श्री शंकराचार्य जयंती पर रचना अभी-अभी ! भारत को 'अद्वैत वेदांत' का दर्शन देने वाले 'आद्य गुरु श्री शंकराचार्य जी' को सूफी कवि 'अज़हर हाशमी' का रचनात्मक प्रणाम
कवि और चिंतक अज़हर हाशमी इन दिनों काफी अस्वस्थ हैं फिर भी उनका सृजन जारी है। यह श्री आदि शंकराचार्य जी के ही आशीर्वाद का चमत्कार है कि अस्वस्थ होते हुए भी उन्होंने अभी अभी पांच दोहे रच कर अद्वैत दर्शन के गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की है।

आदि गुरु शंकराचार्य जी ने अपने ज्ञान से सनातन धर्म के अस्तित्व की रक्षा करने के साथ ही उसकी प्रतिष्ठा को भी अनंतकाल तक बनाए रखने के लिए समाज को अद्वैत वेदांत का दर्शन प्रदान किया। उनके इस दर्शन ने भारत को एकता के सूत्र में पिरोने का मार्ग प्रशस्त किया जो हम भारतीयों और सनातनियों को अपनी गौरवमयी संस्कृति को सहजने के लिए सदैव प्रेरित करता रहेगा। ऐसे गुरु के प्रति ख्यात कवि, लेखक, चिंतक, समालोचक, ज्योतिषी और पूर्व प्राध्यापक द्वारा कुछ पल पूर्व लिखे गए ये दोहे प्रासंगिक हैं, ये उनके प्रति एक रचनाकार का नवसृजन युक्त प्रणाम है।
1
भारत में अद्वैत का, दर्शन जिनके नाम।
उन आदि गुरु शंकर को, श्रद्धा सहित प्रणाम।।
2
केरल से कश्मीर तक, इनका पुण्य प्रताप।
ओंकारेश्वर दीक्षा, जिन पर यह शुचि छाप।।
3
माया और ब्रह्म अलग नहीं हैं, वे हैं एक।
निर्गुण-सगुण उपासना, दोनों सहित विवेक।।
4
चार मठों की स्थापना, आद्य गुरु के नाम।
भारतीय संस्कृति में, पवित्र सनातन धाम।।
5
कहा आदि गुरु ने दिव्य, कृपा का जिस पर हाथ।
मिले उसे मनुष्यत्वम्, महापुरुष का साथ।।
अज़हर हाशमी
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