बड़ा खुलासा : चंद्रग्रहण को लेकर क्यों बन रही संशय की स्थिति, इसके लिए कौन है जिम्मेदार और क्या है सच
कार्तिक पूर्णिमा (8 नवंबर 2022) को लेकर जनसामान्य में संशय की स्थिति निर्मित हो रही है। इसे दूर करने का प्रयास पंचांग से जुड़े विद्वानों ने किया है। यह आपके लिए उपयोगी है।

एसीएन टाइम्स @ धर्म डेस्क । कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा (8 नवंबर) के चंद्रग्रहण को लेकर जनमानस में संशय की स्थिति है। दरअसल कुछ स्थूल (सौर) गणितयुत पंचांगों में इस बारे में स्पष्ट उल्लेख नहीं होने से ऐसा हो रहा है। तमाम प्रयासों के बावजूद पंचांग निर्माणकर्ताओं में आपसी सामंजस्य एवं एकरूपता नहीं होने से उत्पन्न स्थिति का खामियाजा वैदिक कार्य संपन्न करने वाले और मंदिरों के पुजारियों को जनसामान्य के सामने अपमानित महसूस करना पड़ रहा है। जबकि वेधसिद्ध सूक्ष्म दृश्यगणितगत पंचांगों में पूरे भारत में शाम को चंद्रोदय काल से विभिन्न स्थानों में चंद्रग्रहण होने का स्पष्ट उल्लेख है।
पंचांग निर्माण की अनेक विधियां प्रचलित रही हैं। प्रमुख रूप से सूर्यसिद्धांत, ग्रहलाधव, मकरन्द तथा केतकी दृश्यगणित आदि में पंचांगीय परिगणित किया जा सकता है। समय-समय पर सिद्धांत ज्योतिष के प्रमुख आचार्यों ने पंचांग निर्माण पद्धति में परिवर्तन व परिवर्धन कर सूक्ष्म गणित का आधार लिया है। कुछ सौर पंचांगों में चतुर्थ शताब्दी तथा पन्द्रहवीं सदी की गणित पद्धति होने से आज ये सौर गणित की प्राचीन स्थिति किसी भी वेधशाला के आधुनिक सूक्ष्म यंत्रों के सम्मुख स्थूल होकर सान्तरिक हो गई है। ऐसे में कतिपय सौर पंचांगों क़े गणित के निष्कर्षों के आधार पर दोनों पद्धतियों में तिथियों में 6 घंटे तक, सूर्य व चंद्र ग्रहण में स्पर्श तथा मोक्ष काल में एक से डेढ़ घंटे तक अंतर देखने को मिलता है। यही नहीं ग्रहों के स्पष्ट काल में अनेक अंशों का तथा गुरु व शुक्र के उदयास्त काल में कई दिन का अंतर भी नजर आता है। प्राचीन कुछ सौर पंचांगों की सौरगणित की यह स्थूलता (अशुद्धता) वेधयंत्रों से प्रत्यक्ष रूप से दिखती है। वर्षों से इनमें किसी भी प्रकार की संशोधन नहीं होने के कारण ही यह विविधता देखने को मिलती है।
संशोधित सिद्धांत ज्योतिष ग्रंथों से निर्मित पंचांग में है एकरूपता
इसके उलट संशोधित सिद्धांत ज्योतिष ग्रंथों से निर्मित केतकी चित्रापक्षीय दृश्यगणित युक्त पंचांग का तिथि, नक्षत्र आदि मान, सूर्यादिग्रहों के स्पष्टकाल, सूर्य व चंद्र ग्रहण के प्रारंभ व मोक्षकाल तथा अन्य पंचांगीय सिद्धांतों का गणितीय निष्कर्ष एक जैसा रहता है। वेधशाला से उपलब्ध परिणाम में इसकी एकरूपता स्पष्ट है। कुछ सौर पद्धति के पंचांगों का गणितीय निष्कर्ष स्थूल होने एवं वेधसिद्ध नहीं होने पर सिद्धांत ज्योतिष के सभी प्रकारों में तिथि, नक्षत्र, ग्रहस्पष्ट ग्रहों के उदयास्त एवं ग्रहणों के कालों व अन्यान्य क्षेत्रों में अत्यधिक अंतर लोगों में दुविधा का कारण बन रहा है।
एक ही स्थान से निकलने वाले पंचांगों में भी है भिन्नता
ज्योतिषाचार्य पं. संजय शिवशंकर दवे के अनुसार कुछ पंचांगकर्ताओं की त्रुटि क़े चलते मूल भूमिगत धरातल स्तर पर वैदिक विधान कार्य करने वाले विप्रबंधु और मंदिरों में पूजा करने वाले ब्राह्मण पंडितों को इसका परिणाम भुगतना पड़ता है। अधिकतर पूजन कराने वाले विप्रबन्धु पंचांग की सूक्ष्मतम गणित से अनभिज्ञ रहते हैं। सभी अपने-अपने अनुसार प्रथक-प्रथक पंचांग क़ा उपयोग करते हैं। एक ही स्थान से निकलने वाले कुछ पंचांगों में भी भिन्नता देखने क़ो मिलती है।
