नीर का तीर : होशियार ! त्योहार आया, सरकारी अमले जागे..., ये सीजन है ‘रबड़ी’ खाने का, PM के कद के बराबर हुआ युवा नेता कद का...
इस बार के 'नीर-का-तीर' में पढ़ें रतलाम में सरकारी अमले के त्योहारी जागरण की वजह, सोने की चमक तले दबे नियमों की कब्र पर खड़ी इमारत की अनदेखी और प्रधानमंत्री के कद से ऊपर उठने की चाहत वाले युवा नेता की महत्वाकांक्षा के बारे में।

रतलाम । होशियार ! होशियार !! होशियार !!! हमारे सारे सरकारी अमले जाग गए हैं, आखिर त्यौहार जो आ गए हैं। खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के जिम्मेदार जाग गए हैं और उन्हें फिर से आवासीय क्षेत्र के गैस गोदाम नजर आने लगे हैं। हर बार की तरह एक बार फिर गैस गोदामों को शहर से बाहर स्थानांतरित करने का फरमान जारी हो चुका है, वरना...। यह ‘वरना’ विभाग के जिम्मेदारों की त्योहारी जरूरतें पूरी करने के लिए काफी है। बाकी विभागों का अमला भी कमर कस चुका है मैदान में उतरने के लिए।
त्योहार आते ही नजर आए गैस गोदाम, अभी तक कहां सो रहे थे श्रीमान्
हर बार त्योहार से पहले गैस गोदाम और पटाखों के गोदामों को लेकर ऐसी चेतावनी जारी होती है और ‘वरना...’ का डर दिखा दिया जाता है। यह बात दीगर है कि त्योहारी जरूरत पूरी होते ही मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। इस बार भी परंपरा अनुसार ऐन त्योहार से पहले जिला आपूर्ति अधिकारी ने हम सब को बताया दिया है कि इंडेन गैस डीलर ललित गैस सर्विस, अल्पा गैस सर्विस और अंशुल गैस सर्विस तथा एचपी गैस डीलर रतलाम गैस सर्विस के गोदाम घनी आबादी वाले इलाकों और कॉलोनियों में स्थित हैं। अधिकारी द्वारा बताया गया है कि कलेक्टर साहब ने सभी गैस गोदाम 10 दिन में शहर से बाहर करने का निर्देश दिया है। अच्छा हुआ विभाग ने हमें बता दिया। अब हमे डरने का एक और कारण मिल गया है। कुछ दिन इससे डरने के बाद हम भी भूल जाएंगे और आबादी वाले इलाकों में स्थित गैस गोदाम या पटाखों के गोदामों के साथ गलबहियां करेंगे, ठीक उसी तरह जिस तरह प्रशासन हर बार चेतावनी देने के बाद भूल जाता है।
सीजन गड़बड़ी छिपाने के लिए रबड़ी मिलने का
अभी तक टारगेट पूरे करने जितनी कार्रवाई करने वाला खाद्य विभाग और नाप-तौल विभाग का अमला भी जाग चुका है। इन विभागों के अधिकारियों-कर्मचारियों को सालभर मोतियाबिंद की बीमारी रहती है जिस कारण उन्हें दुकानों-संस्थानों में कोई गड़बड़ी नजर नहीं आती। इन्हें न तो किसी वस्तु की एक्सपायरी डेट दिखाई देती है और न ही एमआरपी से ज्यादा की जाने वाली वसूली। वस्तु की मात्रा कम या ज्यादा (वैसे ज्यादा होने के तो सवाल ही नहीं उठता) से तो इन्हें कोई लेना-देना है ही नहीं रहता। चूंकि त्योहार आ गए हैं इसलिए इन सभी विभागों को खाने-पीने की वस्तुओं की दुकानों और प्रतिष्ठानों की अनियमितताएं भी दिखने लगी हैं और यहां उपयोग होने वाले अमानक और अप्रमाणित बांट और तराजू भी। जल्दी ही नमकीन और मिठाई की दुकानों पर खाद्य विभाग से जुड़ी (मधु)मक्खियां भी भिन-भिनानें लगेंगी क्योंकि गड़बड़ी छिपाने के नाम पर ‘रबड़ी’ त्योहारी सीजन में ही खाने को मिलती है।
