प्रसंगवश : कला और कलाकार के बीच के रिश्ते- आशीष दशोत्तर

प्रसिद्ध रंगकर्मी एडवोकेट कैलाश व्यास के जन्मदिन प्रसंग पर कला और कलाकार के रिश्ते बताता यह आलेख एक बार जरूर पढ़ें और तय करें कि सिर्फ फोटोग्राफी के समय ही नहीं, आप हरवक्त मुस्कुराएंगे।

प्रसंगवश : कला और कलाकार के बीच के रिश्ते- आशीष दशोत्तर
लगन शर्मा (फोटो जर्नलिस्ट) एवं कैलाश व्यास (रंगकर्मी)

आशीष दशोत्तर

एक विचार वरिष्ठ रंगकर्मी श्री कैलाश व्यास जी की ओर से कल की चर्चा में आया था कि क्या कारण है कि छायाकार श्री लगन शर्मा जी के सामने आते ही हमारा चेहरा अपने आप फोटो खिंचवाने के लिए तैयार हो जाता है?

यह सवाल कहने को तो बहुत सामान्य था मगर इस सवाल के पीछे मुझे कई सारे दृश्य घूमते हुए नज़र आए। प्रश्न सिर्फ़ यह नहीं है कि एक छायाकार जब कोई छायांकन करता है तो कैमरे के सामने खड़ा हुआ व्यक्ति उससे कितना इत्तेफ़ाक रखता है। दोनों का जुड़ाव कितना हो पाता है। कई बार यह होता है कि कैमरामैन के सामने खड़े कुछ लोग उससे जुड़ नहीं पाते, शायद जुड़ना नहीं चाहते हों तो उस तस्वीर को लेने में न तो छायाकार को आनंद आता है और न ही उस तस्वीर को देखने में किसी की कोई रुचि होती है। यह कला और कलाकार के बीच के संबंध की बात है।  

फ़ानी बदायूंनी कहते हैं-

 हम हैं उस के ख़याल की तस्वीर,

जिस की तस्वीर है ख़याल अपना।

कला और जीवन एक दूसरे पर आश्रित हैं। कलाकार, कल्पना और यथार्थ का समन्वय कर समाज के समक्ष आदर्श रूप प्रस्तुत करता है। इसी कारण जीवन का कला के स्वरूप पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। कलाकार जीवन के यथार्थ रूप को ही चित्रित नहीं करता, वरन् वह आदर्श रूप को भी प्रस्तुत करता है। यही कारण है कि कला चाहे जिस रूप में हो वह अपनी कलाकृति के यथार्थ से परिचित अवश्य होना चाहिए।

कलाकार की कला को प्रभावित करने वाले विश्वासों का एक उदाहरण पियरे ऑगस्टे रेनॉयर के कामों में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा, 'कला सुंदर क्यों नहीं होनी चाहिए?' कला के प्रति उनके दृष्टिकोण का एक उदाहरण 1876 की 'ए गर्ल विद ए वाटरिंग कैन' में देखा जा सकता है। इसी संदर्भ में कवि प्रो. रतन चौहान कहते हैं-

बड़ी विकट होती है सुंदरता की चाह

एक पागलपन सवार हो जाता है

आदमी के माथे पर,

प्रकृति का सौंदर्य, स्त्री का सौंदर्य,

मनुष्य हृदय का सौंदर्य

कहां-कहां बिखरा पड़ा है सौंदर्य,

सौंदर्य की करोड़ों करोड़ छवियां।

सौंदर्य ढूंढती हर तस्वीर के पीछे बहुत सी तस्वीरें होती हैं। जैसा कि हम किसी कविता के लिए कहते हैं कि कविता वहां नहीं है जहां कुछ लिखा हुआ है, कविता तो लिखे हुए के बीच जो नहीं लिखा गया है, वहां है। ठीक उसी तरह एक फोटो में वह सब ही नहीं होता जो दिखाई देता है। बहुत कुछ ऐसा भी होता है जो दिखाई नहीं देता सिर्फ़ महसूस किया जाता है।