कई बार अनुरोध के बाद भी नहीं हो रहा सुधार
पं. दवे ने बताया कि प्रायः जनमानस सीधे तौर पर ब्राह्मणों और मंदिरों की सेवा कर रहे पंडितों से प्रत्यक्ष सवाल करता है और इन्हें हंसी का पात्र बनाया जाता है। ऐसी असमंजस की स्थिति में उन्हें काफी अपमानित भी होना पड़ता है। समाज में इस प्रकार की स्थिति न बने इसके लिए कई बार अधिकतर पंचांग निर्माणकर्ता से प्रत्यक्ष और पत्र के माध्यम से अनुरोध भी किया गया। बावजूद सामंजस्य व एकरूपता स्थापित नहीं हो सकी। कुछ पंचांग निर्माणकर्ताओं के चलते समस्त विप्रबन्धुओं को जनमानस के समक्ष अपमानित और लज्जित होना पड़ता है।
आखिर, ऐसा क्यों हुआ
पंचांग निर्माण से जुड़े जानकारों के अनुसार सूर्य के परिभ्रमण के कारण कालांतर में इन पंचांगों में अंतर आ गया। कुछ पंचांग ने इनमें सुधारकर वेदसिद्ध प्रमाण प्राप्त किए। वब कुछ पंचांग में सुधार नहीं हो सका। वेदसिद्ध प्रमाण नहीं करने के कारण यह त्रुटियां आज भी बरकरार हैं। इसी कारण सौर दृश्यपंचांगों में अनेक बार तिथि और पर्वों में भारी अंतर आने से सामान्यजन दिग्भ्रमित हो जाता है। इससे पंचांगों पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है।
10 फीसदी पंचांग ही सौर आधारित
सिद्धविजय पंचांग के निर्माता एवं शासकीय महाविद्यालय जावरा के पूर्व प्राचार्य डॉ. (प्रो.) विष्णु कुमार शास्त्री के अनुसार भारतवर्ष में 90 प्रतिशत से अधिक चित्रापक्षीय सूक्ष्म दृश्य गणित अनुसार पंचांग प्रकाशित होते हैं। केवल कतिपय सौरपंचांगों के कारण तिथि पर्वो में अंतर आने से संदेहास्पद स्थिति निर्मित हो जाती है। इनकी संख्या महज 10 फीसदी के करीब है। इस कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा (8 नवंबर) को भारत के सभी चित्रापक्षीय दृश्यगणित युत पंचांगानुसार ग्रस्तोदिक चंद्रग्रहण होगा। वहीं सौर पंचांगों में उक्त चंद्रग्रहण के दृश्य (दिखने) होने की विवेचना नहीं है। यह स्पष्ट रूप से स्थूलता (वेधसिद्धरहित व अशुद्धता) का परिचायक है।
जानिए, इस चंद्रग्रहण के बारे में और कहां-कहां दिखेगा
प्रो. शास्त्री के अनुसार इस ग्रस्तोदय चंद्रग्रहण का स्पष्टकाल दिन में 2:39 बजे तथा मोक्ष (समाप्ति) काल सांयकाल 6:19 बजे होगा। विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न चंद्रोदय काल सूर्यास्तअंतर से लेकर 6:19 तक चंद्रग्रहण का पर्व काल होगा। पूर्वीभारत (असम, प. बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश में कहीं-कहीं डेढ़ घंटे से अधिक यह चंद्रग्रहण दिखाई देगा। उज्जैन व इंदौर में चंद्रोदय के समय सांय 5:43 बजे मिनट से ग्रहण आरंभ होकर 6:19 बजे मिनट पर समाप्त होगा जिसका पर्व काल 36 मिनट का रहेगा।
इस परिप्रेक्ष में शासकीय जीवाजी वेधशाला उज्जैन द्वारा दिनांक 1 नवंबर 2022 को प्रकाशित ग्रहण होने की सूचना पत्र से दृश्यगणित से ग्रहण होने की प्रमाणिकता सिद्ध होती है। यह ग्रहण ग्रस्तोदिक है। इस अनुसार ग्रहण पर्वकाल प्रारम्भ होने के 12 घंटे पूर्व अर्थात सूर्योदय पूर्व 5:43 से ग्रहण क़ा सूतक (वेध) काल आरंभ हो चुका है।
चंद्रग्रहण को लेकर जारी परिपत्र