रचनाकार का असंतोष ही उसकी रचना को प्रभावी बनाता है- डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी

ज्ञान चतुर्वेदी राष्ट्रीय व्यंग्य सम्मान समारोह रतलाम में संपन्न हुआ। इस मौके पर पद्मश्री डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने व्यंग्य और साहित्य की विषयवस्तु, प्रभाव आदि पर प्रकाश डाला। समारोह में व्यंग्यकारों का सम्मान एवं पुस्तकों का विमोचन भी हुआ।

रचनाकार का असंतोष ही उसकी रचना को प्रभावी बनाता है- डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी
पद्मश्री डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी।

वलेस के राष्ट्रीय व्यंग्य सम्मान समारोह में पद्मश्री डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने कहा

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । एक रचनाकार को आम आदमी के दर्द को समझने वाला और संवेदनशील होना चाहिए। घाव की टीस को पालना, उसकी संवेदना को पोषित करना रचनाकार के लिए ज़रूरी है। मानव के लिए, घटनाओं के लिए बल्कि परमसुखी के लिए भी संवेदनशील होना चाहिए। कोई सम्मान, लेखक को संतोष दे रहा हो तो वो सही नहीं। लेखक को असंतुष्ट रहना ज़रूरी है।

उक्त विचार वरिष्ठ व्यंग्यकार पद्मश्री डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने व्यंग्य लेखक समिति (वलेस) द्वारा आयोजित ज्ञान चतुर्वेदी राष्ट्रीय व्यंग्य सम्मान समारोह में सम्मानित व्यंग्यकारों को सम्मान प्रदान करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जो विषय आपके पीछे लग जाए, उसे जीने की कोशिश करें। विचार आने के बाद बार-बार पढ़ना, संशोधित करना ही लेखकीय साधना है। जब तक मन माफिक परिणाम तक न पहुंचे। संतुष्ट होने तक बार बार लिखें। कला के तीसरे क्षण में आप अपनी क्षणिक सोच को प्रतिबिंबित कर पाएंगे। डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने नए रचनाकारों को निरंतर पढ़ने की सलाह दी और अपने लिखे हुए पर बार-बार विचार करना चाहिए।

आक्रोश व्यंग्य पैदा करता है- कैलाश मंडलेकर

वरिष्ठ व्यंग्यकार कैलाश मंडलेकर ने कहा कि व्यंग्य एक दृष्टिकोण है। परसाई जी ने इसे स्प्रिट कहा। शरद जी ने भी अपनी रचनाओं को व्यंग्य कहने का दावा नहीं कहा। किंतु उन्होंने व्यंग्य को स्थापित किया। इंग्लिश और उर्दू में व्यंग्य का बड़ा खजाना है। पौराणिक साहित्य भी हमें पढ़ना चाहिए। भवभूति ने लिखा- ‘राम, सीता का हाथ छोड़ते हुए कांप रहे थे।’ ऐसे प्रसंग कई प्रश्न उठाते हैं। उन्होंने कहा कि आक्रोश व्यंग्य पैदा करता है। मुक्तिबोध और परसाई के आक्रोश में फर्क है।  परसाई का आक्रोश सुखांत के साथ पूरा होता है जबकि मुक्तिबोध एरोगेंट रहे। ग़ालिब ने अपने शेरों में आक्रोश प्रकट किया।

विदेशों में भी पढ़ाई जा रही हिंदी- डॉ. जवाहर कर्नावट

विशेष अतिथि व्यंग्यकार डॉ. जवाहर कर्नावट ने कहा कि विश्व के कई देशों में व्यंग्य के उदाहरण मिलते हैं। अन्य भारतीय भाषा के व्यंग्यों का संकलन भी किया जाना चाहिए। गुजरात में व्यंग्य का निर्झर बहता है। ओसाका में ब्रज भाषा पढ़ाई जा रही थी। उज़्बेकिस्तान में भी हिंदी पढ़ाई जाती देखी। यह कार्य एक जापानी महिला कर रही थीं। समारोह के स्थानीय संयोजक व्यंग्यकार आशीष दशोत्तर ने स्वागत उद्बोधन दिया। शांतिलाल जैन ने वलेस वार्षिक उत्सव का विवरण प्रस्तुत किया।

ये व्यंग्यकार हुए सम्मानित

ज्ञान चतुर्वेदी व्यंग्य सम्मान संयुक्त रूप से शशांक दुबे (उज्जैन) एवं प्रमोद ताम्बट (भोपाल) को प्रदान किया गया। इसी प्रकार वलेस दीर्घकालिक व्यंग्य सेवा सम्मान - ब्रजेश कानूनगो (इंदौर) को, वलेस श्रेष्ठ नव पल्लव व्यंग्य सम्मान - संयुक्त रूप से ऋषभ जैन (रायपुर) एवं मुकेश राठौर (भीकनगांव), वलेस व्यंग्य साधक सम्मान - डॉ. हरीश कुमार सिंह (उज्जैन) को एवं वलेस श्रेष्ठ व्यंग्य विदुषी सम्मान - सारिका गुप्ता (इंदौर) एवं अनीता श्रीवास्तव (टीकमगढ़) को दिया गया। सम्मानित व्यंग्यकारों ने अपनी रचना प्रक्रिया पर वक्तव्य दिया।

व्यंग्यकारों की पुस्तकों का हुआ विमोचन

प्रारंभ में अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर व्यंग्यकार अनीता श्रीवास्तव, ऋषभ जैन, आशीष दशोत्तर की पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। इस सत्र का संचालन शांतिलाल जैन ने किया।

ये उपस्थित रहे

रतलाम में पहली बार हुए इस आयोजन में देशभर से आए व्यंग्यकारों के साथ रतलाम के साहित्य जगत से प्रो. रतन चौहान, डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला, ओमप्रकाश मिश्र, हमलोग संस्था के सुभाष जैन, विष्णु बैरागी, महावीर वर्मा, नरेंद्र सिंह डोडिया, नरेंद्र सिंह पंवार, विनोद झालानी, प्रकाश हेमावत सहित बड़ी संख्या में शहर के साहित्यकार मौजूद थे।