श्री अरविंद के 150वें जन्म जयंती महोत्सव के तहत आज रतलाम के ऑरो आश्रम पर लगेगी अनूठी "पुष्प प्रदर्शनी", आप भी अवश्य देखें...
भारत सरकार, श्री अरविंद सोसाइटी पॉण्डिचेरी व उनकी देश-विदेश स्थित शाखाएं इस वर्ष श्री अरविंद सार्ध शती मना रहे हैं। इस उलक्ष्य में रतलाम में पुष्प प्रदर्शनी आयोजित की जा रही है।
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । इस वर्ष भारत सरकार सहित श्री अरविंद सोसाइटी पॉण्डिचेरी तथा उनकी देश विदेश स्थित शाखाओं द्वारा श्री अरविंद सार्ध शती मनाई जा रही है। इस उपलक्ष्य में 24 अप्रैल (रविवार) को "पुष्प प्रदर्शनी" का एक अनूठा आयोजन स्थानीय ऑरो आश्रम, श्री अरविन्द मार्ग, सैलाना रोड पर किया जाएगा। इस दिन सुबह 10 से शाम 7 बजे तक चलने वाली प्रदर्शनी में विभिन्न प्रकार के पुष्पों का आध्यात्मिक नाम एवं वर्णन जानने को मिलेगा।
श्री अरविंद सोसाइटी रतलाम के अनुसार श्री माँ द्वारा विभिन्न पुष्पों को आध्यात्मिक नाम दिए गए थे तथा उन सभी पुष्पों की एक अनूठी विवेचना एवं वर्णन किया गया था। इसे जानने और समझने के पश्चात व्यक्ति स्वयं को प्रकृति एवं ईश्वर के और अधिक समीप महसूस करता है। प्रकृति के प्रति उसका व्यवहार एवं दृष्टिकोण भी बदलता है। यह व्यक्ति के जीवन के समग्र विकास में सहायक होता है। श्री अरविंद सोसाइटी रतलाम शाखा ने इस पुष्प प्रदर्शनी के अवलोकन के लिए आमजन के आमंत्रित किया है। रतलाम शाखा द्वारा स्कूल एवं अन्य गतिविधियों को भी संचालित किया जाता है। काफी कम रातलामवासियों को पता होगा कि 9 दिसंबर 1990 को स्थानीय सैलाना रोड का नाम श्री अरविंद मार्ग रखा गया था।
बता दें कि 73वें गणतंत्र दिवस परेड में संस्कृति मंत्रालय द्वारा श्री अरविंद के जीवन दर्शन पर एक झाँकी भी निकाली गई थी, जो परेड के आकर्षण का केंद्र रही थी। श्री अरविंद के अखण्ड भारत की परिकल्पना आज भी प्रासंगिक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस पर श्री अरविंद का स्मरण अवश्य किया जाता है। 15 अगस्त 1872 को जन्में श्री अरविंद की 150वीं जयंती पर श्री अरविंद सोसाइटी रतलाम द्वारा भी विभिन्न आयोजन किये जा रहे हैं।
श्री अरविंद का स्वतंत्रता आंदोलन में भी है अद्भुत योगदान
कई विचारकों एवं चिंतकों का मत है कि भारत की स्वतंत्रता का दिन 15 अगस्त होना महज एक संयोग नहीं है, यह श्री अरविंद के क्रांतिकारी आध्यात्मिक स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित ही है। श्री अरविंद का जन्म भी 15 अगस्त 1872 को हुआ था। इंग्लैंड से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात श्री अरविन्द घोष भारत लौटे। उनके ज्ञान तथा विचारों से प्रभावित होकर गायकवाड़ नरेश ने उन्हें बड़ौदा (अब वडोदरा) में अपने निजी सचिव के तौर पर आमंत्रित किया।
सन् 1906 में बंग-भंग आंदोलन की वजह से जब बंगाल आंदोलित था तब उन्होंने बड़ौदा से कलकत्ता की ओर कूच किया। बड़ौदा से कोलकाता आने के बाद श्री अरविन्द आजादी के आंदोलन में उतरे। कोलकाता में उन्होंने बाघा जतिन, जतिन बनर्जी और सुरेंद्रनाथ टैगोर जैसे क्रांतिकारियों से भेंट की। बंगाल एवं देश की जनता को जागृत करने के लिए श्री अरविन्द ने अंग्रेजों के खिलाफ उत्तेजक भाषण दिए। उन्होंने अपने भाषणों तथा 'वंदे मातरम्' में प्रकाशित लेखों के द्वारा अंग्रेज सरकार की दमन नीति की कड़ी आलोचना की थी। 1908-09 में उन पर अलीपुर बम कांड मामले में राजद्रोह का मुकदमा चला। इसके फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया।
जेल से हुआ जीवन लक्ष्य परिवर्तन
अलीपुर जेल भेजे जाने के पश्चात श्री अरविंद के जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। जेल की कोठी में उनका समय साधना, स्वाध्याय और तप में बीतने लगा। वहाँ पर वे गीता अध्ययन एवं और भगवान श्रीकृष्ण की आराधना किया करते थे। ऐसा कहा जाता है कि श्री अरविन्द जब अलीपुर जेल में थे तब उन्हें साधना के दौरान भगवान कृष्ण के दर्शन एवं अनुभूतियाँ हुई। भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से वह प्रत्यक्ष क्रांतिकारी आंदोलन को छोड़कर योग और अध्यात्म के माध्यम से आध्यात्मिक क्रांति में संलग्न हो गए।
महान योगी के साथ दार्शनिक, लेखक, चिंतक और विचारक भी थे
जेल से बाहर आने के पश्चात वे तत्कालीन फ्रांसीसी उपनिवेश पॉन्डिचेरी चले गए। जहाँ से उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए आध्यत्मिक पोषण एवं मार्गदर्शन का कार्य प्रारंभ किया। वे स्वतंत्रता सेनानियों के मार्गदर्शन करते रहे। श्री अरविन्द एक महान योगी और दार्शनिक के अलावा लेखक, चिंतक, विचारक थे। उनके दर्शनशास्त्र के अध्ययन का पूरे विश्व पर प्रभाव रहा है। उन्होंने वेद, उपनिषद आदि ग्रंथों पर टीका के साथ-साथ योग साधना पर मौलिक ग्रंथ लिखे। खासकर उन्होंने डार्विन जैसे जीव वैज्ञानिकों के सिद्धांत से आगे चेतना के विकास की एक कहानी लिखी और समझाया कि किस तरह धरती पर जीवन का विकास हुआ। उनकी प्रमुख कृतियां लेटर्स ऑन योगा, सावित्री, योग समन्वय, दिव्य जीवन, फ्यूचर पोयट्री और द मदर हैं। भारत की आज़ादी के पश्चात श्री अरविन्द का देहांत 5 दिसंबर 1950 को हुआ। पॉन्डिचेरी आश्रम पर 9 दिसंबर को उनके पार्थिव शरीर को समाधि दी गई।