुस्सा उतरना है जिससे जिले के मुखिया की सत्ता और संगठन पर पकड़ को लेकर चर्चा छिड़ गई है। संगठनात्मक चुनाव के दौर में यह ‘अविश्वास’ आगे भी उनके मौजूदा कुर्सी पर बने रहने पर संदेह उत्पन्न कर रहा है।
‘अपनी सरकार’ हो तो सत्ताधारी दल और उसके सिपहसालारों पर जिम्मेदारी के साथ ही ‘अपनों’ की अपेक्षाएं भी बढ़ती हैं। संगठन को भी ऐसे ही कंधों की तलाश रहती है जो सत्ता और सरकार के बीच समन्वय बैठाकर ‘अपनों’ की अपेक्षाओं पर खरा उतर सकें। संगठन ने इसी उम्मीद पर ऐसे कंधे पर जिले की जिम्मेदारी डाली थी परंतु अब उसकी क्षमताओं पर संगठन के साथ ही उसके स्थानीय सिपाहियों को भी शंका होने लगी है। इसकी वजह तीन घटनाएं हैं। पहली घटना जिले के आदिवासी बहुल इलाके बाजना की है जहां धर्म परिवर्तन का मामला उजागर करवाने वालों के विरुद्ध ही केस दर्ज हो गया। दूसरा मामला जिला मुख्यालय पर स्टेशन रोड थाने पर संगठन से जुड़े पदाधिकारियों पर उतरी एक एसआई की खीज है जिसके लिए उन्हें लाइन हाजिर करना पड़ा। इसी की परिणिति अगले दिन गणेश प्रतिमा के जुलूस पर पथराव का विरोध करने उमड़े गणेश भक्तों पर लाठियों के रूप में कहर बनकर टूटी। आरोप है कि इस क्रूरता ने एक युवक की जान ले ली। नतीजतन खाकी वालों और संगठन को आमने-सामने होना पड़ा।
इन मामलों ने ऐसी सुर्खियां बटोरीं कि प्रदेश स्तरीय सिपहसालारों को नियंत्रण की लगाम अपने हाथों में लेनी पड़ी। यहां तक कि विरोध स्वरूप निकले आंदोलन की कमान भी एक हिंदू संगठन को सौंपनी पड़ी थी। अगर जिले के मुखिया के स्तर पर ही बात संभाल ली गई होती तो यह नौबत नहीं आती। जिले के मुखिया का युवाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले एक अति महात्वाकांक्षी युवा तथा विकास प्राधिकरण की कुर्सी की ओर आस लगाए एक होटल व्यवसायी के साथ मिलकर नया गुट बना लेना भी वरिष्ठों और कनिष्ठों को नागवार गुजर रहा है। इसलिए आगामी दिनों में संगठनामक चुनाव के दौरान यदि जिले की कुर्सी को लेकर कोई नया निर्णय हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए और वह भी तब जबकि उम्र का बंधन भी हट जाए।
यहां अविश्वास या मोहभंग
सत्ताधारी दल के जिले के मुखिया की आस्था को लेकर पहले भी चर्चाएं होती रही हैं। उनकी आस्था पहले एक शक्ति केंद्र तक ही निर्भर रहती थी लेकिन जब राजनीतिक परिदृश्य बदला तो आस्था भी बदल गई। हालांकि संगठन की जिले की सबसे बड़ी कुर्सी मिलते ही आस्था मध्यस्थ की भूमिका में आ गई। शक्ति के पुराने और नए केंद्र के बीच समन्वय बैठाने के प्रयासों को कुछ हद तक सफलता मिलती नजर भी आई लेकिन हाल के एक घटनाक्रम ने इस पर भी संशय उत्पन्न हो गया। जिन माननीय पर पहले उनकी आस्था थी वही जब शहर की सड़कों की बदहाली को लेकर नगर सरकार के साबह से मिलने पहुंचे तो संगठन के जिला प्रमुख को न ले जाकर अपने अन्य अस्थावानों को ले गए। अब सवाल यह उठता है कि माननीय का पुराने आस्थावान रहे जिला स्तरीय मुखिया से मोह भंग हो गया है या फिर उनकी आस्था पर यकीन नहीं रहा।
खाकी की इस कृपा को क्या कहें
कप्तान बदलते ही खाकी की सक्रियता नजर आने लगी है। कम्युनिटी पुलिसिंग को मजबूत बनाने के प्रयासों के चलते एक साथ कई मोर्चों पर काम शुरू हो गया है। थानों में धूल खा रहे रोजनामचों में दफन आरोपी और अपराधी अचानक ही खाकी वालों की आंखों में खटने लगे हैं और सीखचों के पीछे भी पहुंचने लगे हैं। यह बात दीगर है कि खाकी वालों के हाथ कुछ रसूखदारों के गिरेबान तक पहुंचने में संकोच कर रहे हैं। इनमें जमीनों की जादूगरी करने वाले और ब्याज के तौर पर लोगों का खून चूसने वाले शामिल हैं। दूसरे की जमीन भी डकार जाने वाले जादूगर तो खाकी वालों को ही नजर नहीं आ रहे वह भी उनकी सार्वजनिक मौजूदगी के प्रमाण देने के बाद भी। आखिर यह कृपा क्यों और कहां से आ रही है?
पार्किंग तो तय कर दी पर शुल्क कौन तय करेगा ?
शक्ति की आराधना के पर्व के चलते शहर के कालिकामाता मंदिर परिसर में मेला भी शुरू हो गया है और धार्मिक अनुष्ठान भी। इसलिए यहां श्रद्धालुओं की उपस्थिति भी बढ़ने लगी है। श्रद्धालुओं को आवागमन में परेशानी न हो और शहर का यातायात भी बाधित न हो इसकी व्यवस्था उजली वर्दी (सफेद शर्ट - नीली पैंट) वाले विभाग ने तय कर दी है। मेला परिसर के आसपास वाहनों की पार्किंग के स्थल चिह्नित कर दिए गए हैं और वहां वाहन रखने की अनिवार्यता भी तय की गई है। इसका लोग स्वागत कर रहे हैं लेकिन यह सवाल भी कर रहे हैं कि पार्किंग की जगह तो तय कर दी गई है लेकिन पार्किंग का शुल्क निर्धारित दर से ज्यादा नहीं वसूला जाएगा, यह कौन तय करेगा। अगर ऐसा होता तो शिकायत कहां और किससे करनी होगी।