जमीन की जंग : आइस फैक्ट्री की बेशकीमती जमीन हड़पने के बहुचर्चित मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर, याचिकाकर्ता ने लगाए ये संगीन आरोप
आइस फैक्ट्री के संचालन हेतु रतलाम रियासत द्वारा लीज पर दी गई जमीन हड़पने के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में जमीन को पुनः शासकीय घोषित करने और जमीन हड़पने के षड्यंत्रकारियों को जेल में डालने की गुहार लगाई गई है।
समाजिक कार्यकर्ता एवं पूर्व कांग्रेस नेत्री अदिति दवेसर ने दायर की याचिका
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । शहर की आइस फैक्ट्री को सरकारी घोषित किए जाने की मांग को लेकर मप्र हाईकोर्ट में एक याचिका सामाजिक कार्यकर्ता एवं पूर्व कांग्रेस नेत्री एडवोकेट अदिति दवेसर ने दायर की है। इसमें खुद को मालिक बताते हुए जमीन बेचने वाले जोगेंद्रनाथ पुरी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। याचिकाकर्ता ने सरकार से उद्योग के संचालन के लिए लीज पर आवंटित सरकारी जमीन को निजी बताने के षड्यंत्र करने तथा इसमें सहभागी लोगों को जेल में डालने एवं जमीन पुनः शासकीय घोषित किए जाने की गुहार लगाई गई है।
दायर याचिका में अदिति दवेसर ने आरोप लगाया है है कि वर्तमान लीजधारी जोगेन्द्रनाथ पुरी द्वारा समय-समय पर झूठी जानकारियां देकर और अफसरों से साठं-गांठ कर शासकीय दस्तावेजों में जमीन अपने स्वामित्व की दर्ज करा ली। सुनियोजित षड्यंत्र रचते हुए लगभग 100 करोड़ रुपए कीमत की इस भूमि को ताबड़तोड़ विक्रय भी कर दिया। पेशे से एडवोकेट दवेसर ने न्यायालय को बताया कि उक्त भूमि लीज पट्टे पर जोगेन्द्रनाथ पुरी के पिता प्रेमनाथ पुरी को 1946 में 99 वर्ष की लीज पर आवंटित की गई थी। भूमि रतलाम रियासत के तत्कालीन महाराजा सज्जन सिंह ने आइस फैक्ट्री की स्थापना के विशेष प्रयोजन के लिए देते हुए उद्योग संचालित करने की अनुमति दी थी।
ऐसे हुआ सरकारी जमीन को निजी बनाने का खेल!
याचिका में न्यायालय को बताया गया है शासकीय रिकॉर्ड में लीजधारक के रूप में प्रेमनाथ पुरी का नाम था जिनके नाम के आगे उनके पिता आर. बी. (राय बहादुर) रामरतन का नाम दर्ज था। पूर्व में सभी लोग अपने नाम के आगे अपने पिताजी का नाम लगाया करते थे। शायद उसी परिपाटी का पालन करते हुए शासकीय अभिलेखों में आर. बी. (राय बहादुर) रामरतन का नाम दर्ज किया गया होगा। आर. बी. (राय बहादुर) राम रतन की मृत्यु वर्ष 1955 में हुई और उनका उक्त संपत्ति पर किसी भी प्रकार का कोई अधिकार नहीं था। बावजूद, जोगेन्द्रनाथ पुरी ने 1970 में 1955 में आर.