सोने की चमक तले दबे नियम और कानून
शहर के बजना रोड के डिवाइडर को खरीदने वाले एक स्वर्ण आभूषण निर्माता और विक्रेता के शो-रूम के उद्घाटन के लिए प्रदेश के मुखिया इसलिए नहीं आए थे क्योंकि उन्हें शोरूम निर्माण में नियमों की अनदेखी की भनक लग गई थी। उन तक यह खबर भी पहुंच गई थी कि आवासीय कॉलोनी में जहां सिर्फ सर्विस शॉप ही खुल सकती है वहां रतलाम शहर में निर्धारित ऊंचाई से ज्यादा ऊंची इमारत बन गई वह भी बिना सक्षम अनुमति के। एमओएस और बेसमेंट का नियम भी सोने की चमक तलते ही दफन कर दिया गया है। इसलिए, चाहते हुए भी प्रदेश के मुखिया ने बदनामी का करंट लगने से बचने के लिए घातक ‘DP’ से दूर रहना ही उचित समझा। (बता दें कि, विद्युत ट्रांसफार्मर वाले सब स्टेशन को आम बोलचाल की भाषा में ‘DP’ ही कहते हैं जिसका शाब्दिक अर्थ ‘ड्युअल पोल’ होता है।) सुनहरी इमारत के नियमों की कब्र पर खड़ी होने की जानकारी नगर सरकार से लेकर जिला सरकार तक के सभी अफसरों को है लेकिन उसकी स्वर्णिम चमक की चकाचौंध उनकी पलकों को ऊपर उठने ही नहीं देती। ऐसे ही चकाचौंध एक अन्य स्वर्ण आभूषण निर्माता और विक्रेता की भी है जिसने पूरे यतायात अमले को ही चौंधिया दिया है और इसका प्रमाण शहर की सड़क के हर डिवाइडर पर हर कदम पर टंगा है।
...और भीड़ में शामिल हो गए युवा नेता
यह त्यौहार कई नई सूचनाएं, संभावनाएं लेकर आया है। ‘रतलाम’ का प्राचीन नाम ‘रत्नपुरी’ भी रहा है। यहां के रत्नों की चर्चा उनकी खूबियों के कारण होती आई है। ऐसे ही एक युवा रत्न रतलाम शहर में और हैं जिनकी एक खूबी अखबार और सोशल मीडिया में सुर्खी बन चुकी है। कद में लंबे इस युवा की महत्वाकांक्षा का तो क्या ही कहना। भले ही इनके सीने पर युवा नेता का तमगा लटका हो लेकिन इनकी महत्वाकांक्षा तमाम स्थानीय नेताओं के राजनीतिक कद से ऊपर उठते हुए प्रधानमंत्री के कद के बराबर तक जा पहुंची है। नमो-नमो की माला जबते हुए इन्होंने ऐसी ‘मैराथन दौड़’ लगाई कि पोस्टरों और बैनरों में ये ‘प्रधानमंत्री की बराबरी’ में जा चिपके।
शायद यही वजह है कि पितृ संगठन ने इन्हें अपना हिस्सा बनाते हुए जिले का ‘दो नंबरी’ नेता बना दिया। इनके और इनके पितृ संगठन में इनकी उपलब्धियों से जलने वालों की भी कमी नहीं है, वे जहां प्रधानमंत्री से बराबरी को अनुशासनहीनता बता रहे हैं। विरोधियों का कहना है कि युवा नेता जी का प्रमोशन नहीं हुआ है बल्कि उन्हें तो भीड़ में (8 लोगों वाले पद) शामिल किया गया है। ऐसे सभी विरोधियों की नजरें उनकी एक नंबर की कुर्सी पर गड़ी हुई हैं।