बड़ा सवाल ? क्या सड़क पर रहने वाले पशु हमारे नहीं
आज सड़क पर रहने वाले पशुओं के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। ऐसे में जरूरी है कि हम उनके संरक्षण के लिए सोचें। युवा पत्रकार शिमान निगम का यह आलेख भी इसकी पुष्टि करता है।
शिमोन निगम
लोग कहते हैं कि कुत्ता भौंक रहा है कहीं लपक ना जाए, इसे पकड़वा दो। गाय-बैल घर के बाहर सड़क पर गोबर कर रही हैं, इसे भगाया जाए। बिल्ली दीवार पर चढ़कर चिल्ला रही है, इसे मार कर भगाया जाए, ये अपशकुन है। पर क्या यही लोग यह सोचते हैं कि हमने कभी इस कुत्ते को पत्थर या डंडे से फेंक कर मारा था जो यह हमें अनजान समझकर भौंक रहा है। और भोंकना तो उसकी भाषा है। क्या हम इसे रोटी या बिस्किट खिला कर दोस्ती नहीं कर सकते ? क्या हम भूखे गाय-बैल को रोटी देकर सड़क किनारे में नहीं हटा सकते ? क्या यह बिल्ली बिचारी भूखी-प्यासी नहीं होगी ? इतनी बदतर हालत हमने इन पशुओं की क्यों कर रखी है, क्योंकि यह सड़क पर रहते हैं इसीलिए ? इसमें इनकी क्या गलती ? हमने ही तो उनके घर उजाड़ रखे हैं। यह तो हमारे पहले से अपना अस्तित्व रखते हैं या उस एरिया में रहते हैं जहां हम इनके बाद में आए हैं और अपना घर बनाया है।
आवारा पशु को बचाने की जरूरत क्यों ?
अच्छा कहा, कि- एक जानवर है, जिसे हम बुलाना पसंद करते हैं- चार पैरों वाला, निडर और बिल्कुल शानदार ! चाहे वे कहीं भी रहें - एक घर में या सड़क पर, जानवर सच्चे प्यार, अपूरणीय विश्वास और बिना शर्त वफादारी का प्रतिनिधित्व करते हैं। विशेष रूप से गली के कुत्ते, बिल्ली, गाय आदि पशु और पक्षी। इन सभी का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद, भारत में सड़क पर रहने वाले जानवरों, विशेष रूप से कुत्तों को अज्ञानियों द्वारा और इन निर्दोष जानवरों के अधिकारों के बारे में सटीक जानकारी की कमी वाले लोगों द्वारा इन्हें एक 'खतरा' माना जाता है। वे शायद कभी नहीं समझ पाएंगे कि आप सड़क पर रहने वाले कुत्तों को क्यों खिला रहे हैं ? शायद इसलिए कि वे यह नहीं समझते कि एक 'इंसान' में जो चीज मानवता को जिंदा रखती है वह अक्सर 'कुत्ता' होता है। हमारे आवारा कुत्ते बिना किसी शर्त के हमारे घरों और गलियों की रखवाली करते हैं। वे हमारे साथ बिताए कुछ पलों के लिए हमारी चिंताओं को दूर कर देते हैं, और सबसे बढ़कर, वे जीवन में छोटी-छोटी चीजों के लिए आभारी होने का शुद्ध आनंद सिखाते हैं। फिर उन्हें अपने होने के कारण नुकसान क्यों उठाना चाहिए- निडर, मिलनसार और स्वतंत्र ! अधिक से अधिक लोगों को जागरूक कर इनके विरुद्ध बढ़ते अपराधों पर रोक लगनी चाहिए !
