मोदी', 'मोहन' और 'महाजीत' : कोरी सोच नहीं, विधानसभा से लोकसभा तक क्रियान्वयन की पुख्ता प्लानिंग

देश के तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत की महाजीत की बड़ी सोच और पार्टी के कुशल मैनेजमेंट का परिणाम है। अब सभी को इंतजार है कि ये मुख्यमंत्री और मंत्रियों के तौर पर किस पर भरोसा जताते हैं।

मोदी', 'मोहन' और 'महाजीत' : कोरी सोच नहीं, विधानसभा से लोकसभा तक क्रियान्वयन की पुख्ता प्लानिंग
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एसीएन टाइम्स @ डेस्क । मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद अब सभी का फोकस और इंतजार मुख्यमंत्री और मंत्रियों के चयन को लेकर है। शिवराज सिंह चौहान के सिर पुनः मुख्यमंत्री का ताज सजने के कयास लगने के साथ ही मंत्रिमंडल में युवाओं को मौका देने की बात सूत्र कर रहे हैं। इस बार वरिष्ठों और नए लोगों में समन्वय बनाने की कोशिश और लोकसभा में बहुमत हासिल करने की रणनीति पर ज्यादा ध्यान रहेगा। इसके लिए कुछ बड़े मंत्रियों को केंद्र में भेजने पर भी विचार संभव है।

नरेंद्र मोदी की भाजपा और मोहन भागवत का संघ हमेशा सिर्फ महाजीत के बारे में सोचता ही नहीं, बल्कि इसे क्रियान्वित भी करता है। इस बार हुए विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की महाजीत इसी बात की पुष्टि करती है। चुनाव पूर्व मध्य प्रदेश में कांग्रेस को बढ़त मिलने के कयास लगाए जा रहे थे लेकिन परिणाम ने उन्हें ध्वस्त कर दिया। राजस्थान में हर बार सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड बरकरार रहा। वहीं छत्तीसगढ़ के परिणाम ने सभी को चौंका दिया। तीनों ही राज्यों में भाजपा बहुमत में आ चुकी है और अब मुख्यमंत्री और संभावित मंत्रियों के नामों को लेकर चर्चा और कयासों का दौर जारी है।

हम बात करेंगे मध्य प्रदेश की जहां मोदी और अमित शाह के मैनेजमेंट और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहना ने कमाल कर दिया। चुनाव से पहले सत्ता से दूर जाती दिख रही भाजपा ने ज्यादा ताकत के साथ वापसी कर ली है। बेशक, चुनाव के पहले सत्ता विरोधी और शिवराज के खिलाफ माहौल बताया जा रहा था लेकिन अब ऐसा नहीं है। फिर भी अगर यहां कोई चौंकाने वाला निर्णय हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि भाजपा ऐसे फैसलों के लिए जानी जाती है। एक झटके में गुजरात में सिर्फ एक बार के जीते हुए विधायक को सिर्फ इसलिए सीएम बना दिया गया था क्योंकि उसका त्याग, समर्पण और संगठन क्षमता का लोहा परखा हुआ था। यही मध्य प्रदेश में भी संभव है।

जो सोचा, सही ही सोचा

यह सही है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में टिकट काटने का ज्यादा जोखिम नहीं उठाया गया लेकिन जहां काटे गए वहां की जीत ने सिद्ध कर दिया कि जो सोचा था, सही ही सोचा था। लोकसभा चुनाव में भी अब ज्यादा समय नहीं है और उसमें तो बागियों के लिए ज्यादा गुंजाइश भी नहीं रहती। चर्चा है कि इस बार भाजपा मध्य प्रदेश से अपने कुछ बड़े मंत्रियों को लोकसभा के रास्ते पर भेज सकती है। इसके अलावा 50% से ज्यादा नए चेहरे को मंत्री बना सकती है। अर्थात् वरिष्ठ और नए दोनों का समन्वय बैठाएगी। इसके साथ ही ईमानदारी, संगठन के प्रति निष्ठा, निर्विवाद और स्वच्छ छवि भी पैमाना होगा। बेशक, जाति और क्षेत्र का समन्वय बैठाया जाएगा परन्तु योग्यता के मापदंडों को पीछे नहीं रखा जाएगा। महिला प्रतिनिधित्व से लेकर युवा तक सभी पर फोकस रहेगा।