बी. (राय बहादुर) रामरतन की मृत्यु होना दर्शाकर उक्त जमीन अपने नाम कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी। अपने पिता प्रेमनाथ पुरी के जीवित रहते हुए, सुनियोजित तरीके से शासकीय अभिलेखों में हेरा-फेरी करने के उद्देश्य से अधिकारियों को भ्रमित किया और उन्हें अंधेरे में रखा। इसके लिए सांठ-गांठ कर राजस्व अधिकारियों को आगे कर दिया गया। चौंकाने वाली बात यह है कि इसके लिए जोगेंद्रनाथ पुरी की ओर से कोई आवेदन भी नहीं दिया गया। फिर भी 1972 में सरकारी रिकॉर्ड में मूल लीजधारित प्रेमनाथ पुरी के स्थान पर जोगेन्द्रनाथ पुरी का नाम शासकीय पट्टा ग्रहिता के रूप में दर्ज करा दिया। इतना ही नहीं वर्ष 1975 मे जब नई पावतियां बनना शुरू हुईं तब 50978 क्रमांक की एक भू-अधिकार ऋण पुस्तिका भी जोगेन्द्रनाथ पुरी को बतौर लीजधारी जारी कर दी गई। याचिका में आरोप लगाया गया है कि जोगेंद्रनाथ पुरी द्वारा लीजधारी के चिह्न को मिटाकर अपने हाथ से ही भूमि स्वामी चिह्न पर (1) का निशान लगाकर एक कूटरचित दस्तावेज तैयार कर लिया। इसी के आधार पर बाद में पूरे प्रशासन को बर्गलाकर भूमि अपने नाम करने की एक गहरी साजिश भी रच डाली जिसमें वे सफल भी हो गए।
पिता की मृत्यु 1980 में हुई, पुत्र 1975 में ही लीजधारक बन गया
याचिकाकर्ता दवेसर के अनुसार वर्ष 1946 में प्रेमनाथ पुरी के नाम पर संपादित लीज पत्र का उनके जीवनकाल में बिना शासकीय अनुमति के किसी अन्य के नाम पर नामांतरण नहीं किया जा सकता था। ऐसा करने का अधिकार किसी को भी नहीं था। बावजूद इसके आर. बी. रामरतन की मृत्यु की सिर्फ जानकारी देकर तथा फर्जी पारिवारिक लेख को आधार बताकर जोगेन्द्रनाथ पुरी ने पिता प्रेमनाथ पुरी के जीवित रहते ही उनका नाम लीज पत्र से हटवा दिया। उनके स्थान पर 1975 में ही स्वंय का नाम बतौर लीजधारी दर्ज करवा लिया। बता दें कि, प्रेमनाथ पुरी की मृत्यु वर्ष 1980 में हुई। दवेसर का तर्क है कि जोगेंद्रनाथ पुरी का नाम पिता की मृत्यु के पहले ही शासकीय रिकॉर्ड में दर्ज हो जाना पूर्ण रूप से अवैध, नियम विरुद्ध है। यह शासकीय कार्यों में हेरा-फेरी व झूठी जानकारी देकर फर्जी दस्तावेजों के द्वारा नाम दर्ज कराने की पुष्टि भी करता है। अतः भू-अधिकार ऋण पुस्तिका के आधार पर किया गया कोई भी हस्तांतरण अवैध व शून्य घोषित किए जाने योग्य है।
षड्यंत्रकारी सहित अपराध में शामिल लोगों को हो जेल
एडवोकेट दवेसर के अनुसार जोगेन्द्रनाथ पुरी ने अपने नाम पर लीज डीड की जमीन को निजी भूमि स्वामी की जमीन बताने का लम्बा षड्यंत्र कर समय-समय पर विभिन्न न्यायालयों एवं शासकीय विभागों को भी भ्रमित किया गया। झूठी जानकारी देकर तथा दस्तावेजों में हेरा-फेरी करते हुए शासकीय लोगों पर अपना रोब दिखाया तथा संपर्कों व शासकीय प्रक्रिया की कमजोरियों का लाभ उठाकर 100 करोड़ रुपए की बेशकीमती जमीन अपने नाम दर्ज करवाकर बेच भी दी। इसमें अधिकारियों की भी सांठ-गांठ रही। अतः उक्त जमीन को पुनः शासकीय संपत्ति घोषित किया जाए। इसके साथ ही षड्यंत्रकारी जोगेंद्रनाथ पुरी तथा इस अपराध में शामिल अन्य लोगों को भी जेल में बंद कर कड़ी से कड़ी सजा दी जाए।