आवारा पशुओं का महत्व
भारत में प्रत्येक जानवर का अपना महत्व है, विशेष रूप से श्वान (कुत्तों) का। कई वैदिक छंदों में श्वानों को शिव के भेरू के रूप में संदर्भित किया गया है और हिंदू पौराणिक कथाओं में इसका गहरा अर्थ है। सिक्किम और उत्तरी बंगाल के कुछ हिस्सों में पूजे जाने के बाद से, कुत्ते कालभैरव जैसे देवताओं के वाहक हैं। उन्हें स्वर्ग के साथ-साथ नर्क के द्वारों का रक्षक भी माना जाता है। कई मौकों पर मौत की रस्मों के दौरान कुत्तों को भोजन की पेशकश की जाती है। कुत्तों को इनरवर्ल्ड और पृथ्वी पर मौजूद प्राणियों के बीच एक कड़ी माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार, राहु और शनि ग्रह के नकारात्मक प्रभाव से पीड़ित लोगों को काले कुत्तों को खिलाने से कुछ राहत मिलती है। पूरे वेदों और हिंदू धर्म में विभिन्न जानवरों ने अपनी भूमिका निभाई है या तो देवताओं का प्रतीक बनकर या उनके वाहन के रूप में। 16 श्राद्ध के दिन इन्हीं कुत्तों को मारने वाले लोग इन्हें रोटी देने के लिए जी जान लगा देते हैं। तब कौए का भी महत्व बढ़ जाता है, लेकिन बाकी के 350 दिन का क्या ? फिर ऐसे शुद्ध तलवों को कैसे चोट लग सकती है? हम में से बहुत से लोग सुंदर लग्जरी नस्ल के कुत्ते चाहते हैं, ऐसे में हमारे मूल शुद्ध भारतीय कुत्तों के बारे में कौन सोचेगा, जिन्हें हम सिर्फ 'स्ट्रीट डॉग' या स्ट्रीट एनिमल्स कहते हैं।
फिर ऐसा क्यों नहीं कर सकते
आज भारत में कई पशु कल्याण संगठन, गैर सरकारी संगठन, यहां तक कि लोगों के समूह भी हैं जो बिल्लियों, गाय, भैंस, पक्षियों सहित इन आवारा पशुओं की देखभाल कर रहे हैं। बस हमें उनका समर्थन करना है। हम अपने स्तर पर जागरूकता पैदा करने और अपराधों को रोकने और रिपोर्ट करने में मदद कर सकते हैं यदि उन्हें पथराव, लाठी से पीटना या उन पर तेजाब फेंकना, सड़कों पर छोटे पिल्लों को फेंकना, कठोर ड्राइवरों के द्वारा कुत्तों को मारना जैसे अपराधों के खिलाफ देखा जाए। हम सभी छोटे-छोटे गरीब जानवरों के लिए अपने घरों के बाहर पानी का कटोरा रख सकते हैं, हम स्थानीय कुत्ते व बिल्लियों को खिला सकते हैं और गोद ले सकते हैं। यदि प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन कम से कम एक आवारा पशु को भोजन कराएगा तो सड़क पर कोई भूखा, बेचारा पशु नहीं रहेगा। सोशल मीडिया पर भी हम ऐसे समूहों और लोगों का समर्थन कर सकते हैं।
एक कहानी प्रेरणा वाली
भारत के मध्यप्रदेश में रतलाम राजबाग कॉलोनी निवासी निगम परिवार की कहानी भी प्रेरणा देने वाली है। उन्होंने एक कुत्ते के परिवार को गोद लिया है। वे उनकी पूरी देखभाल करते हैं, खाना पीना, दवाई, बारिश, ठंड में सरंक्षण देना आदि। उन्होंने उसकी पांच पीढ़ियों की सेवा की है पिछले तीन वर्ष में। वे अभी भी परिवार में 10 कुत्तों के साथ जीवित हैं। दुर्भाग्य से दुर्घटनाओं या मानव क्रूरता के कारण दो पीढ़ियों की मृत्यु हो गई। सभी कुत्ते इनके बहुत वफादार हैं। वे इसे बिना किसी स्वार्थ के, अच्छे कारण के लिए करते हैं। वे दयालुता के ऐसे कृत्यों के लिए लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं। कई निवासियों को प्रेरणा भी मिलती है। वे गाय-बैल की सेवा भी कर देते हैं अगर कोई बीमार कॉलोनी या सड़क पर हो तो। वे पशु व प्रकृति प्रेमी हैं, घर में ही डेढ़ सौ से ज़्यादा पौधे की किस्में लगा रखी हैं।
दयालु होने के लिए भी अब आईडी की आवश्यकता है
क्या आप एक सक्रिय एनिमल केअर टेकर व फीडर हैं जिससे आपके कृत्य के बारे में सवाल किया जाता है और कुछ उदार करने के लिए नीचे देखा जाता है ? खैर, वहाँ हम में से बहुत से लोग हैं, और जब आप ऐसे लोगों से लड़ते-झगड़ते थक जाते हैं, जो आवारा जानवरों को खिलाने के पीछे की भावना को नहीं समझते हैं, तो एक आईडी उनके दिमाग को शांत करने में मदद कर सकती है।
भारतीय पशु कल्याण बोर्ड आवारा कुत्तों व पशु को खाना खिलाने वालों के लिए आईडी जारी करता है। ये आईडी एक समर्थन के रूप में कार्य करती हैं और फीडर के कार्यों को 'वैध' होने के रूप में मान्य करती हैं और प्रमाणित करती हैं कि ये काम अवैध नहीं है। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब हमें दयालु होने के लिए भी आईडी की आवश्यकता है ?