गुलज़ार कहते हैं-

जिसकी आवाज़ में सिलवट हो, निगाहों में शिकन

ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़े जाते।

यानी तस्वीर उसी की खींची जा सकती है जिस चेहरे में कोई जान हो। कई बार फोटोग्राफर को भी यह महसूस होता है कि कोई चेहरा इतना ख़ास है जिसकी तस्वीर ली जानी चाहिए। इसी तरह कई बार चेहरों को भी यह महसूस होता है कि उनकी कोई तस्वीर ले। यह दोनों के बीच का तादात्म्य ही किसी तस्वीर को मुकम्मल करता है। एक तस्वीर का मुकम्मल होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि फोटोग्राफर और चेहरे की मानसिकता क्या है? उन दोनों का परिवेश क्या है? दोनों की परिस्थितियां क्या है और दोनों का कला के प्रति मापदंड क्या है। यदि इनमें कहीं कुछ कमी नज़र आती है तो तस्वीर मुकम्मल नहीं हो पाती है। विश्व प्रसिद्ध फोटोग्राफर फ़्रैंस लैंटिंग तो कहते भी हैं, 'मुझे लगता है कि एक तस्वीर के लिए व्यक्तिगत भागीदारी की ज़रूरत होती है।' यह व्यक्तिगत भागीदारी ही कैमरे और चेहरे के बीच का सामंजस्य है।

यहां जब हम सवाल करते हैं कि क्या कारण है कि चेहरा किसी फोटोग्राफर के सामने आते ही अपने आप को इस तरह तैयार कर लेता है कि वह ख़ूबसूरत दिखे, मुस्कुराने लगे, जीवंत लगने लगे, यह सब दोनों के बीच के तादात्म्य पर ही निर्भर करता है। शायद इसीलिए तस्वीर लेते समय फोटोग्राफर द्वारा यह कहने की शुरुआत हुई होगी- मुस्कुराइए। अर्थात् एक फोटोग्राफर चाहता है कि उसकी तस्वीर में हर चेहरा मुस्कुराए और हर चेहरा भी चाहता है कि वह अपने भीतर के तमाम दर्द को भीतर ही दबाते हुए चेहरे पर कुछ पल के लिए मुस्कुराहट लाए।

अज़हर इनायती कहते हैं-

अपनी तस्वीर बनाओगे तो होगा एहसास

कितना दुश्वार है ख़ुद को कोई चेहरा देना।

यहां हमें इस बात को समझना तो पड़ेगा ही कि फ़ोटोग्राफ़ी का मतलब सिर्फ़ कैमरा नहीं होता, बल्कि फ़ोटोग्राफ़र भी है। प्रसिद्ध फोटोग्राफर पीटर एडम्स ने कहा भी है, 'फ़ोटोग्राफ़ी का मतलब सिर्फ़ कैमरे, गैजेट और गिज़्मो नहीं है। फ़ोटोग्राफ़ी का मतलब फ़ोटोग्राफ़र है। कैमरा कोई बढ़िया तस्वीर नहीं बना सकता, जैसे टाइपराइटर कोई बढ़िया उपन्यास नहीं लिख सकता।"

फोटो में जान तो एक फोटोग्राफर ही डाल सकता है। जैसे कोई बहुत कीमती पेन लेकर लिखने बैठे तो वह महान लेखक नहीं बन जाता, ठीक उसी तरह कोई फोटोग्राफर कितना महंगा कैमरा लेकर फोटो खींचने लगे तो वह बड़ा कैमरामैन नहीं बन पाता। बहुत साधारण कैमरे से भी ख़ूबसूरत तस्वीरें खींची गई हैं। जैसा कि प्रसिद्ध फोटोग्राफर मार्क डेनमैन ने कहा था, 'सिर्फ़ एक कैमरा होना ही काफ़ी नहीं है। 'अर्थात एक कैमरे के अतिरिक्त भी बहुत कुछ होता है जो किसी कैमरामैन को सफल और चेहरों का प्रिय बनाता है। यह गुण भाई लगन शर्मा के पास हैं शायद इसीलिए हर चेहरा उनके कैमरे के सामने आते ही यह मान लेता है कि किसी ख़ूबसूरत तस्वीर का जन्म होना निश्चित है।

आशीष दशोत्तर

12/2, कोमल नगर

रतलाम - 457001

मो. 9827084966