शुक्र है...! इस 'पाथ' के 'फुट' कहां जाएं?
साप्ताहिक व्यंग्य शृंखला में इस बार प्रस्तुत है फुटपाथ की आत्म का यक्ष प्रश्न इस पाथ के फुट कहां जाएं ?
आशीष दशोत्तर
फुटपाथ तो फुटपाथ होता है। इसमें समझने वाली कोई बात है ही नहीं। जिस 'पाथ' पर आप 'फुट' रख सकें वही ‘फुटपाथ’ होता है। फुटपाथ के होने से इस बात की प्रामाणिकता सिद्ध होती है कि 'फुट' यानी पैर, 'पाथ' यानी ज़मीनी राह पर ही रखे जाते हैं। इसे यूं ही समझ सकते हैं कि ज़मीन पर पैर रखने वाले लोगों का हिस्सा ही फुटपाथ होता है। यह अक्सर सड़क के दोनों सिरों पर होता है जो बहुत छोटा और पूरी सड़क के मुकाबले सबसे कम क्षेत्रफल का होता है। इससे यह बात भी प्रमाणित होती है कि ज़मीन पर पैर रखकर चलने वालों के लिए सबसे कम जगह हुआ करती है। जो लोग ज़मीन पर पैर नहीं रखते उनके लिए ज़मीन का बहुत बड़ा हिस्सा उपलब्ध होता है। जो लोग ज़मीन पर पैर नहीं रखते वे कभी फुटपाथ के बारे में सोचते भी नहीं हैं।
जो लोग फुटपाथ पर होते हैं, उनकी नज़र हमेशा ज़मीन पर पैर न रखने वाले लोगों पर ही होती है। यह सोचते-सोचते ये फुटपाथ से उतरकर सड़क के उस हिस्से में आने की कोशिश करते हैं जहां पैर रखने की उन्हें मनाही होती है। इधर आने की चाह में जैसे ही इनसे फुटपाथ छूटता है, वह कहीं और विलीन हो जाता है। फुटपाथ गायब होकर कहां जाता है आज तक किसी को नहीं पता चला। इस विलीनीकरण की न तो प्रक्रिया दिखती और न ही कोई चिन्ह नज़र आते हैं। देखते ही देखते किसी दिन फुटपाथ अचानक गायब हो जाता है और उस पर पैर रखकर चलने वाले लोग अपने पैर कहां रखें इस चिंता में ही कभी आगे कदम बढ़ा ही नहीं पाते हैं। फुटपाथ पर चलने के लिए अभिशप्त लोगों के अतिरिक्त फुटपाथ बहुत से लोगों का होता है।
असल में देखा जाए तो फुटपाथ अघोषित रूप से उनका ही होता है जो बाकी राह पर काबिज़ होते हैं। यह उस दुकानदार का होता है, जो इस विलीनीकरण का प्रमुख पात्र होते हुए भी सदैव इससे अनजान बना रहता है। यह तो उसकी सदाशयता होती है कि वह इसे फुटपाथ कहलाने देता है। वह फुटपाथ से जितना प्रेम करता है उतना शायद अपने मकान से भी नहीं करता होगा। उसकी नज़रें फुटपाथ पर ही जमी होती हैं। एक न एक दिन वह उस पर अपना प्रभुत्व जमाता है, तभी उसकी आत्मा को शांति मिलती है।
फुटपाथ से इतना प्रेम आपके शहर में नहीं दिखाई देगा। अपने इधर तो कई दुकानदार तो फुटपाथ को अपनी सुविधानुसार बना लेते हैं। यह सड़क पर सबसे अलग दिखता है। आसपास से ऊंचा। यह फुटपाथ पर अपने आधिपत्य की शुरुआत होती है। धीरे - धीरे यह फुटपाथ दुकान का आमुख हो जाया करता है।
आप आश्चर्य करेंगे कि फुटपाथ फुट को महरूम करने के कृत्य पर अपना सरकारी अमला कुछ क्यों नहीं करता है? अब सरकारी अमला करे भी तो क्या करे? क्या-क्या हटाए और कहां-कहां हटाए? महीनों से जो गाड़ियां फुटपाथ पर खड़ी हुई दिखती हैं, उन्हें हटाए? या फिर फुटपाथ पर अपनी दुकान बढ़ा चुके लोगों को हटाए? इस पचड़े में न पड़ते हुए अमला कुछ नहीं हटाता है।
अपने शहर की तो यह ख़ासियत है कि यहां फुटपाथ का भी सौदा होता है। दुकानदार अपनी दुकान के आगे के फुटपाथ को किराए से देता है। वहां खड़े होने वाले छोटे व्यापारी से बाकायदा पैसे वसूलता है। क्या कहा? इसकी जानकारी सरकारी अमले को नहीं है? अरे जनाब! सरकारी अमला सब कुछ जानता है, मगर फुटपाथ पर 'फुट' रखने से वह भी तो घबराता है।
अपने शहर को यूं ही सबसे अव्वल नहीं कहा जाता। यहां की हर बात कमाल होती है। हर काम बेमिसाल होता है और हर मिसाल ऐसी होती है जिसे सभी को स्वीकारना भी पड़ता है और उसे अपनाना भी पड़ता है।
ज़मीन पर पैर रख चलने को मजबूर आज भी अपने फुटपाथ को ढूंढ रहा है। इधर, फुटपाथ के कब्जेधारी उसे अपनी ज़मीन पर पैर नहीं रखने दे रहे हैं। अब आप ही बताइए इस 'पाथ' के 'फुट' कहां जाएं?
12/2, कोमल नगर
बरबड़ रोड, रतलाम - 457001
मो.नं. : 9827084966
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बेशक, यह देश के तमाम शहरों की बड़ी समस्या है लेकिन इसके लिए आप क्या, कोई भी कुछ नहीं कर सकता क्योंकि कुछ करने के लिए हम और आप नहीं, हमारी आत्मा भी तो तैयार होनी चाहिए। यदि फुटपाथ की आत्मा के इस यक्ष प्रश्न को पढ़कर अपने शहर की इस समस्या के लिए आप की आत्मा खुद को दोषी मानते हुए ग्लानि महसूस करने लगे तो, हम माफी चाहते हैं। यकीन जानिए- हमारा उद्देश्य ऐसा करने का कतई नहीं हैं।
एसीएन टाइम्स