पूर्व नगर निगम अध्यक्ष अशोक पोरवाल बने रतलाम विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष, रतलाम की राजनीति में कई मायने हैं इस नियुक्त के, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

रतलाम विकास प्राधिकरण पर 10 साल बाद हुई आशोक पोरवाल की नियुक्ति से ठिकाने बदलने वाले नेताओं को नया ठिकाना दिया है। यह नियुक्ति क्या मायने रखती है, यह जानने के लए पढ़ें यह खबर।

पूर्व नगर निगम अध्यक्ष अशोक पोरवाल बने रतलाम विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष, रतलाम की राजनीति में कई मायने हैं इस नियुक्त के, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर
आरडीए के अध्यक्ष बनाए गए अशोक पोरवाल।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । करीब 10 साल से बोतल में बंद रतलाम विकास प्राधिकरण (RDA) का अध्यक्ष रूपी जिन्न बाहर आ ही गया। तमाम खींचतान और तिकड़मों के बाद आखिरकार पूर्व नगर निगम अध्यक्ष अशोक पोरवाल को भाजपा ने इस पद के योग्य मान लिया। इसके साथ ही जहां कुछ कयासों पर विराम लगा है वहीं अब नई आशंकाएं-कुशंकाएं भी जन्म ले रही हैं। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा भी चल पड़ी है कि पोरवाल को मिली नई जिम्मेदारी के साथ ही अब भाजपा में शक्ति का तीसरा केंद्र भी बन गया है।

आरडीए की स्थापना के वक्त विष्णु त्रिपाठी की अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी हुई थी। उनका कार्यकाल बेहतर रहा और बहुत ही कम समय में महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट भी लॉन्च हुए हालांकि लोगों को उसका लाभ मिलने में वक्त लग गया। इसकी वजह आरडीए में 2013 से अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं होना और व्यवस्थाएं प्रशासक के पास होना रही। तकरीबन 10 साल के इंतजार के बाद पूर्व नगर निगम अध्यक्ष और पूर्व भाजयुमो अध्यक्ष अशोक पोरवाल को नए आरडीए अध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर दिया गया है।

माना जाता है कि पोरवाल का नगर निगम अध्यक्षीय कार्यकाल कॉल बेहतर रहा। भाजयुमो में दो टर्म निभाने वाले पोरवाल के पास युवाओं की जितनी मजबूत टीम है उतनी रतलाम जिले में अन्य किसी के पास नहीं है। पोरवाल के बाद जो भी भाजयुमो का अध्यक्ष बना उसने इस संगठन की साख को काफी हद तक नुकसान पहुंचाने का ही काम किया। बाद के अध्यक्षों के पास पोरवाल के जैसे समर्पित युवाओं की संख्या भी कम नजर आई। पोरवाल की आरडीए में नियुक्ति से इस पद के लिए  उम्मीद लगकर बैठे लोगों के हिस्से मायूसी आई है लेकिन यह मायूसी आगामी दिनों में क्या गुल खिलाएगी, फिलहाल कहना मुश्किल है।

राजनीति के भवसागर में भटकते लोगों को मिला तीसरा सहारा

रतलाम में भाजपा की गुटबाजी जगजाहिर है। पूर्व में जो लोग वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी की पूजा ही अपना धर्म समझते थे, उनमें से कई ने उनसे किनारा कर नया ठिकाना ढूंढना शुरू कर दिया था। पैलेस रोड से शुरू हुई तलाश स्टेशन रोड पर विधायक चेतन्य काश्यप के पास खत्म हुई और थोड़े ही दिन में यहां भाजपा की शक्ति का बड़ा केंद्र बन गया था। 

यह सभी जानते हैं कि काश्यप के पहले चुनाव के दौरान उनके प्रमुख सलाहकारों में गोविंद काकानी, अशोक पोरवाल, रवि जोहरी, अनीता कटारिया, निर्मल कटारिया, मनोहर पोरवाल, अशोक चौटाला, अरुण राव सहित अन्य शुमार थे। एक ठिकाने से दूसरे ठिकाने पहुंचे नेताओं ने बाद में फिर नया ठिकाना तलाशना शुरू कर दी इसकी कार्ड अलग वजहें हैं।  कुछ अपने पुराने ठिकाने जा पहुंचे। माना जा रहा है कि पुराने ठिकाने जाने से कतराने वाले लोग अब पोरवाल की तरफ रुख करते दिख रहे हैं या कर सकते हैं।

यह पार्टी का कोई डैमेज कंट्रोल तो नहीं, लेकिन...

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष द्वारा एक गोपनीय सर्वे करवाया गया था जिसमें यह बात उभर कर आई कि नगरीय निकाय चुनाव के बाद से भाजपा की स्थिति काफी प्रभावित हुई है। खासकर महापौर व पार्षद पद के प्रत्याशी के चयन के चलते। यह नाराज लॉबी आगामी दिनों में पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती थी/है। इसलिए पार्टी ने पोरवाल को यह जिम्मेदारी देकर एक तरह से डैमेज कंट्रोल करने की ही कोशिश की है। यह बात दीगर है कि पोरवाल की नियुक्ति से सामान्य वर्ग के लोगों में मायूसी है। पहले महापौर प्रत्याशी और अब आरडीए अध्यक्ष के रूप में पार्टी ने ओबीसी को महत्व दिया जिससे सामान्य वर्ग में नाराजगी बताई जा रही है। भाजपा जिला अध्यक्ष को लेकर पहले ही लोगों में नाराजगी है जो आगे भी बनी रहेगी क्योंकि फिरहाल नए अध्यक्ष की घोषणा के आसार कम ही नजर आ रहे हैं।

डागा, काकानी, चौटाला और पोरवाल पर निगाह

आरडीए के लिए प्रयासरत लोगों में पूर्व महापौर शैलेंद्र डागा, पूर्व एमआईसी सदस्य गोविंद काकानी, मनोहर पोरवाल, पूर्व जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष अशोक चौटाला, प्रवीण सैनी आदि भी प्रयासरत थे। इनके हिस्से मायूसी ही आई है। इसलिए कयास लग रहे हैं कि अब इनमें से ज्यादातर की नज़र विधायक के टिकट या अन्य पदों पर होगी जो फिरहाल दूर के ढोल प्रतीत हो रहे हैं।

पोरवाल के लिए यह चुनौती भी

आरडीए अध्यक्ष मैंने ऐसे पोरवाल के कद में वृद्धि तो होगी और प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी किंतु यह उनके लिए एक बड़ी चुनौती भी होगी। ये चुनौतियां हैं खाली खजाने वाली संस्था के संचालन, धन के अभाव में पुराने प्रोजेक्ट को बेहतर बनाना तथा नए की लॉन्चिंग, वेतन और भत्ते इत्यादि का भुगतान समय पर होता रहे, इसकी ठोस व्यवस्था करवाना।