Supreme Court Decision : कर्मचारी के तबादले से यदि सेवा शर्तों में बदलाव होता है तो लागू होगी आईडी अधिनियम की धारा 9A, कर्मचारी को नोटिस देना होगा जरूरी
Supreme Court Decision : तबादला करने से यदि कर्मचारी की सेवा-शर्तों में बदलाव होता है तो आईडी एक्ट की धारा 9A के तहत करना होगी कार्रवाई।
कपारो इंजीनियरिंग इंडिया लिमिटेड विरुद्ध उम्मेदसिंह लोधी व अन्य से जुड़े मामले में न्यायालय ने दिया आदेश, 25 हजार रुपए जुर्माना भी लगाया
नई दिल्ली @ एसीएन टाइम्स . सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्णय फैसला (Supreme Court Decision) सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि कामगारों के स्थानांतरण के कारण उनकी सेवा की शर्तों और काम की प्रकृति में बदलाव होता है तो औद्योगिक विवाद (आईडी) अधिनियम, 1947 की चौथी अनुसूची और धारा 9A लागू होगी। आईडी अधिनियम की धारा 9A के अनुसार चौथी अनुसूची में निर्दिष्ट किसी भी मामले के संबंध में किसी भी कर्मचारी पर लागू सेवा की शर्तों में किसी भी बदलाव के संबंध में नियोक्ता को कर्मचारी को नोटिस देना होगा। देवास से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारी का तबादला करने वाले उद्योग प्रबंधन के विरुद्ध 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है।
यह महत्वपूर्ण निर्णय न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की पीठ (Supreme Court Decision) ने दिया। न्यायालय कपारो इंजीनियरिंग इंडिया लिमिटेड बनाम उम्मेद सिंह लोधी और अन्य से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही थी। इस मामले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के श्रम न्यायालय के फैसले को बरकरार रखने के निर्णय दिया गया था। इसमें श्रम न्यायालय ने संबंधित कर्मचारियों के स्थानांतरण के आदेश को अवैध और अमान्य घोषित किया था। इसके विरुद्ध प्रबंधन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी। पीठ ने उक्त अपील खारिज कर प्रबंधन पर 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया। शीर्ष कोर्ट ने उक्त स्थानांतरण को मनमाना, दुर्भावना और उत्पीड़न वाला करार दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारियों के स्थानांतरण को मनमाना, दुर्भावना व उत्पीड़न माना
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Decision) ने मामले में कहा है कि,- "संबंधित कामगार को देवास से चोपांकी, जो लगभग 900 किलोमीटर दूर है, स्थानांतरित करने का 23.01.2015 का आदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम की चौथी अनुसूची के साथ पठित धारा 9ए का उल्लंघन है और मनमाना, दुर्भावना और उत्पीड़न है। जैसा कि ऊपर देखा गया है, इस तरह के स्थानांतरण से, "वर्कमैन" के रूप में उनकी स्थिति "पर्यवेक्षक" के रूप में बदल जाएगी। चोपांकी में उनके स्थानांतरण के बाद और पर्यवेक्षक के रूप में काम करने के बाद इस तरह के बदलाव से वे संबंधथित लाभों से वंचित हो जाएंगे।"
यह है पूरा मामला : 13 जनवरी 2015 को 900 किमी दूर कर दिया था तबादला
मामला देवास के कपारो इंजीनियरिंग इंडिया लिमिटेड द्वारा कर्मचारी उम्मेद सिंह लोधी और अन्य सहित 9 कामगारों का है। प्रबंधन द्वारा लोधी सहित अन्य का 13 जनवरी 2015 को राजस्थान के अलवर जिला स्थित चोपांकी स्थानांतरण कर दिया गया था। चोपांकी देवास से 900 किलोमीटर दूर है। इसके विरुद्ध कामगारों ने अपने संघ के माध्यम से औद्योगिक विवाद को सक्षम प्राधिकारी के समक्ष उठाया लेकिन सुलह की कार्यवाही विफल रही। इसके चलते मामला श्रम न्यायालय में पहुंचा।
जहां स्थानांतरण किया गया वहां न तो शैक्षिक व चिकित्सा सुविधा थी न 40-50 किमी तक आवासी क्षेत्र
श्रम न्यायालय को कामगारों ने बताया कि कि देवास कारखाने में कामगारों की संख्या को कम करने के इरादे से उनका स्थानांतरण दुर्भावना से किया गया। यह अधिनियम की धारा 9A के तहत अवैध परिवर्तन है। नियोक्ता ने कामगारों पर इस्तीफा देने के लिए दबाव डाला और इनकार करने पर उन्हें बिना किसी उचित कारण के राजस्थान के चोपांकी स्थानांतरित कर दिया, जो कि 900 किलोमीटर दूर है। स्थानांतरण से उनके काम की प्रकृति बदल जाएगी। वे देवास में प्रिसिजन पाइप का निर्माण करते हैं जबकि चोपांकी में काम नट और बोल्ट के निर्माण का है। उनके लिए बहुत कठिनाई होगी क्योंकि जिस स्थान पर उनका स्थानांतरण किया गया था, वहां कोई शैक्षिक और चिकित्सा सुविधा नहीं थी।
