नीर-का-तीर : कांग्रेस का टिकट तय होते ही कई भाजपाइयों ने शहर विधायक व संगठन से काटी कन्नी तो एक वरिष्ठ नेता ने अपना दायरा सीमित कर दिया झटका
रतलाम भाजपा की मौजूदा स्थिति अजीब हालात में है। एक समय भाजपा नेता विधायक चेतन्य काश्यप की तरफ खिंचे चले जा रहे थे और लेकिन नगरीय निकाय के टिकट वितरण के बाद से स्थिति बदल गई है। अनदेखी से नाराज तो उनसे दूरी बना ही रहे हैं, विरोधी पार्टी का टिकट होते ही अवसरवादियों की भी आस्था डगमगाने लगी है।
नीरज कुमार शुक्ला
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । भाजपा के महापौर पद के प्रत्याशी प्रहलाद पटेल के नाम का बी-फॉर्म जारी हो चुका है। उन्हीं के एक अन्य नामाराशी ने नाम भी वापस ले लिया है लेकिन बगावत का शंखनाद कर चुके नेता अभी भी नगर सरकार में भाजपा की वापसी के लिए चुनौती बनकर खड़े हैं। पार्टी ने ऐसे नेताओं को अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी है। ऐसे में पार्टी के कतिपय वरिष्ठ नेताओं का कन्नी काटते नजर आना टिकट निर्धारण में अहम् भूमिका निभाने वाले शहर विधायक चेतन्य काश्यप और संगठन की साख प्रभावित कर सकती है।
भाजपा महापौर प्रत्याशी के लिए नाम लगभग तय हो चुका था। माना जा रहा था कि रतलाम से पूर्व एमआई सदस्य अशोक पोरवाल अधिकृत उम्मीदवार हो सकते हैं। अगर वे नहीं भी हुए तो मैरिज गार्डन संचालक प्रवीण सोनी को मौका मिल सकता है। इसके विपरीत आखरी समय में घटनाक्रम तेजी से परिवर्तन हुआ और नाम भी बदल गया। नाम बदलने में सबसे बड़ी भूमिका ही शहर विधायक चेतन्य काश्यप की रही जिसने ना केवल भाजपा के पूरे समीकरणों को उलट-पलट कर दिया बल्कि पार्टी में उनकी सर्वोच्चता भी साबित कर दी। इस समय तक पार्टी के कुछ अन्य अवसरवादी बड़े नेता भी चुंबक की तरह चिपके रहे। इनमें से एक नेता वे भी हैं जिनकी आस्था को लेकर पार्टी कार्यकर्ता हमेशा ही आशंकित रहते हैं। दरअसल पल-पल आस्थाएं बदलना और एक समय में एक से अधिक नावों में सवार रहना उनका नैसर्गिक गुण है।
कांग्रेस प्रत्याशी घोषित होते ही आस्था रूपी नाव में हो गया सूराख
पूर्व निगम अध्यक्ष पोरवाल का टिकट फाइनल न हो इसमें डगमगाती आस्था वाले नेताओं का भी योगदान कम नहीं रहा। इसके लिए वे दिन-रात विधायक काश्यप के निवास पर नजर आए। उनकी आस्था रूपी नाव में सूराख तो तब नजर आया जब कांग्रेस प्रत्याशी का नाम घोषित हो गया। नाम तय होते ही कतिपय भाजपा नेता रणछोड़ साबित हुए। यह विधायक काश्यप के लिए संभवतः पहला झटका था। दूसरा छटका तब लगा जब वरिष्ठ नेता और समाजसेवी की छवि वाले पूर्व एमआईसी सदस्य गोविंद काकानी ने अचानक ही खुद को एक सीमित दायरे में समेट लिया।
भाजपा के महापौर व पार्षदों के टिकट फाइनल होते ही उन्होंने ना केवल भाजपा के सभी वाट्सएप ग्रुप छोड़ दिए बल्कि भाजपा पदाधिकारियों और पत्रकारों तक के काल रिसीव करने बंद कर दिए। कोरोना काल में विधायक काश्यप के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जान की परवाह किए बिना शासकीय मेडिकल कॉलेज से लेकर जिला अस्पताल तक उल्लेखनीय सेवाएं देने वाले काकानी से यह अपेक्षा ना तो विधायक को थी और ना ही भाजपा को।
जिसे निर्दलीय रहते हराया वह संगठन में तीसरे नंबर का पदाधिकारी
एसीएन टाइम्स ने जब काकानी के इस रवैये को जानने के लिए उनके मित्रों को टटोलने का प्रयास किया तो उनकी नाराजगी का कारण समझ आया। उनके मित्रों में जो चर्चा है उसके मुताबिक 20 साल से पार्टी के कुछ गिने-चुने नेताओं का संगठन पर कब्जा है। इनमें से कई तो ऐसे हैं जिन्होंने कभी वार्ड तक का चुनाव नहीं जीता। काकानी निर्दलीय रहते हुए जिस व्यक्ति को हराया था वह तीन बार से संगठन में जिले के तीसरे नंबर के पदाधिकारी की जिम्मेदारी निभा रहा है। काकानी के मित्रों का कहना है कि सभी जीते हुए वरिष्ठ पार्षदों को संगठन में जिम्मेदारी देने के बजाय उन्हें पार्टी गाइड लाइन के नाम पर हासिये पर लाकर छोड़ दिया गया।
पार्टी से जुड़े लोग यह कहने में कतई नहीं हिचकिचा रहे हैं कि वर्तमान प्रत्याशी सहित पिछले तीनों ही महापौरों के टिकट सिर्फ पैसों को देखकर दिए गए ना कि योग्यता को देख कर। इस मामले में संगठन में बैठी सभी चौकड़ियों पर जमकर मनमानी करने के आरोप हैं। यही वजह है तीन बार के एमआईसी सदस्य को ना तो किसी टिकट के योग्य समझा गया और ना ही रतलाम विकास प्राधिकरण जैसी संस्था के योग्य। जैसे ही यह बात काकानी को समझ आई कि उनका सिर्फ उपयोग ही हो रहा है तो उन्होंने मौजूदा नगरीय निकाय चुनाव से दूरी बना ली।
22 जून के बाद ही स्पष्ट होगी स्थिति
गौरतलब है कि भाजपा की पिछली परिषद बुरी तरह फेल रही। नतीजतन जनता के बीच रहने वाले वरिष्ठ पार्षद और नेता आगे अपनी संभावनाओं पर धुंध छाई देख कर घर बैठ गए हैं। टिकट नहीं मिलने से नाराज नेताओं ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भाले गाड़ दिए हैं। वहीं कांग्रेस ने बाजार और पटरी पार के ठीक बीच के व्यक्ति को टिकट देकर भाजपा की अतिविश्वास वाली नींद उड़ा दी है। पार्टी ने सभी बागियों को नाम वापस लेने के लिए कहा है। ऐसा नहीं करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी भी दी है। चूंकि 22 जून नाम वापसी की आखिरी तारीख है। इसलिए आगामी दिनों में राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है, यह 22 जून के बाद ही स्पष्ट होगा।