विश्व जल दिवस (22 मार्च) पर विशेष : सबकुछ है ‘मामला पानी का’ इसलिए ‘जल बचाना है जरूरी’ 

विश्व जल दिवस (22 मार्च) पर यह विशेष आलेख एक बार अवश्य पढ़ें। पसंद आए तो औरों से भी साझा करें क्योंकि सबकुछ मामला पानी का है और जल बचाना है जरूरी।

विश्व जल दिवस (22 मार्च) पर विशेष : सबकुछ है ‘मामला पानी का’ इसलिए ‘जल बचाना है जरूरी’ 
विश्व जल दिवस पर विशेष...

नीरज  कुमार शुक्ला

आज 22 मार्च है और इस दिन को पानी के महत्व को समझान के लिए 'विश्व जल दिवस' मनाया जाता है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि, सृष्टि के जिन पंचमहाभूतों में से एक तत्व ‘जल’ है उसी का महत्व लोगों को बताना पड़ रहा है। आज हमें जल बचाने के लिए चर्चा करना पड़ रही है। वैज्ञानिक हों, लेखक हों या फिर कवि, आज सभी इसी के लिए चिंतित नजर आते हैं।

सृष्टि की तमाम संरचनाओं में से ज्यादातर में जल की ही प्रधानता है। समुद्री जीवों में उनके कुल भार का 95 से 97 फीसदी तक पानी होता है जबकि मनुष्य के एक महीने के भ्रूण के कुल भार का 93 फीसदी पानी होता है। हमारे प्राचीन धर्म और ज्ञान, ग्रंथों, वेदों और पुराणों में जल की महिमा को लेकर काफी कुछ कहा, लिखा और बताया गया है। ‘ऋग्वेद’ के 1028 मंत्रों में प्रकृति और प्राकृतिक शक्तियों की ही स्तुति है जिसमें हवा, पानी, धरती, आकाश और अग्नि शामिल है। ऋग्वेद में ही जीवन की उत्पत्ति पंचमहाभूतों से बताई गई है जिसमें जल को विशेष बताया गया है और यह भी कहा गया है कि- ‘सलिलम् सर्वम् इदम्।’ इसी तरह ‘अथर्ववेद’ में समुद्र को सजीवों का पालना कहा गया है। भारतीय दर्शन में जल को देवता, नदियों को देवी माना गया है।

अन्य सभ्यताओं में भी पानी का महत्व

दुनिया की अन्य सभ्यताओं में भी पानी की महत्ता का व्यापक वर्णन है। आज के ‘ईराक’ के नजदीक स्थित ‘दज़ला’ और ‘फरात’ नदियों के किनारे बसी ‘मेसोपोटामिया’ की प्राचान सभ्यता के लोगों का भी मानना था कि ‘नम्मू’ समुद्र की देवी थी। उन्हीं ने स्वर्ग और धरती को जन्म दिया। यानी नम्मू को पानी के देवता की मां मानी जाती थीं। ‘यहूदी’ और ‘ईसाई’ परंपरा में भी माना गया है कि ईश्वर ने सृष्टि की रचना की और धरती को स्वर्ग से अलग करने के लिए पानी की रचना की।

‘जल जीवन का आधार’ फिर भी इसके बारे में सबकुछ नहीं जानते

वैज्ञानिक अवधारणा के अनुसार दो तत्वों ‘ऑक्सीजन’ (एक अणु) और ‘हाइड्रोजन’ (दो अणु) से मिल कर बना पानी एक रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन और पारदर्शी द्रव है। शायद इन कारणों से ही लोगों को लगता है कि शायद यह अक्रियाशील द्रव है, जबकि सच तो यह है कि यह अद्भुत गुण-संपन्न यौगिक और बेहद क्रियाशील भी। महज तीन अणुओं से बना पानी अपनी वैविध्य के कारण किसी को भी अचरज में डाल सकता है और उसका श्रेय जाता है ‘हाइड्रोजन बंध’ को। पहली बार हाइड्रोजन बंध शब्द का प्रयोग अमेरिकी रसायनशास्त्री 'गिल्बर्ट ल्यूइस’ ने 1929 में किया था। पानी के निर्माण में इसी तीसरी चीज का संकेत 1920 के दशक में 'ऑन वाटर, डी.एच. लॉरेंस' ने दिया था। उन्होंने कहा था कि- पानी H2O है, यानी दो भाग हाइड्रोजन और भाग ऑक्सीजन, लेकिन उसमें एक तीसरी चीज भी है जो उसे पानी बनाती है और उसे कोई नहीं जानता।

‘थॉमस किंग’ ने भी कहा है कि- ‘जैसा कि हम जानत हैं, धरती पर मौजूद सभी पदार्थों में पानी सबसे साधारण, सबसे अहम और सबसे आश्चर्यजनक है, फिर भी अधिकतर लोग इसक बारे में बहुत कम जानते हैं।’ यह जानने और समझने के लिए हम भी चर्चा कर लेते हैं। ‘अल्बर्ट वॉन जेंट ग्योर्गी’ ने तो सीधे शब्दों में कहा है कि ‘जल जीवन का आधार है।’ 

