सरकार 3 साल में भी तय नहीं कर पाई कि प्रदेश के 80 हजार शिक्षकों को कौन देगा क्रमोन्नति और वेतनमान का लाभ, शिक्षा राज्यमंत्री की नोटशीट भी बेअसर

स्कूल शिक्षा विभाग के 80 हजार शिक्षकों को तीन साल से क्रमोन्नति और वेतनमान सहित अन्य लाभ नहीं मिल पा रहे हैं। एरियर का भुगतान भी नहीं हो सका। इसकी वजह सिर्फ निर्णय लेने में सरकार की अक्षमता है जो सरकारी कारिंदों द्वारा अपने अधिकार अधीनस्थों को सौंपना है। नतीजतन शिक्षकों से जुड़ी नोटशीट लोक शिक्षण संचालनालय, सचिवालय और वित्त विभाग के बीच घूम रही है।

सरकार 3 साल में भी तय नहीं कर पाई कि प्रदेश के 80 हजार शिक्षकों को कौन देगा क्रमोन्नति और वेतनमान का लाभ, शिक्षा राज्यमंत्री की नोटशीट भी बेअसर

लोक शिक्षण संचालनालय, सचिवालय और वित्त विभाग के बीच घूम रही क्रमोन्नति और वेतनमान सहित अन्य लाभों की नोटशीट 

एसीएन टाइम्स @ भोपाल । स्कूल शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अधिकारियों की सुविधाभोगी सोच ने उन 80 हजार शिक्षकों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है, जिन्हें वर्ष 2018 में अध्यापक से शिक्षक संवर्ग में लाया गया है। जिम्मेदार अधिकारी अपना काम कनिष्ठ से कराना चाहते हैं, इसलिए तीन साल से शिक्षकों को क्रमोन्नति नहीं मिल रही है। इतना ही नहीं, इस कारण सेवा पुस्तिका अपडेट नहीं हो रही हैं और उन्हें छठवें-सातवें वेतनमान का एरियर नहीं मिल पा रहा है। क्रमोन्नति की नोटशीट पिछले तीन साल से लोक शिक्षण संचालनालय, सचिवालय, विभाग के मंत्री एवं वित्त विभाग के बीच घूम रही है। 

प्रदेश के 80 हजार शिक्षक तीन साल से अपनी क्रमोन्नति, छठे व सातवें वेतनमान तथा एरियर के भुगतान के लिए सरकार के जिम्मेदारों के चक्कर काट रहे हैं। अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे शिक्षकों की मांगों सरकारी तंत्र ऐसे ले रहा है मानों वे अधिकार नहीं ब्लकि भीग चाह रहे हों। शिक्षकों को लेकर सरकार का यह रवैया समझ से परे है। नतीजन तीन साल में भी यह तय नहीं हो पाया है कि शिक्षकों की क्रमोन्नति, वेतनमान और एरियर देने का निर्णय लोक शिक्षण संचालनालय, सचिवालय, विभाग के मंत्री अथवा वित्त विभाग लेगा। शिक्षकों को लंबित लाभ देने को लेकर स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री इंदर सिंह परमार द्वारा प्रशासकीय मंजूरी दी जा चुकी है। इसकी नोटशीट करीब दो माह पहले पुनः वित्त विभाग को भेज दी गई थी लेकिन वहां से यह अब तक वापस नहीं भेजी गई है। उल्लेखनीय है कि शिक्षकों को 12, 24 और 30 साल में क्रमोन्नति दी जाती है। वर्ष 2006 में नियुक्त शिक्षक 2018 में ही पहली क्रमोन्नति पाने के पात्र हो चुके हैं।  

काम के बोझ के नाम पर स्थानांतरित हुए अधिकार, अब अफसर चाह रहे 2014 वाली व्यवस्था

चूंकि स्कूल शिक्षा विभाग में पुराने संवर्ग के व्याख्याता की नियुक्ति आयुक्त लोक शिक्षण, उच्च श्रेणी शिक्षक की संभागीय संयुक्त संचालक व सहायक शिक्षक की जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा की गई थी। ऐसे में इन शिक्षकों को क्रमोन्नति भी क्रमशः इसी स्तर पर दी जानी चाहिए। परंतु 2014 में अधिकारियों ने काम के बोझ का हवाला देकर इस व्यवस्था को ही बदल दिया था। आयुक्त ने अपने अधिकार संभागीय संयुक्त संचालक और संभागीय संयुक्त संचालक ने जिला शिक्षा अधिकारी को सौंप दिए। यानी नियुक्ति भले ही आयुक्त ने की हो किंतु व्याख्याता संवर्ग को अन्य लाभ देने की जिम्मेदारी संभागीय संयुक्त संचालक निभाएंगे और उच्च श्रेणी शिक्षक व सहायक शिक्षक की नियुक्ति की जिला शिक्षा अधिकारी। यही वजह है कि क्रमोन्नति और वेतनमान संबंधी निर्णय नहीं हो पा रहा है क्योंकि जिन अधिकारियों को अधिकार ट्रांसफर किए गए थे वे 2014 वाली ही व्यवस्था बनी रहने देना चाहते हैं जिससे शिक्षकों की ही तरह उनके अधिकारों की नोटशीट भी दफ्तर-दर-दफ्तर चक्कर लगा रही है। 

जनजातीय विभाग में नहीं समस्या, 55 हजार शिक्षकों को मिल चुके अधिकार

समस्या सिर्फ स्कूल शिक्षा विभाग के शिक्षकों के अधिकारियों को लेकर ही है। इस विभाग की ही तरह जनजातीय विभाग में 55 हजार शिक्षकों की नियुक्ति हुई और उन्हें निर्धारित समयावधि में उनके अधिकार और लाभ मिल भी चुके हैं। इस विभाग के शिक्षकों को क्रमोन्नति का लाभ नियुक्ति प्रदान करने वाले अधिकारियों के स्तर पर ही दी गई है। वैसे भी सामान्य प्रशासन विभाग का नियम है कि किसी भी कर्मचारी को नियोक्ता (नियुक्त करने वाला अधिकारी) ही क्रमोन्नति या समयमान-वेतनमान का लाभ दे सकता है। सभी विभागों में यही व्यवस्था लागू है। 

सभी सिर्फ आश्वासन देते हैं, आखिर कब तक करें इंतजार 

विभाग के मंत्री, प्रमुख सचिव और संचालक सहित सभी से बात कर चुके हैं। सभी सिर्फ आश्वासन देते हैं कि, जल्द निर्णय होगा। बावजूद कुछ नहीं नहीं हो रहा है। इससे कर्मचारियों को नुकसान हो रहा है। आखिर हम कब तक इंतजार करें।

भरत पटेल, अध्यक्ष- मप्र आजाद अध्यापक शिक्षक संघ