'शुक्र है' : नेताजी के चमचे की डायरी- प्रो. अज़हर हाशमी
एसीएन टाइम्स द्वारा शुरू की गई व्यंग्यों की शृंखला ‘शुक्र है’ में इस शुक्रवार प्रस्तुत है नेताजी के चमचे की सोच और समझ से जुड़ा यह व्यंग्य।
नेताओं से ज्यादा चमचे महत्वपूर्ण होते हैं और वे नेता की हर बात को फॉलो करते हैं। नेता अगर चाय है तो चमचे केतली और यह केतली हमेशा चाय से ज्यादा गर्म होती है। ऐसे ही चमचों से जुड़ी एक बात एसीएन टाइम्स की साप्ताहिक व्यंग्य शृंखला 'शुक्र है...' में पेश है। पढ़िए और आनंद लीजिए, पसंद आए तो इसे औरों से साझा जरूर कीजिए।
---*---*---
अज़हर हाशमी
प्रिय पाठकों । आजकल के नेता का चमचा अगर डायरी लिखेगा तो यह अलीबाबा चालीस चोर के किस्से से बढ़कर होगा। कल्पना कीजिए कि नेताजी का चमचा डायरी लिख रहा है। उसकी डायरी के कुछ अंश प्रस्तुत हैं।
आज नेताजी ने जल्दी गुडनाइट कर दिया। सामान्यतः नेताजी इतनी जल्दी गुडनाइट नहीं करते हैं। चलो अच्छा हुआ। मुझे आज रात 10 बजे ही डायरी लिखने का मौका मिल गया। वरना वह नेता रात एक बजे तक मुझसे 'चिलम' भरवाता रहता। ठीक है, दिन में इसके मुँह पर मुझ सहित इसके सारे चमचे (सर) - (सर) कहते रहते हैं लेकिन वास्तव में है तो यह 'सिरफिरा' ही। इतनी जल्दी गुडनाइट करने की वजह नेता जी ने यह बताई कि उन्होंने बहुत अधिक 'माल' खा लिया। इससे उन्हें 'बदहजमी' हो गई है। खट्टी डकारों से परेशान हैं और गेस्टिक टूबल भी है, इसलिए बेडरूम में गैस्टिक ट्रबल दूर कर रहे हैं।
आज भी नेताजी ने महफिल जल्दी खत्म कर दी। उस दिन महफिल जल्दी खत्म करने की बात तो समझ में आई थी कि उन्होंने खबोड़े बच्चे की तरह माल ज्यादा खा लिया था। परन्तु आज बात समझ में नहीं आई। नेताजी के अन्य चमचे से जब बहुत कुरेदकर पूछा तो उसने मुझसे किसी से न कहने का वादा लेते हुए बताया कि 'पार्टी' ने रात 12 बजे का समय लिया है। पार्टी के साथ 'सूटकेस' भी होगा। सूटकेस में क्या होगा? यह अंदर की बात है।
आज तो नेताजी ने छक के दारू पी। वैसे भी नेताजी को खाने-पीने का शौक है। नेताजी को खाने में 'रिश्वत' व पीने में 'दारू' पसंद है। नेताजी को रिश्वत उतनी ही अच्छी लगती है, जितनी 'ड्रग एडिक्ट' को ड्रग्स। नेताजी को दारू उतनी ही प्रिय है 'जितनी विजय माल्या को कैलेंडर गली'। वैसे नेताजी दारू पीने में सुबह व रात के साथ सम्मान व्यवहार करते हैं। उनका मत है कि दारू पीने में समय के साथ समदर्शी होना पड़ेगा। उनकी मान्यता है कि सभी समय भगवान के हैं। इसलिए रात को पीना और सुबह को नहीं पीना, वास्तव में सुबह का अपमान है। इसलिए सुबह और शाम का अंतर नहीं करना चाहिए। पक्षपात से बचने के लिये हर समय पीना चाहिए। परन्तु आज उन्होंने सुबह का 'कोटा' भी रात को समाप्त कर लिया। पूछने पर बताया कि कल 'मद्यपान की बुराइयों' पर स्कूल में भाषण देना है। इसलिए रात में ही एक बोतल को निपटा दिया।
आज नेता जी ने मुझे विश्वसनीय समझकर 'आत्मकल्याण' का तरीका बताया। आत्मकल्याण का जो अर्थ नेताजी ने समझाया उससे मेरे 'ज्ञानचक्षु' खुल गए। नेताजी ने बताया कि आत्मकल्याण के बिना लोक कल्याण संभव नहीं है। मेरे निवेदन करने पर उन्होंने स्पष्ट किया कि आत्मकल्याण का अर्थ है कि- सबसे पहले अपना पेट भरो। क्योंकि 'भूखे भजन न होए गोपाला'। इसलिए पहले स्वयं 'माल' सूतो, फिर जग का कल्याण कूतो। जो स्वयं भूखा है वह दूसरों को क्या खिलाएगा? इसलिए पहले अपनी भूख मिटाओ, यह आत्मकल्याण की पहली सीढ़ी है। अर्थात् आंशिक आत्मकल्याण है। फिर सगे-संबंधियों, चाटुकारों अर्थात् चमचों को खिलाओ। जो अपने लोग हैं, वे अपनी आत्मा के अंश हैं। इसलिए यह आत्मकल्याण की दूसरी सीढ़ी है। अर्थात् पूर्ण आत्म कल्याण है। नेताजी से ज्ञात हुआ कि उपहार लेना 'वेजीटेरियन फूड' है और घोटाला 'करना' नानवेजीटेरियन फूड' है। नेता को आत्मकल्याण के लिये वेजीटेरियन एवं नॉन वेजीटेरियन दोनों तरह का फूड खाना चाहिए।
नेता जी ने बताया कि आत्मकल्याण के बाद ही लोक कल्याण की ओर बढ़ा जा सकता है। इसके पक्ष में नेता जी ने कहावत सुनाई कि पहले अपने घर में दीया जलाओ फिर दूसरी जगह। नेता जी से आज यह कोडवर्ड समझ आया कि 'दीया जलाने' का मतलब माल बनाना है।
आज नेताजी के ड्राइंग रूम में भीड़ थी। मैं समझ रहा था कि मैं ही उनका विश्वसनीय चमचा हूँ, परन्तु आज अन्य चमचे नजर आए। उन्होंने बताया कि कुछ 'बिचौलिए' नेताजी का दीया जलाने को तैयार हैं। नेताजी ने फौरन ट्रांसफर ट्रिक तैयार करके कैश काउंटर खोल दिया। यहाँ यह भी बात समझ आई कि इस कैश काउंटर का रिकॉर्ड नहीं होता। इसे बिना हिसाब का दीया जलाना कहते हैं।
प्रो. अज़हर हाशमी
(व्यंग्य प्रोफेसर, साहित्यकार, व्यंग्यकार एवं कवि अज़हर हाशमी के व्यंग्य संग्रह ‘मैं भी खाऊँ तू भी खा’ से साभार)