‘शुक्र है’ : पुष्पा'स डिज़ायर- आशीष दशोत्तर
व्यंग्य के महत्व को ध्यान में रखते हुए एसीएन टाइम्स द्वारा एक शृंखला शुरू की जा रही है जिसका शीर्षक ‘शुक्र है’। यह प्रति सप्ताह शुक्रवार इसी प्लेटफॉर्म पर पढ़ने को मिलेगी। अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजिए।
![‘शुक्र है’ : पुष्पा'स डिज़ायर- आशीष दशोत्तर](https://acntimes.com/uploads/images/2023/08/image_750x_64df04ec234a9.jpg)
व्यंग्य किसी भी बात को कहने की एक प्रभावक शैली है। सामान्य बात को अलग अंदाज में कहने का यह तरीका लोगों सोचने के लिए तो विवश करता ही है, व्यवस्थाओं से जुड़ी निष्क्रियता और सक्रियता की क्षमता को भी काफी हद तक प्रभावित करता है। जो बात खुल नहीं कही जा सकती या कहने में संकोच होता है, वह एक व्यंग्य के रूप में कही जा सकती है जिसकी स्वीकार्यता भी है। व्यंग्य के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए एसीएन टाइम्स द्वारा व्यंग्यों की एक शृंखला शुरू की जा रही है। इस शृंखला का शीर्षक ‘शुक्र है’ नियत किया गया है जो प्रति सप्ताह शुक्रवार को इसी प्लेटफॉर्म पर पढ़ने को मिलेगी। व्यंग्य लिखने, पढ़ने और समझने का यह सिलसिला चलता रहे, इसके लिए जरूरी है कि आपका प्रोत्साहन और सहयोग मिलता रहे।
हमारा यह प्रयास पसंद आए तो इसे औरों तक पहुंचाने में हमारी मदद करें। पसंद आए और नहीं पसंद आए, तब भी अपनी प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स जरूर दें। तो पढ़ते हैं शृंखला शुक्र है की पहली कड़ी के रूप में व्यंग्यकार और लेखक 'आशीष दशोत्तर' का यह व्यंग्य।
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पुष्पा'स डिज़ायर
आशीष दशोत्तर
'सभी बच्चे हिंदी बुक ओपन करेंगे। टुडे वी लर्न पुष्पा'स डिज़ायर। यू नो पुष्पा?'
पुष्पा नाम की बालिका हड़बड़ा कर उठी। 'नहीं मैडम मुझे नहीं मालूम।'
'ओह! तुम, नहीं पुष्पा। आई मीन पुष्पा... पुष्पा।'
मैडम ने ज़ोर दे कर कहा तो पुष्पा फिर बोली,' मैडम मैं ही पुष्पा हूं।'
'अरे, तुम पुष्पा नहीं। वो माकन लाल वाली।'
'मैडम, मेरे ही पप्पा का नाम माकनलाल है।'
'ओह, डिस्गस्टिंग। माकन मतलब वो कृष्णा वाला।'
इस बार कृष्णा ने खड़े होकर स्थिति स्पष्ट की, 'मैडम मेरे पप्पा का नाम माकनलाल नहीं रामचन्द्र है।'
'ओके। सिटडाउन। कृष्णा मतलब ईश्वर वाला। यू नो ईश्वर?'
'मेरे को तो कुछ पताइ नी है।' यह ईश्वर की आवाज़ थी।
'ओह ! गॉड। क्या मुसीबत है। इन्हें कैसे समझाऊं कि पुष्पा क्या है?'
मैडम को अचानक गौरी के बालों की क्लिप में फ्लावर की डिज़ाइन दिखी। उन्होंने तत्काल गौरी को बुलाया। 'यह क्लिप निकाल कर मुझे दो।'
'मैडम, मम्मी ने मना किया है। यह किलिप तो पड़ौस वाली आंटी से मांग कर मम्मी ने पहनाई है।' मासूम गौरी बोली।
'अरे ! मैं ले थोड़ी रही हूं। समझा रही हूं।'
क्लिप हाथ में लेते ही मैडम ने बच्चों से पूछा, 'व्हाट इस दिज़?'
बच्चे चिल्ला उठे, 'बालों में लगाने का किलिप।'
मैडम ने फिर कहा, 'गौर से देखो! इसमें क्या बना हुआ है।'
बच्चे काफ़ी देर देखते रहे। उन्हें कुछ समझ नहीं आया।
मैडम ने ख़ुद कहा, 'देखो, इसमें फ्लावर दिख रहा है? यही पुष्पा है।'
इतने में गौरी बोल पड़ी, 'नहीं मैडम यह मेरा है।'
'क्लिप तुम्हारा है लेकिन यह फ्लावर पुष्पा का है।'
'ऐसा कैसे हो सकता है? मैं अपने किलिप में से कुछ भी पुष्पा को नहीं दूंगी।'
'अरे, देना नहीं है। मैं समझा रही हूं कि पुष्पा क्या है।'
इतने में राजू उठकर बोल पड़ा, मैडम जी ! मैं बताऊं। ये तो गेंदे का फूल है।'
'राइट। वेरी गुड। कितना इंटेलिजेंट बच्चा है। यही तो मैं समझा रही हूं। दिस इस पुष्पा।'
पुष्पा फिर खड़ी हो कर कुछ बोलती, इसके पहले मैडम ने उसे डांट कर बैठा दिया। 'बैठ जाओ। अब कोई कुछ नहीं बोलेगा। अब हम 'पुष्पा'ज डिज़ायर' पढ़ेंगे।'
बच्चों को कुछ समझ नहीं आया। शोर होने लगा।
इस बार मैडम ने झल्लाते हुए कहा, 'हम कविता पढ़ रहे हैं। यूं नो कविता?'
कविता ने तत्काल खड़े हो कर कहा, 'नी मैडम मुझे कुछ नी पता।'
'ओके... ओके। बुक में जो पोयम है, हम उसे पढ़ेंगे।'
मैडम कविता की पहली पंक्ति पढ़ने की कोशिश करती रही। वे पंक्ति पढ़ पाती उसके पहले ही पीरियड बदलने की घंटी बज गई। मैडम ने होमवर्क डायरी में लिख दिया, 'कल सभी बच्चे इस पोयम को लर्न करके आएंगे।'
अगले दिन बच्चे रटी रटाई 'पुष्प की अभिलाषा' का पाठ कर रहे थे। मैडम अपनी सीख पर इतरा रही थी। कविवर 'माखनलाल जी' की आत्मा क्या कह रही होगी, आप महसूस कर सकते हैं।
आशीष दशोत्तर
12/2, कोमल नगर
बरबड़ रोड, रतलाम - 457001
मो. नं. 9827084966