साहित्य सृजन : अज़हर हाशमी का ग़ज़ल-संग्रह 'मामला पानी का' हिन्दी साहित्य को सौगात है- डॉ. क्रांति चतुर्वेदी
प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि, लेखक एवं विचारकर प्रो. अज़हर हाशमी का नया ग़ज़ल संग्रह मामला पानी का प्रकाशित हो गया है। इसका वर्चुअल विमोचन वरिष्ठ संपादक डॉ. क्रांति चतुर्वेदी ने किया।
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । प्रसिद्ध लेखक और पर्यावरण- विशेषज्ञ डॉ. क्रांति चतुर्वेदी ने साहित्यकार प्रो. अज़हर हाशमी के हाल ही में प्रकाशित हिन्दी ग़ज़ल संग्रह 'मामला पानी का’ वर्चुअल विमोचन किया। डॉ. चतुर्वेदी ने इस ग़ज़ल संग्रह की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि- प्रो. हाशमी का ग़ज़ल-संग्रह 'मामला पानी का हिन्दी साहित्य को अमूल्य सौगात है।
वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि हाशमी हिन्दी साहित्य की कई विधाओं पर अधिकार पूर्वक लिखते हैं। संस्मरण से लेकर व्यंग्य तक, निबंध से लेकर मुक्तक तक, अतुकांत कविता से लेकर गीत और ग़ज़ल तक हाशमी की विलक्षण प्रतिमा से पाठको का साक्षात्कार होता है। खास बात यह है कि कई विधाओं में लिखने के बावजूद हाशमी मूलत: गीतकार और ग़ज़लकार पहले हैं तथा अन्य विधाओं के रचनाकार बाद में।
स्नेह के संदूक जैसी मां...
प्रो. अज़हर हाशमी का हिन्दी ग़ज़ल-संग्रह मामला पानी का उन सभी पहलुओं को रेखांकित करता है, जिन्हें हम पारिवारिक-सामाजिक साहित्यिक और सांस्कृतिक सरोकार कहते हैं। हाशमी का यह ग़ज़ल संग्रह शब्दों के ताने-बाने पर बुना हुआ सरोकारों का परिधान है। ग़ज़ल तो एक गुलदस्ते यानी पुष्पगुच्छ की तरह होती है जिसका हर शेर स्वतंत्र चिंतन का प्रतीक होता है। हाशमी की ग़ज़लों में भी यह बात है किंतु उन्होंने किसी एक विषय को लेकर भी शेर कहे है। इसकी पहली ग़ज़ल ही उसका प्रमाण है। इस ग़ज़ल का हर शेर माँ की महिमा बतलाता है। हाशमी ने अपनी ग़ज़लों में नए बिम्बों और प्रतीकों का बड़ा प्रभावी प्रयोग किया है। जैसे: स्नेह के संदूक जैसी माँ / जनवरी की धूप जैसी माँ।"
94 ग़ज़लों का संग्रह मामला पानी का
संदर्भ प्रकाशन, भोपाल द्वारा प्रकाशित मामला पानी का गजल संग्रह में 94 ग़ज़लें हैं। हर ग़ज़ल कोई-न-कोई संदेश देती है। कुछ शेर या काव्य-पंक्तियाँ तो ऐसी हैं कि बेहद सरल भाषा में संदेश दे जाती हैं। जैसे:- जो शख्स तेरे दुख में तेरे साथ खड़ा था / कद उसका फ़रिश्ते से कहीं ज्यादा बड़ा था। ग़ज़ल संग्रह के कुछ शीर्षक पाठकों को पढ़ने के लिए आकर्षित करते हैं। जैसे इतवार के अखबार जैसी माँ, न्याय है पिता', 'सूरज @ मकर संक्रांति', 'आग की बारिश', 'रिश्तों' से गायब गर्माहट की कस्तूरी', ईद मुबारक', 'वन घायल हैं’, ‘डरी सी नदियाँ’, 'दिल की धड़कन सही तो सही ज़िन्दगी’, 'कार' से भी ज्यादा संस्कार ज़रूरी’, 'चल पड़ा मौसम पहनकर कोहरे की वरदी।’
भूमिका यह कि- कोई भूमिका नहीं
सबसे उल्लेखनीय तो यह है कि प्राय: हर पुस्तक में किसी-न-किसी द्वारा लिखित भूमिका होती है, परंतु हाशमी ने ‘मामला पानी का’ में नवाचार करते हुए कहा है; भूमिका यह कि… कोई भूमिका नहीं। प्रो. हाशमी का यह हिन्दी ग़ज़ल संग्रह पाठकों को तो पसंद आएगा ही, नवोदित ग़ज़लकारों के लिए भी पाठशाला की तरह होगा।