विश्व परिवार दिवस पर विशेष : माता-पिता दुआ के दरख़्त है... अज़हर हाशमी

विश्व परिवार दिवस पर कवि अज़हर हाशमी की यह हिन्दी ग़ज़ल परिवार और संतान के जीवन में माता-पिता का महत्व बताती है। पढ़िए, गुनगुनाइए और आगे भी बढ़ाइए।

विश्व परिवार दिवस पर विशेष : माता-पिता दुआ के दरख़्त है... अज़हर हाशमी
विश्व परिवार दिवस पर विशेष।

माता-पिता दुआ के दरख़्त है

अज़हर हाशमी 

माँ का नरम मिज़ाज, पिता थोड़े सख़्त हैं,

बच्चों के लिए दोनों दुआ के दरख़्त हैं।

बचपन के नज़ारे को देखकर ये जानिए,
बच्चों के लिए माता-पिता पाँव-हस्त हैं।

सिर पे कभी पिता के, कभी माँ की गोद में,
बच्चों के लिए माता-पिता ताज-तख़्त हैं।

संतान को ख़ुश देखते हैं तो ये समझलो,
माता-पिता सुकून से हैं और मस्त हैं।

जिस घर में हैं संतान से माँ-बाप दुखी तो-
संतान के 'नक्षत्र' समझ लेना 'अस्त' हैं।


(रचना कवि 'अज़हर हाशमी' के हिन्दी ग़ज़ल संग्रह 'मामला पानी का' से साभार।)