स्थानांतरण उनके स्कूल जाने वाले बच्चों और वृद्ध माता-पिता को परेशान करने के उद्देश्य से किया गया है। जिस स्थान पर स्थानांतरण किया गया वहां 40-50 किलोमीटर के भीतर कोई आवासीय क्षेत्र भी नहीं था और न ही परिवहन की सुविधा ही थी।
नियोक्ता ने एक्ट का प्रावधान नकारा, कहा- नोटिस देने की जरूरत ही नहीं थी
नियोक्ता ने श्रम न्यायालय के समक्ष अपना जवाब प्रस्तुत किया और देवास में कामगारों की संख्या को कम करने के लिए के कर्मचारियों को स्थानांतरित करने के तथ्य को नकार दिया। प्रबंधन का दावा था कि कोई अनुचित श्रम प्रथा नहीं अपनाई गई। यह भी कहा कि मामले में आई. डी. अधिनियम की धारा 9A के तहत किसी नोटिस की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि देवास में उत्पादन में लगातार कमी हो रही थी और कर्मचारी सरप्लस हो गए थे। इसलिए कामगारों के रोजगार को जारी रखने के लिए सेवा-शर्तों के अनुरूप उनका तबादला किया गया।
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मामले में नियोक्ता (उद्योग प्रबंधन) श्रम न्यायालय में यह साबित नहीं कर सका कि देवास कारखाने में उत्पादन में लगातार कमी हो रही थी और कर्मचारी अधिशेष हो गए थे। न्यायालय ने पाया कि देवास में नियोजित व्यक्तियों की संख्या को कम करने के इरादे से ही 9 कामगारों को देवास से स्थानांतरित किया गया था। इसे आई. डी. अधिनियम की अनुसूची 4 के खंड 11 द्वारा कवर किया गया। परिवर्तन की कोई जानकारी भी नहीं दी गई। अतः श्रम न्यायालय ने स्थानांतरण आदेश को आई. डी. अधिनियम की धारा 9ए का उल्लंघन माना। इसके चलते ही श्रम न्यायालय ने स्थानांतरण आदेश अवैध मानते हुए निरस्त कर दिया था
हाईकोर्ट की एकल और डिवीजन बेंच ने भी खारिज कर दी प्रबंधन की रिट याचिकाएं
प्रबंधन ने श्रम न्यायालय के निर्णय और आदेश से असंतुष्ट होकर मप्र हाईकोर्ट में रिट पिटिशन दायर की। एकल बेंच द्वारा रिट पिटिशन खारिज करने पर नियोक्ताओं ने हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच का दरवाजा खटखटाया लेकिन याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं होने से डिवीजन बेंच ने भी खारिज कर दिया। बाद में प्रबंधन ने शीर्ष न्यायालय की शरण ली लेकिन वहां भी दाल नहीं गली। शीर्ष न्यायालय (Supreme Court Decision) ने भी उद्योग प्रबंधन द्वारा किए गए स्थानांतरण को आई. डी. एक्ट की धारा 9A का उल्लंघन माना।
सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों और साक्ष्यों के आधार पर यह की टिप्पणी
रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों पर विचार करते हुए शीर्ष न्यायालय (Supreme Court Decision) की बेंच ने कहा कि, "रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से सामने आता है कि संबंधित प्रतिवादी - कर्मचारी देवास में कार्यरत थे और 25 से 30 वर्षों से अधिक समय से देवास में काम कर रहे थे। उन सभी का अचानक से देवास से तबादला चोपांकी हो गया, जो देवास से 900 किलोमीटर की दूरी पर है। उनका तबादला कैरियर के अंतिम समय पर हुआ। जिस स्थान पर उनका स्थानांतरण किया गया, वहां कोई शैक्षिक और चिकित्सा सुविधाएं भी नहीं थीं। वह स्थान जहां उनका स्थानांतरण किया गया था वहां परिवहन की सुविधा नहीं थी। संयंत्र से 40-50 किलोमीटर के भीतर कोई आवासीय क्षेत्र नहीं था। यह भी सामने आया है कि कामगारों को चोपांकी स्थानांतरित करके देवास कारखाने में श्रमिकों की संख्या नौ कम कर दी गई है।"
शीर्ष न्यायालय ने खारिज कर दिया उद्योग प्रबंधन का तर्क
न्यायमूर्ति एम. आर. शाह द्वारा लिखे गए फैसले में पीठ ने माना कि प्रतिवादी अधिनियम की धारा 2 (एस) के तहत कामगार थे और इसलिए उन्हें अधिनियम के प्रावधानों के तहत संरक्षण प्राप्त होगा। चोपांकी में उनके स्थानांतरण के कारण उन्हें पर्यवेक्षक की क्षमता में काम करना होगा। इससे वे अधिनियम के प्रावधानों से वंचित हो जाएंगे। अपीलकर्ता का यह कहना कि स्थानांतरण सेवा की शर्त का एक हिस्सा था और धारा 9A लागू नहीं होगा, इसका कोई अर्थ नहीं है।
पीठ ने कहा कि, "प्रश्न केवल स्थानांतरण के बारे में नहीं है। सवाल स्थानांतरण के परिणामों के बारे में है। वर्तमान मामले में, कार्य/सेवा शर्तों की प्रकृति को बदल दिया जाएगा और स्थानांतरण के परिणामों के परिणामस्वरूप सेवा शर्तों में परिवर्तन होगा और देवास कारखाने में कर्मचारियों की कमी होगी। इसके लिए चौथी अनुसूची और धारा 9A लागू होगी।" पीठ ने कहा कि- "यह स्थापित और साबित हुआ कि कर्मचारी संबंधित अधिनियम की धारा 2 (एस) की परिभाषा के भीतर 'कामगार' थे और इसलिए, अधिनियम के प्रावधानों के तहत सुरक्षा के हकदार थे।"