संस्कार की स्लेट पर विश्वास का व्याकरण और विवेक की वर्णमाला सिखाता है गुरु, वह संकेत, संदेश, संस्कार, समाधान और सद्ज्ञान का प्रतीक भी है- प्रो. अज़हर हाशमी

विद्यार्थी परिवार ने साहित्यकार, कवि एवं चिंतक प्रो. अज़हर हाशमी का उनके घर जाकर सम्मान किया। इस मौके पर प्रो. हाशमी ने गुरु और शिष्य के संबंधों की व्याख्या की।

संस्कार की स्लेट पर विश्वास का व्याकरण और विवेक की वर्णमाला सिखाता है गुरु, वह संकेत, संदेश, संस्कार, समाधान और सद्ज्ञान का प्रतीक भी है- प्रो. अज़हर हाशमी
गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में प्रो. अज़हर हाशमी का अभिनंदन करते विद्यार्थी परिवार के सदस्य।

महाविद्यालय परिवार ने गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में साहित्यकार, कवि और चिंतक प्रो. हाशमी का उनके घर जाकर किया सम्मान

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । गुरु और शिष्य परंपरा का बहुत महत्व है। गुरु पांच कार्य करता है। वह पांच ‘स’ का प्रतीक है। गुरु संकेत देता है बातों से, संदेश देता है आचरण से। वह संस्कार सिखाता है, समाधान सुझाता है और सद्ज्ञान भी पूरित करता है। कुल मिलाकर कहें तो गुरु संस्कार की स्लेट पर विश्वास का व्याकरण और विवेक की वर्णमाला सिखाता है।

यह बात साहित्यकार, कवि, चिंतक और समालोचक प्रो. अज़हर हाशमी ने कही। वे ‘विद्यार्थी परिवार’ द्वारा गुरु पूर्णमा के उपलक्ष्य में रविवार को उनके निवास पर आयोजित गुरु सम्मान समारोह के दौरान कही। उन्होंने गुरु और शिष्य के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति उस समय ऊंचाइयों को छूने लगता है जब उसके शिष्यों का समर्पण उसके साथ होता है। कहा ये जाता है कि गुरु शिष्य को गढ़ता है लेकिन कभी-कभी गुरु की इमेज को शिष्य गढ़ता है। सबसे बड़ा उदाहरण रामकृष्ण परमहंस हैं। उनकी इमेज को गढ़ा स्वामी विवेकानंद ने।

‘स्वामी विवेकानंद ने रामचंद्र परमहंस पर विश्वास के सेतु का निर्माण किया’ प्रो. हाशमी ने कहा रामकृष्ण परमहंस तो रामकृष्ण परमहंस थे ही लेकिन विवेकानंद ने उनकी छवि को ऐसा गढ़ा कि वे पूरी दुनिया में ख्यात हो गए। संस्था, सत्ता, ज्ञान ईश्वर की जब बात चलती है, कालिकामाता की जब बात चलती है, अध्यात्म की जब बात चलती है, आनंद और अंतर्मन की जब बात चलती है, विचारशीलता और ज्ञानशीलता की जब बात चलती है तब रामचंद्र परमहंस का नाम आता है। ये रामचंद्र परमहंस पर विश्वास के सेतु का जो निर्माण किया वह विवेकानंद ने ही किया। 

शिष्यों ने ऐसी इमेज गढ़ी कि एक देहाती आदमी का नाम कर दिया 

प्रो. हाशमी ने कहा कि अज़हर हाशमी एक देहाती आदमी था, शिष्यों ने इमेज को गढ़ा और यहां से वहां तक जो भी नाम पहुंचाया। इसमें ‘विद्यार्थी परिवार’ की अहम् भूमिका है। परिवार के सभी शिष्य अपने गुरु के पीछे खड़े हैं ताकि गुरु डगमगा नहीं जाएं। यह भी कहते हैं शिष्य डगमगाए तो को गुरु संभालता है। किंतु यह भी सही है कि जब गुरु डगमगाए तो शिष्य संभालते हैं। इसके लिए मैं अपने सभी शिष्यों का आभारी हूं। प्रो. हाशमी ने सभी सदस्यों को आशीष दिया। 

शाल-श्रीफल से किया सम्मान 

इससे पहले ‘विद्यार्थी परिवार’ के सदस्य प्रो. हाशमी के निवास पहुंचे और पुष्पमाला पहनाकर, शॉल ओढ़ाकर तथा श्रीफल भेंटकर सम्मान किया। सभी ने ईश्वर से प्रो. हाशमी की दीर्घायु की कामना करते हुए उनके चरण स्पर्ष कर आशीर्वाद लिया।

इस मौके पर कक्षा 6 में पढ़ने वाले प्रारब्ध ने हाशमी द्वारा रचित कविता ‘जो शख्स तेरे दुख में तेरे साथ खड़ा था, कद उसका फरिश्ते से कहीं ज्यादा बड़ा था…’ स-स्वर सुनाई। 

इन्होंने किया अभिनंदन 

प्रो. हाशमी का अभिनंदन विद्यार्थी परिवार के संयोजक सतीश त्रिपाठी, शिक्षाविद् डॉ. नंदिनी सक्सेना, डॉ. अनिला कंवर, डॉ. प्रवीणा दवेसर, श्वेता नागर, वृतिका त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार विनोद संघवी, कमल यादव, भारत गुप्ता, नीरज कुमार शुक्ला आदि ने किया। सभी ने प्रो. हाशमी से मिले संस्कारों से अपने जीवन में आए बदलाव के साथ शिष्य के जीवन में गुरु का महत्व भी साझा किया।