इसके बढ़े आसार

उषा ठाकुर, विजय शाह, जगदीश देवड़ा, गोपाल भार्गव, ओमप्रकाश सकलेचा, मोहन यादव जैसे बड़े नेताओं को मंत्रिमंडल में न लेकर संगठन में भेजा जा सकता है। इनमें से भार्गव को तो एक दिन पूर्व ही विशेष विमान से दिल्ली बुला भी लिया गया है। इसी तरह युवा आदिवासी नेतृत्व और आरक्षित वर्ग में नए युवा नेतृत्व को मौका मिलने की संभावना बढ़ गई है। यानी आलोट विधानसभा से जीते डॉ. चिंतामणि मालवीय को प्रदेश संगठन में जवाबदारी अथवा निगम मंडल में स्थान मिल सकता है।

केंद्र में जिम्मेदारी 

यदि 2024 तक के लिए शिवराज को सीएम बनाया जाता है तो विधानसभा में वरिष्ठता में कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र तोमर, प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह, रीति पाठक इत्यादि को मंत्रिमंडल और विधानसभा में बड़ी भूमिका मिल सकती है। इस बार मध्य प्रदेश सहित तीनों ही राज्यों में दो उप मुख्यमंत्री बनाने के प्रयोग के आसार हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार इस बार जो भी सीएम 5 साल के लिए बनेगा उसको फ्री हैंड देने की उम्मीद कम है, उसे संगठन के समन्वय में ही चलना होगा।

...ताकि असंतोष की गुंजाइश न रहे

सबसे ज्यादा शिकायत आनुसंगिक संगठनों की यही रही कि विधायक और सीएम उनकी नहीं सुनते। इसलिए इस बार कोई चूक रखने की गुंजाइश नहीं रहेगी। केंद्रीय नेतृत्व ने आश्वासन भी दिया है कि पुरा चुनाव उन्हीं के निर्देशन में चला है अतः लोकसभा के लिए अभी से तैयारी शुरू होगी। माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश में मंत्री रहते हुए कैलाश विजयवर्गीय को लोकसभा चुनाव लड़ाकर केंद्र में भेजा जा सकता है। अन्य तीनों बड़े नेताओं में से भी (जिन्हें 2024 में सीएम नहीं बनाया जाएगा) राज्यसभा के माध्यम से केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान मिल सकता है। वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों को (जिसे वे चाहेंगे) हारने के बावजूद निगम मंडल में स्थान दिए जाने की पूरी संभावना है। सिंधिया ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भाजपा के प्रमुख चेहरे बने रहेंगे। राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और सिंधिया के बीच जारी चर्चाएं इसकी पुष्टि करती हैं।

रतलाम जिले को सरकार में स्थान मिलने के प्रबल आसार

इस बार रतलाम जिले के जावरा से चार बार के विधायक डॉ. राजेंद्र पांडेय और रतलाम के तीसरी बार विधायक बने चेतन्य काश्यप को मंत्रिमंडल में अथवा निगम मंडल में स्थान मिल सकता है। गौरतलब है कि डॉ. राजेंद्र पांडेय उन डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडेय की राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं जिन्होंने कांग्रेस के गढ़ जावरा में जनसंघ को पहली जीत दिलाई थी। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के घनिष्ठ और मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू को पराजित कर देश-दुनिया को चौंका दिया था। इस ऐतिहासिक जीत के बाद लक्ष्मीनारायण पांडेय लगातार आठ बार मंदसौर संसदीय क्षेत्र से भाजपा के सासंद बने लेकिन हर बार त्याग, तपस्या, कर्तव्यनिष्ठा, समर्पण के बावजूद उन्हें कभी भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। जातीय और क्षेत्रीय समीकरण एवं राजनीतिक मजबूरी के चलते उनके हिस्से सिर्फ बलिदान ही आया। उन्हीं की तरह उनके विधायक पुत्र डॉ. राजेंद्र पांडेय भी वरिष्ठ और तीन बार विधायक चुने जाने के बाद भी मंत्री पद नहीं पा सके। इस कारण उन्हें इस बार उचित सम्मान मिलना तय माना जा रहा है।

इधर, भाजपा का गढ़ होने के बाद भी लंबे समय से रतलाम शहर को सरकार में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला। यहां से लगातार दो चुनावों में भारी मतों के अंतर से जीते चेतन्य काश्यप 'भैयाजी' को भी मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिलने से रतलामवासियों में निराशा रही है। इसके बावजूद यहां की जनता ने विकास पुरुष के नाम से पहचाने जाने वाले काश्यप को तीसरी बार भी भारी मतों से जिताया है। इसलिए माना जा रहा है कि जनता के इस भरोसे को सम्मान देने के लिए तथा विधायक काश्यप के विजन, काम करने के तरीके और पार्टी को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को देखते हुए इस बार मंत्रिमंडल में या निगम मंडल में रतलाम शहर को स्थान मिलने की प्रबल संभावना है।