सिविक सेंटर मामले में नया खुलासा : 9 योजनाओं के 1 हजार से अधिक भवन और प्लॉट घाटे में बेचने के लिए नगर निगम में खुद मांगी थी शासन से अनुमति !

सूचना के अधिकार में मिली जानकारी के अनुसार नगर निगम द्वारा 2008 में तत्कालीन कैबिनेट और राज्य शासन के आदेश के तहत ही सिविक सेंटर के 27 प्लॉट की रजिस्ट्री करवाई गई थी। तब शासन ने खुद ही संपत्तियों की रजिस्ट्रियां घाटे में करवाने के लिए अनुमति मांगी थी।

सिविक सेंटर मामले में नया खुलासा : 9 योजनाओं के 1 हजार से अधिक भवन और प्लॉट घाटे में बेचने के लिए नगर निगम में खुद मांगी थी शासन से अनुमति !
राजीव गांधी सिविक सेंटर रजिस्ट्री मामले में नया खुलासा।

2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट के निर्णय के बाद शासन ने शिथिल किए थे नियम

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । नगर सुधार न्यास की योजना क्रमांक 71 राजीव गांधी सिविक सेंटर के 27 प्लॉट की रजिस्ट्री 1996 की दरों पर होने के बाद से बवाल मचा हुआ है। मामला उच्च न्यायालय तक पहुंच चुका है। इस बीच इससे जुड़ी बड़ी जानकारी सामने आई है। सिविक सेंटर सहित शहर की 9 प्रमुख योजनाओं के 1 हजार से ज्यादा भवन और प्लॉट घाटे में बेचने के लिए खुद नगर निगम ने ही शासन से अनुमिति मांगी थी। निगम की मांग पर ही तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली कैबिनेट में इसे अनुमति दी गई थी जिसके बाद शासन ने नियम भी शिथिल किए थे। इस खुलासे के बाद सिविक सेंटर के प्लॉट की रजिस्ट्री शून्य घोषित करवाने के प्रयासों को झटका लग सकता है।

नगर सुधार न्यास के नगर निगम में विलय क बाद से न्यास की योजनाओं के भवन और भूखंडों की रजिस्ट्री को लेकर समय-समय पर विवाद की स्थिति बनती रहती है। कुछ समय पूर्व नगर निगम द्वारा राजीव गांधी सिविक सेंटर के 27 प्लॉट की पुरानी दर पर ही रजिस्ट्री करवा दी गई थी जिसके बाद से मामला गरमाया हुआ है। गत 7 मार्च 2024 को हुए नगर निगम के साधारण सम्मेलन में पुरानी दर पर सिविक सेंटर की संपत्तियों की रजिस्ट्री कराने को लेकर पक्ष और विपक्ष के पार्षदों ने आपत्ति दर्ज कराई। इसके चलते नगर निगम परिषद द्वारा उक्त सभी प्लॉटों की रजिस्ट्री निरस्त कराने का निर्णय पारित किया गया। इसके पालन को लेकर कलेक्टर को भी पत्र दिया गया। रजिस्ट्रियों को शून्य करवाने के परिषद के निर्णय के विरुद्ध प्लॉटधारियों ने उच्च न्यायालय की शरण ली जहां से फिलहाल रोक लगी हुई है।

पुराने नियम अनुसार संपत्ति बेचने से रुक गई थी रजिस्ट्रियां

सिविक सेंटर के प्लॉट बेचने को लेकर मचे घमासान के बीच जब सूचना के अधिकार के तहत जानकारी निकाली गई तो बड़ी बात सामने आई। दरअसल, नगर सुधार न्यास का नगर निगम में 1 अगस्त 1994 को विलय हुआ था। इसके बाद न्यास के व्यावसायिक और आवासीय भूखंडों का विक्रय नगर निगम के तत्कालीन अधिकारियों और पदाधिकारियों ने मप्र नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 की धारा 80 के अंतर्गत बनाए गए नगर पालिक निगम (अचल संपत्ति का अंतरण) नियम 1994 के प्रावधान अनुसार घोष विक्रय व किराया पद्धति के आधार पर करने थे। परंतु तब ऐसा न करते हुए नगर सुधार न्यास अधिनियम 1960 के नियमों के अनुसार ही ‘पहले आओ-पहले पाओ’ पद्धति पर पूर्णतया विक्रित मूल्य व लीज पर संपत्तियां बेच दी गईं। जानकारी के अनुसार नगर निगम द्वारा सिविक सेंटर के साथ ही नगर सुधार न्यास (बाद में विकास शाखा) की अलग-अलग योजनाओं की करीब 1500 संपत्तियां बेची गईं थी। कुछ की रजिस्ट्रियां भी करा दी गईं थी। नियम विपरीत संपत्तियां बेचने और उसके बाद उपजी विसंगति के चलते भवन और प्लटॉटों की रजिस्ट्रियां रुक गईं।

