केंद्र सरकार का बड़ा फैसला : एक देश एक चुनाव के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी गठित, सदस्यों का नोटिफिकेशन जल्द
केंद्र सरकार ने एक देश एक चुनाव के लिए कमेटी गठित की है। इसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बनाए गए हैं।
चुनावों में होने वाले खर्चों को सीमित करने सहित तमाम सुधारों के मद्दनजर केंद्र सराकर ने ‘एक देश एक चुनाव’ के लिए कमेटी गठित की है।
एसीएन टाइम्स @ नई दिल्ली । One Nation - One Election : भारत में एक देश एक चुनाव की व्यवस्था लागू करने को लेकर लंबे समय से विचार हो रहा है। केंद्र सरकार ने इस दिशा में बड़ा कदम बढ़ाते हुए इसके लिए कमेटी ही गठित कर दी है। ‘एक देश - एक चुनाव’ (One Nation, One Election) के लिए बनी कमेटी के अध्यक्ष की जिम्मेदारी पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंपी गई है। जल्दी ही इसके सदस्यों का नोटिफिकेशन भी होने वाला है। यह कमेटी इससे जुड़े सभी पहलुओं पर विचार कर रिपोर्ट सौंपेगी।
एक देश एक चुनाव की दिशा में केंद्र सरकार के इस पहले कदम को पक्ष द्वारा मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा है। हालांकि कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष इस पर सवाल उठा रहा है। कांग्रेस का सवाल है कि अभी इसकी क्या जरूरत है? कांग्रेस के मुताबिक इससे पहले महंगाई, बेरोजगारी, जैसे मुद्दों का निवारण किया जाना जरूरी है। विपक्ष के रुख को देखते हुए कहा जा रहा है कि सरकार के लिए यह फैसला लागू करना और इस संबंध में कानून बनाना इतना आसान नहीं है।
18 से 20 सितंबर तक होगा विशेष सत्र
इधर, केंद्र सरकार अपने एस कदम को निरंतर बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। चर्चा है कि इससे संबंधित बिल 18 से 22 सितंबर तक होने वाले विशेष सत्र में लाया जा सकता है। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी के मुताबिक 18 से 22 सितंबर तक दोनों सदनों का विशेष सत्र रहेगा। यह 17वीं लोकसभा का 13वां और राज्यसभा का 261वां सत्र होगा। इसमें 5 बैठकें होंगी।
पहले भी हो चुके हैं एक साथ चुनाव
बता दें कि 1951-52 में लोकसभा और सभी विधानसभा चुनाव एक साथ हो चुके हैं। 1957, 1962 और 1967 में भी ऐसा ही हुआ था। इसका क्रम भंग हुआ 1968- 1969 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण। 1970 में लोकसभा भी समय से पहले भंग हो गई थी। नतीजतन अब देश में लगभग हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते ही रहते हैं। चुनावों में होने वाले खर्च, प्रशासनिक अस्थिता सहित विभिन्न कारणों के चलते ही केंद्र सरकार एक देश एक चुनाव की व्यवस्था लागू करने पर विचार कर रही है।
ये फायदे होंगे इसके
- अलग-अलग चुनाव कराने में व्यय काफी होता है। पूरे देश में एक साथ चुनाव होने पर एक ही खर्च में लोकसभा और विधानसभा चुनाव संपन्न हो सकेंगे।
- हर चुनाव के दौरान और उसके बाद प्रशासनिक स्थिरता सामाना करना पड़ता है। इस पर भी विराम लग सकेगा।
- चुनावों में सुरक्षा बलों की तैनाती में भी काफी परेशानी होती है। एक साथ चुनाव होगा तो सुरक्षा बलों को बार-बार एक स्थान से दूसरे स्थान शिफ्ट नहीं करना पड़ेगा। उसके लिए अलग-अलग मॉनिटरिंग की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। खर्च भी कम होगा।
- राजनीतिक दलों को भी बार-बार खर्च करना पड़ता है। उन्हें हर चुनाव में पोस्टर, बैनर, बिल्ले और तमाम खर्च उठाने पड़ते हैं। कार्यकर्ताओं को भी साधना पड़ता है। ऐसी तमाम एक्सरसाइज से छुटकारा मिल सकेगा।
- निर्वाचन आयोग को लगभग हर साल कहीं न कहीं की मतदाता सूचियां अपडेट कराना होती हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए सूचियां अलग-अलग बनती हैं। इसमें श्रम और समय जाया होता है। एक साथ चुनाव होने से एक ही मतदाता सूची से काम हो जाएगा। इससे समय और श्रम, दोनों की बचत होगी।
