नीर-का-तीर : पटवारियों की हड़ताल यानी सूत ना कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा, अफसर उदार थे तब तक सब ठीक था, आईना दिखाया तो बुरा मान गए

रतलाम जिले के पटवारी तीन दिन हड़ताल पर उतर गए हैं। कलेक्टर द्वारा सस्पेंड करने की चेतावनी से नाराज पटवारियों की यह हड़ताल सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम लट्ठा साबित हो रही है।

नीर-का-तीर : पटवारियों की हड़ताल यानी सूत ना कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा, अफसर उदार थे तब तक सब ठीक था, आईना दिखाया तो बुरा मान गए
नीर का तीर।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । प्रशासनिक अफसरों का संवेदनशील होना जनता के लिए  तो अच्छा है लेकिन कर्मचारियों को यह नागवार ही गुजरती है। इसके साइड इफेक्ट किस रूप में कब सामने आ जाएं, कह नहीं सकते। सीएम से लेकर जिला स्तर के जनप्रतिनिधि और अधिकारी तक सभी जनता को सुशासन देने की बात कर रहे हैं और इसके प्रयास भी कर रहे हैं। जनता इसे सराह रही है जबकि सरकारी कारिंदों की नजर में यह खटक रहा है। पटवारियों की हड़ताल इसका ताजा उदाहरण है, जो सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम लट्ठा वाली कहावत चरितार्थ कर रही है।

जनता को सुशासन देने के लिए अमले पर नकेल कसना जरूरी है। ऐसी ही एक कार्रवाई कलेक्टर नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी ने हल ही में कर डाली। उन्होंने दो लापरवाह पटवारियों को निलंबित करने का निर्देश दिया तो वे सारे पटवारी बुरा मान गए। निलंबित करने के निर्देश का उद्देश्य अन्य लापरवाह पटवारियों और अमले को सबक सिखाना था लेकिन हो गया इसका उल्टा। कलेक्टर के मौखिक फरमान से पटवारी इतने आहत हुए कि वे लामबंद होकर तीन दिन की हड़ताल पर ही उतर गए। 

दर्द पेट में, बता रहे पैर में

प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार जिस मौखिक आदेश से पटवारी खफा हैं, वह अभी तक कागज पर उतरा ही नहीं है। यानी निलंबन का आदेश जारी होना तो दूर, अभी तक किसी पटवारी को नोटिस तक जारी नहीं हुआ है। बावजूद इसके पटवारियों के हड़ताल पर उतरना समझ से परे है। हड़ताल को लेकर लोगों का कहना है कि दर्द तो पटवारियों के पेट में है लेकिन वे बता रहे है पैर। लोगों में पेट में दर्द से आशय पटावारियों की कारगुजारियां अफसरों की नजर में आना है। कहा जा रहा है कि पटवारियों को यह डर सताने लगा है कि अगर वे हावी नहीं हुए तो अफसर उन पर हावी हो जाएंगे। 

पद छोटा, रुतबा बड़ा

राजस्व विभाग की सबसे छोटी इकाई पटवारी ही हैं। कहने को यह पद छोटा जरूर है लेकिन इनका रुतबा काफी बड़ा है। पटवारी होने के मायने कोई किसानों और ग्रामीणों से पूछे। पटवारियों के पेन की एक छोटी सी लकीर भी किसी जिला अधिकारी से कम नहीं है। जिले में ऐसे पटवारियों की संख्या काफी है जिनके उपलब्ध साधान-संसाधन और सुख-सुविधाएं किसी बड़े अफसर के पास उपलब्ध वस्तुओं से कहीं ज्यादा हैं।

कहीं अनुकंपा ज्यादा तो नहीं हो गई

प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक जिन कलेक्टर ने पटवारियों को निलंबित करने का निर्देश दिया, वही दिन समय पूर्व तक पटवारियों पर अनुकंपा बरसाने में कोई कसर नहीं रख रहे थे। अनुकंपा नियुक्ति हो या फिर पटवारियों की उनकी पसंद वाले स्थान पर पदस्थ करना अथवा उनकी बहाली, कलेक्टर सहित अन्य बड़े अफसर काफी उदारता बरत रहे थे। उदारता बरतने तक तो सब ठीक रहा लेकिन जैसे ही अफसरों ने पटवारियों की लापरवायों की मॉनिटरिंग शुरू की वैसे ही कलेक्टर और अन्य अफसर उनकी आंखों में खटकने लगे। ये पटवारियों की नजर में कब तक खटकेंगे, कह नहीं सकते।

इधर, पता चला है कि अब तक उदारता दिखाते आ रहे अफसरों का रुख अचानक ही बदल गया है और अब उन्होंने अपनी नजरें टेढ़ी कर ली हैं याती अब उनकी नजर पटवारियों के क्रियाकलापों पर लग गई हैं। उनकी हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही है, उनकी कर्मकुंडली भी तैयार करना शुरू कर दी गई है।