नगर निगम ने ही की थी नियम शिथिल करने की मांग

नियम विरुद्ध संपत्तियां बेचने से उपजी समस्या ने तत्कालीन निगम प्रशासन की परेशानी बढ़ा दी थी और निवेशक भी परेशान थे। इससे बनी विवाद की से निबटने के लिए ही 21 जुलाई 2008 को तत्कालीन आयुक्त द्वारा नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर नगर सुधार न्यास की आवंटित संपत्तियों की रजिस्ट्री कराने और शेष संपत्तियों के आवंटन के लिए अनुमिति मांगी गई थी। इसमें सिविक सेंटर सहित शहर की 9 योजनाएं शामिल थीं।

विधि और वित्त विभाग से भी राय ली

नगर निगम की उपरोक्त मांग को तत्कालीन कैबिनेट में रखने से पहले विधि विभाग और वित्त विभाग की राय भी ली गई। इसमें विधि विभाग ने स्पष्ट किया था कि यदि नियमों के अंतर से घोष विक्रय के अभाव में नगरपालिक निगम को उचित मूल्य नहीं मिल सका है और यदि वह घाटा सहन करने को तैयार हो तो उसे ऐसी अनुमति दी जा सकती है।

कैबिनेट ने इस शर्त पर दी थी अनुमति

चूंकि नियमों में परिवर्तन का अधिकार राज्य शासन को है अतः 30 सितंबर 2008 को हुई तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली कैबिनेट की बैठक उक्त मामले को आयटम नंबर 21 पर रखा गया। कैबिनेट ने निर्णय लिया कि नगर सुधार न्यास  रतलाम द्वारा पूर्व में निर्मित संपत्ति के विक्रय की कार्योत्तर स्वीकृति नगर निगम को दी जाए। यह भी निर्णय हुआ कि विक्रय योग्य शेष संपत्ति को नगर निगम रतलाम द्वारा मप्र नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 में वर्णित प्रावधान अनुसार विक्रय की अनुमति इन शर्तों पर दी जाती है कि विक्रय से प्राप्त राशि केवल हुडको से लिए गए ऋण को चुकाने में व्यय की जाएगी। संपत्ति के मूल्य में हुई कमी की प्रतिपूर्ति राज्य शासन द्वारा नहीं की जाएगी। इस निर्णय के बाद 31 अक्टूबर 2008 को नगरीय प्रशासन विभाग के तत्कालीन उप सचिव एस. के. उपाध्याय ने नगर निगम आयुक्त रतलाम को राज्य शासन द्वारा दी गई अनुमति का आदेश जारी किया।

इन योजनाओं की संपत्तियों के लिए मांगी थी अनुमति

क्रमांक

योजना

भवन

भूखंड

1

राजीव गांधी सिविक सेंटर

132

36

2

पं. प्रेमनाथ डोंगरा नगर

558

56

3

मुखर्जीनगर

133

02

4

देवरा देवनारायण नगर

18

05

5

इंद्रानगर (पूर्व)

--

06

6

कस्तूरबानगर

--

04

7

कलीमी कॉलोनी

--

01

8

अर्जुन नगर

19

--

9

अमृत सागर कॉलोनी

32

--

--

कुल

892

110

लगातार होती रहीं रजिस्ट्रियां, इसलिए परिषद को नहीं दी जानकारी

राज्य शासन के उक्त आदेश के बाद विकास शाखा की नौ योजनाओं में प्लॉटों की रजिस्ट्री लगातार होती रही। हालांकि, इस दौरान महापौर परिषद, निगम परिषद से न तो इसके लिए कोई अनुमति ली गई न ही उसे कोई जानकारी ही दी गई। ऐसा इसलिए कि राज्य शासन के निर्णय के बाद स्थानीय स्तर पर अनुमति लेना जरूरी नहीं नहीं रह जाता।

अब आगे क्या ?

इस नए खुलासे के बाद यह चर्चा छिड़ गई है कि अब इस मामले में क्या होगा। जानकारों का कहना है कि राज्य शासन के पूर्व के निर्णय के सामने आने से निगम प्रशासन को कानूनी पहलू को लेकर नए सिरे से मशक्कत करना पड़ सकती है। हो सकता है कि मामले पर नए सिरे से विचार के लिए निगम परिषद में फिर से भेजा जाए। संभव है कि सिविक सेंटर के 27 प्लॉट की रजिस्ट्री निरस्त कराने के निगम परिषद के अपने निर्णय में पीछे हटना पड़े। हाईकोर्ट में भी अगली सुनवाई पर निगम की ओर से शासन के उपरोक्त फैसले के प्रकाश में दिए जाने वाले जवाब से प्रकरण की दिशा तय हो सकती है।