सेवा के लिए उठें, असहाय दर्शकों जैसे वीडियो बनाना बंद करें
सड़क पर रहने वाले जानवर 'सामाजिक जिम्मेदारी' कहलाते हैं। वे एक बेहतर समाज में रहने के भागीदारी हैं। जैव विविधता में समृद्ध देश के नागरिक के रूप में, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे जानवर स्वस्थ, सुरक्षित और न्याय के हकदार हैं। उन्हें बिना किसी डर, संकट या दर्द के प्राकृतिक व्यवहार व्यक्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए, और जैसा कि न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा है कि, "हमें उनकी ओर से बोलने की आवश्यकता है"। कभी-कभी, फर्क सिर्फ उन जानवरों के प्रति नि:स्वार्थ होने के बारे में है जो खुद के लिए नहीं बोल सकते। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 9 के तहत आवारा पशुओं को नुकसान पहुंचाने के इरादे से पकड़ना अवैध है। पशु क्रूरता अधिनियम, 1960 की धारा 11 के तहत आवारा कुत्तों को जहर देना गैरकानूनी है। जानवरों के प्रति क्रूरता अधिनियम, 1960 की धारा 428 और 429 के तहत, आप किसी भी एनीमल केअर टेकर या आवारा कुत्ते को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों की रिपोर्ट कर सकते हैं। हमारी सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि फीमेल बिल्ली या कुत्ते को व उनके बच्चों को आप जन्म स्थान से नहीं हटा सकते। हमारे पास नियम और कानून हैं, खास बात यह है कि सिर्फ उनका सख्ती से पालन करना व करवाना है। हालाँकि यह हर दिन और हर नुक्कड़ पर होता है, लेकिन यह हम पर निर्भर है कि हम आवारा पशु की सेवा के लिए उठें और असहाय दर्शकों जैसे वीडियो बनाना बंद करें।
चार पैर वाले दोस्तों के लिए आशा और खुशी लाना जरूरी
जैसा कि हम अपनी दैनिक गतिविधियों से छोटे अंतर कर जानवरों के जीवन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं जिनके साथ हम अपने ग्रह को साझा करते हैं। लेकिन, हमारे जानवरों को हमारी जरूरत है- पहले से कहीं ज्यादा। जानवर हमें हमारे अस्तित्व का सार सिखाते हैं। अभिभावकों को अपने बच्चों को जानवरों के प्रति अच्छा व्यवहार सिखाना चाहिए। वे छोटे होते हैं तभी उनके मन का डर निकालना चाहिए कि इन से दोस्ती करें, बजाय इनसे भगाने के या घृणा करने या पत्थर मारकर उनको और खुद को मन का भय दिलाने में। एक समुदाय के रूप में, जितना संभव हो उतने आवारा पशुओं को भोजन खिलाने के लिए सेवा करें। एक दिन में दो बार का भोजन उनके पेट के लिए काफी पर्याप्त है। इसके अलावा, यदि आप आवारा कुत्तों या पशु के खिलाफ कोई क्रूरता देखते हैं, तो इसकी सूचना अवश्य दें। लोग जितनी अधिक रिपोर्ट दर्ज करते हैं, सरकार पशु क्रूरता के मुद्दे के प्रति उतनी ही जागरूक होती रहेगी। हम मानते हैं कि यह छोटे-छोटे प्रयास हैं जो हमारे घरों और सड़कों की रक्षा करने वाले चार-पैर वाले दोस्तों के लिए आशा और खुशी लाने में एक लंबा रास्ता तय करते हैं और ये जरूरी है।
(शिमोन निगम युवा पत्रकार हैं जो आर्टिस्ट बाय पैशन और जॉर्नलिस्ट बाय प्रोफेशन हैं। सेवियर स्वर्म सोशल वेलफेयर ग्रुप की फाउंडर शिमोन यूट्यूब चैनल की सोशल मीडिया मैनेजर तथा देवांशी इंटरप्राइजेस की प्रबंध संचालक भी हैं।)