- बार-बार मतदान केंद्रों का निर्धारण, रंगाई-पुताई और अन्य व्यवस्थाएं नहीं करना पड़ेंगी। मतदाताओं को भी बार-बार मतदान के लिए कतार में नहीं लगना पड़ेगा। ऑनलाइन वोटिंग जैसे सिस्टम को विकसित करना भी आसान होगा।
ये नुकसान और कठिनाइयां भी
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एक देश एक चुनाव से बड़ा नुकसान क्षेत्रीय दलों को होने का अंदेशा है, यही कारण है कि क्षेत्रीय दल इसके पक्ष में कम हैं। क्षेत्रीय दलों की मानें तो लोकसभा चुनाव में केंद्रीय स्तर के मुद्दों पर फोकस होता है जबकि विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दे हावी रहते हैं। एक देश एक चुनाव होने से क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दे गौण हो जाएंगे।
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एक देश एक चुनाव का फैसला लागू होते ही उन राज्यों की सरकारों को भंग करना पड़ेगा जहां चुनाव हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है। ऐसी सरकारों द्वारा विरोध किया जाना संभव है।
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देश में कई स्थान संवेदनशील होने से वहां चुनाव के दौरान घटनाएं होती रहती हैं। अभी अलग-अलग चुनाव होने से वहां की सुरक्षा व्यवस्था करना आसान होता है जबकि एक साथ चुनाव होने पर सुरक्षाबलों की कमी का संकट भी उत्पन्न हो सकता है।
सबके अपने – अपने तर्क
प्रधानमंत्री मोदी का ऐतिहासिक कदम
केंद्र सरकार के इस फैसले पर उत्तर प्रदेस के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने प्रसन्नता जाहिर की है। उन्होंने एक्स हैंडल पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा है कि देश के हित में उठाया गया शानदार कदम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में ऐतिहासिक कदम है।
यह नया नहीं, पुराना आइडिया है
एक तरफ विपक्ष सरकार की मंशा पर निशाना साध रहा तो दूसरी ओर छत्तीसगढ़ काबिज कांग्रेस सरकार के उप मुख्यमंत्री टी. एस. सिंह देव इसका समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि व्यक्तिगत स्तर पर मैं एक देश एक चुनाव का स्वागत करता हूं। उनका कहना है कि यह नया नहीं, पुराना ही आइडिया है।
चुनाव को आगे ले जाने का षड्यंत्र
शिवसेना (यूबीटी) और राज्यसभा सदस्य संजय राउत केंद्र सरकार के इस कदम से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने एक राष्ट्र एक चुनाव को तो ठीक बताया है, लेकिन वे निष्पक्ष चुनाव करवाने की वकालत भी कर रहे हैं। उनका आरोप है कि- केंद्र सरकार निष्पक्ष चुनाव की हमारी मांग को ठुकराने के लिए इसे लेकर आई है। राउत को लगता है कि ये चुनाव को आगे ले जाने का षड्यंत्र है।
यह भारत के संविधान के खिलाफ है
AIMIM पार्टी प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने तो इस अवधारणा को सिरे से ही खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा है कि- देश में वन नेशन - वन इलेक्शन नहीं हो सकता। उन्होंने यह भारत के संविधान के खिलाफ बताया है।
पहले चर्चा करेंगे फिर रुख स्पष्ट करेंगे
शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) नेता अनिल देसाई अभी कोई स्पष्ट राय नहीं देना चाहते हैं। वे कहते हैं कि एक राष्ट्र एक चुनाव अथवा चाहे जो भी अवधारणा हो, उसे विभिन्न राजनीतिक दलों के सामने रखा जाना चाहिए। देसाई के अनुसार इस पर सभी दल चर्चा करेंगे और उसके बाद ही रुख स्पष्ट किया जाएगा।
संसदीय व्यवस्था की मान्यताएं तोड़ रही सरकार
सपा नेता राम गोपाल यादव का कहना है कि संसदीय व्यवस्था की सारी मान्यताओं को यह सरकार तोड़ रही है। अगर विशेष सत्र बुलाना था तो सरकार को सभी विपक्षी पार्टियों से कम से कम अनौपचारिक तौर पर बात करनी चाहिए थी। यादव के अुसार अब किसी को नहीं पता है कि एजेंडा क्या है और सत्र बुला लिया गया है।