फिर भी नहीं संवेदनशील

यत्र, तत्र, सर्वत्र पानी अर्थात् जल है फिर भी पानी का संकट है। कहते हैं कि जो चीज हमें बेमोल और बिना मेहनत के मिली होती है, उसे लेकर हम कम संवेदनशील होते हैं। इसी असंवेदनशीलता के चलते हम आधुनिकता की दौड़ में जीवन के आधार ‘जल’ को दूषित कर देने पर उतारू हैं। हम पानी उलीचने की अपनी आदत के कारण धरती की कोख को भी सुखा देने पर उतारू हैं। इसका खामियाजा भी हमें ही भुगतना पड़ रहा है। 97 फीसदी तक उपलब्धता होने के बाद भी हम मानसून में होने वाली बारिश के लिए तरसने लगे हैं, गांवों-शहरों में पीने के पानी का संकट गहराने लगा है क्योंकि जिन नदियों और जलाशयों को हम देवी-देवता की तरह पूजते थे, उन्हें हमने अपनी शारीरिक-मानसिक गंदगी उड़ेलने का स्थल बना लिया है। अगर हम अभी नहीं संभले तो आगे और भी भयावह परिस्थितियों का सामना करना तय है। अभी भी वक्त है, हम और आप संभल जाएं।

साहित्यकार, चिंतक, समालोचक और कवि 'प्रो. अज़हर हाशमी' का भी तो यही कहना है कि जब सारा 'मामला पानी का' है तो 'जल बचाना जरूरी है’ और 'पौधों का प्लेटफ़ॉर्म बनाना है जरूरी।'

(प्रो. अज़हर हाशमी)

मामला पानी का !

कुछ लोग कठिन, कुछ सरल, मामला पानी का,

कुछ अमृत हैं, कुछ गरल, मामला पानी का !

आँधी में जड़ से पेड़ उखड़ जाते लेकिन,

पर्वत रहते हैं अटल, मामला पानी का !

वाणी परिभाषित करती जन की फ़ितरत को,

वाणी दूषित या विमल, मामला पानी का!

जिनको शब्दों के संस्कार तक नहीं पता,

क्या ख़ाक लिखेंगे ग़ज़ल, मामला पानी का !

थोड़े शब्दों में सारा सार यही है बस,

ये सत-रज-तम दरअसल मामला पानी का !

(‘मामला पानी का’ से साभार)

...जल बचाना है जरूरी

हर तरह से जल बचाना है जरूरी,

रूठी नदियों को मनाना है जरूरी।

जल बचेगा तब ही तो दुनिया बचेगी,

नीर के बादल बुलाना है जरूरी।

जिस तरह से हम उगाते साग-सब्जी,

उस तरह से जल उगाना है जरूरी।

बावड़ी-तालाब की करके सफाई,

पानी का परचम उठाना है जरूरी।

नींद गहरी सो गए हैं झील-झरने,

झील-झरनों को जगाना है जरूरी।

(हिंदी दैनिक ‘पत्रिका’ से साभार)

... और यह ऐसे होगा

धरती पे हमें पौधे लगाना है ज़रूरी,

हरियाली की चूनर को सजाना है ज़रूरी।

माता की तरह धरती निभाती हे अपना फ़र्ज़,

हमको भी अपना फ़र्ज़ निभाना है ज़रूरी।

पौधों को लगाना ही नहीं सिर्फ़ है क़ाफ़ी,

रक्षक की तरह उनको बचाना है ज़रूरी।

पौधे लगायें तो नहीं रूठेगा मानसून,

वर्षा को इस तरह से बुलाना है जरूरी।

पौधे बनेंगे पेड़, पंछी लौट आयेंगे,

ग़ायब हुई गौरेया का आना है ज़रूरी।

पर्यावरण है 'ट्रेन' तो 'पटरी' है प्रकृति,

पौधों का 'प्लेटफ़ॉर्म' बनाना है जरूरी।

(‘मामला पानी का’ से साभार)

खुद करें और दूसरों को भी समझाएं... 

जल बचत का अर्थ हम सबको बताएँ

जल से सृष्टि, पाठ यह सबको पढ़ाएँ।

जल बहुत अनमोल, हम जल को बचाएँ

अच्छा यही कि व्यर्थ न जल को बहाएँ।

(‘मुक्तक शतक’ से साभार)

कर्म के बिना यह संभव नहीं... 

जल की पहचान है तरलता में

मन का आनंद है सरलता में

भाग्य होता है, बात मानी पर

कर्म ही खास है सफलता में।

(मुक्तक शतक से साभार)

यह कर लिया तो तय मानिए... 

जल-बचत का जो कोई परचम उठायेगा,

आनेवाला वक्त उसके गीत गायेगा।

हम बचाएँ जल, तो जंगल लहलहायेगा।

जो भी गायब है वो पक्षी, लौट आयेगा।

जल बचाएँ हम, नहीं 'सूखा' सतायेगा,

यानी जल के नूर से जग, जगमगायेगा।

'जल बहुत अनमोल है', कहना नहीं काफी,

जल बचाएँ हम, कथन व्यवहार पायेगा।

हम बचाकर जल, दिखाएँ राह जग को तो-

जल-बचत का जग में जज़्बा जाग जायेगा।

(‘अपना ही गणतंत्र है बंधु!’ से साभार)

... तो धरती मुस्कुराएगी

जल बचाएँगे तो बगिया लहलहाएगी,

लुप्त गौरैया फुदक कर लौट आएगी।

गीत कोयलिया अभी गाती उदासी के,

जल बचाएँगे, खुशी के गीत गाएगी।

जल का न बचना तो जीवन में अँधेरा है,

जल बचे तो जिंदगी भी जगमगाएगी।

जल की चाबी से खुलेगा हर बंद ताला,

जल बचेगा तो फसल भरपूर आएगी।

मुस्कुराए कैसे धरती? लो सुनो उत्तर

हम बचाएँ जल तो धरती मुस्कुराएगी।

(‘अपना ही गणतंत्र है बंधु!’ से साभार)