वेतन व जीपीएफ का भुगतान नहीं हो रहा है तो सेवा शुल्क अदा कर दीजिए, अन्यथा चक्कर लगा-लगा कर घिस जाएंगी चप्पलें, क्योंकि यह मनमानी का दफ्तर है

शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन व भत्ते आदि का समय पर भुगतान करने के मामले में रतलाम का विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय नाकारा साबित हो रहा है। इस शिक्षक दिवस पर भी यहां के शिक्षकों को समय पर वेतन नहीं मिल सका। इससे उनमें असंतोष है।

वेतन व जीपीएफ का भुगतान नहीं हो रहा है तो सेवा शुल्क अदा कर दीजिए, अन्यथा चक्कर लगा-लगा कर घिस जाएंगी चप्पलें, क्योंकि यह मनमानी का दफ्तर है
मनमानी का दफ्तर।

रतलाम के विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय से जुड़े कर्मचारियों को समय पर नहीं मिलता वेतन, अन्य भुगतान में भी मनमानी का आलम

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । रतलाम विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय शिक्षकों के हितों का संरक्षण करने के बजाय कुठाराघात करने वाला कार्यालय साबित हो रहा है। खासकर वेतन, जीपीएफ लोन सहित अन्य आर्थिक मामलों के बिल कोषालय में समय पर लगाकर उनका भुगतान कराने के मामले में विभाग नकारा ही साबित हो रहा है। शिक्षकों को 1 वर्ष से ज्यादातर महीनों में तय समय पर वेतन का भुगतान नहीं हो पा रहा है। शिक्षकों के संगठन कई बार इस समस्या पर अधिकारियों का ध्यान आकर्षित कर चुके हैं लेकिन किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। जबकि अन्य विकासखंडों में शिक्षकों को हर माह समय पर वेतन व अन्य भुगतान हो रहे हैं।

अध्यापन और कर्मचारियों से संबंधित कार्य समय पर हो सकें और इसके लिए शिक्षा विभाग की व्यवस्थाओं का भी विकेंद्रीकरण किया गया है। जिला शिक्षा अधिकारी के अलावा विकासखंड शिक्षा अधिकारी सहित विभिन्न पदों की व्यवस्था है। बावजूद इनमें समन्वय नहीं होने और कतिपय अधिकारियों की मनमानी, अकर्मण्यता व अज्ञानता के चलते व्यवस्थाएं गड़बड़ा जाती हैं। रतलाम का विकासखंड शिक्षा कार्यालय इसका उदाहरण है। इससे संबंधित कर्मचारियों और शिक्षकीय स्टाफ को प्रायः समस्याओं से दो चार होना पड़ता है। खासकर लेखा शाखा में तो मनमानी का आलम है। यहां वेतन, जीपीएफ, लोन, बीमा क्लेम आदि अटकाना सामान्य बात है। रिटायर्ड शिक्षक-शिक्षिकाओं के अर्जित अवकाश, सामान्य भविष्य निधि की राशि, विभिन्न एरियर, जमा बीमा धनराशि आदि के भुगतान के लिए शिक्षा विभाग से जुड़े कई दलाल सक्रिय हैं।

10 से 15 फीसदी सेवा शुल्क, अन्यथा घिस जाती हैं चप्पलें

सूत्रों की मानें तो ये इन मदों की राशियों के भुगतान के लिए 10% से 15% तक का सेवा शुल्क वसूलते हैं। इसके बिना बिल भुगतान के लिए आगे नहीं बढ़ाते। चूंकि सेवानिवृत्ति के पश्चात उक्त मदों में शिक्षकों के जीवनभर की पूंजी, जो लाखों में होती है और उनके बुढ़ापे सहारा होती है इसलिए वे न चाहकर भी दलालों का शिकार बन जाते हैं। जो इस काकस से बचने का प्रयास करते हैं उनकी विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी कार्यालय के चक्कर काटते हुए चप्पलें तक घिस जाती हैं। इनमें अधिकतर ऐसे शिक्षक बताए जाते हैं जो या तो बीमार हो ते हैं या फिर विधवा, वृद्ध अथवा आने-जाने में असमर्थ होते हैं।

देयक गायब होने से उपजे विवाद के चलते करना पड़ी यह व्यवस्था

सूत्र बताते हैं कि कर्मचारियों के आर्थिक मामलों के समाधान के नाम पर चांदी काटने वाले दलालों का एक गिरोह लंबे अरसे से सक्रिय है। यह गिरोह कतिपय बाबू के संरक्षण में फल-फूल रहा है। बताया जा रहा है कि यह गोरखधंधा विकासखंड शिक्षा अधिकारी की नाक के नीचे ही चल रहा है। कर्मचारी संगठनों के अनुसार जब भी इस बारे में विकासखंड शिक्षा अधिकारी इसकी शिकायत की जाती है तो उनके द्वारा उसी बाबू के पास जाने का कह दिया जाता है। सुनने में आया है कि कुछ समय पूर्व संकुल से लगाए गए शिक्षकों के भुगतान संबंधी कई बिल गायब तक हो गए थे।

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चर्चा है कि जिन-जिन शिक्षकों से सेवपूर्ति होती गई उनके बिलों का भुगतान भी होता गया। ऐसे में जिन कर्मचारियों के देयक की फाइल नहीं मिलती थी उनके संकुल से दूसरे बिल सबमिट करने पड़ते रहे हैं। बताया जा रहा है कि संकुल कर्मचारियों एवं अधिकारियों ने इस पर आपत्ति ली और विवाद हुआ तो समस्या के निराकरण के लिए विकास खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय में एक रजिस्टर बनाया गया। इसमें संकुल से आने वाले समस्त बिलों को रजिस्टर्ड करना जरूरी किया गया है।

कलेक्टर की कार्रवाइयों से जागा भरोसा

कलेक्टर द्वारा लगातार व्यवस्थाओं में सुधार किये जाने से शिक्षक वर्ग में भी भरोसा जागा है कि अब उनकी इस समस्या का समाधान भी जल्द हो सकेगा। कार्रवाई के डर से कर्मचारी विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय और वहां के अमले को लेकर खुल कर नहीं बोल पा रहे हैं। उनका मानना है कि यदि कलेक्टर द्वारा अपने स्तर पर गोपनीय रूप से जांच कराई जाए तो रतलाम विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय की कई कारगुजारियां उजागर हो सकती हैं।