पुण्यतिथि पर विशेष : राजनीति रूपी काजल की कोठरी से बेदाग निकलने वाले योद्धा एवं त्याग, तप व समर्पण की प्रतिमूर्ति थे डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडेय

19 मई को मालवा के गांधी डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडेय की पुण्यतिथि है। आइये, हम भी उनके जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं से रूबरू हो लें।

पुण्यतिथि पर विशेष : राजनीति रूपी काजल की कोठरी से बेदाग निकलने वाले योद्धा एवं त्याग, तप व समर्पण की प्रतिमूर्ति थे डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडेय
स्व. डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडेय, पूर्व सांसद।

कहते हैं कि राजनीति काजल की कोठरी है, लेकिन विरले ही ऐसे होते हैं जो इस कोठरी से बेदाग निकलते हैं। वर्तमान की भारतीय जनता पार्टी सिर्फ एक राजनैतिक संगठन नहीं, वरन् कई वरिष्ठों की कड़ी मेहनत, त्याग व समर्पण से समाजसेवा के लिए एक ऐसी संस्था है जिसके माध्यम से निचले तबके के उत्थान के प्रयासों को क्रियान्वित किया गया। ऐसी ही सोच को लेकर जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी की नींव रखने में अहम् किरदार निभाने वाले पूर्व सांसद व भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष स्व. डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडेय हैं, जो राजनीति में शुचिता के प्रतीक माने जाते हैं। 

रतलाम जिले के छोटे से गांव सुजापुर में जन्मे डॉ. पांडेय ने राजनैतिक जीवन की शुरुआत बहुत ही चर्चित घटनाक्रम से की। उन्होंने प्रथम चुनाव विधानसभा का लड़ा। इस चुनाव में डॉ. पांडेय ने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री, उस समय के देश के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के खास माने जाने वाले डॉ. कैलाश नाथ काटजू को पराजित कर दिया। इस चुनाव के परिणाम में डॉ. पांडेय को पूरे देश में चर्चित कर दिया, वहीं जनसंघ को भी एक नई पहचान दिलाई। इस घटनाक्रम का कांग्रेस की राजनीति में भी गहरा असर हुआ। चुनाव में पराजित होने के बाद डॉ. काटजू कभी भी वापस लौटकर जावरा नहीं पहुंचे। स्वंय पं. नेहरू चुनाव परिणाम से आश्चर्यचकित हुए। बीबीसी ने अपने समाचार में विशेष जिक्र किया क्योंकि सत्ताधारी मुख्यमंत्री की पराजय देश की पहली ऐसी पराजय थी। डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडेय ने इस सफल शुरुआत के बाद पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। पूर्व प्रधानमंत्री पं. अटल बिहारी वाजपेयी को डॉ. पांडेय के रूप में एक ऐसा साथी व सहयोगी मिला जो मालवा क्षेत्र में जनसंघ व भाजपा की जड़े मजबूत कर वटवृक्ष बनाने में अहम् किरदार निभा सकता था। वाजपेयी के विश्वास को डॉ. पांडेय ने भी निष्फल नहीं किया।

काम ने बनाया मालवा का गांधी

पांडेय ने 1971 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और मंदसौर नीमच लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व संसद में किया। उसके बाद डॉ. पांडेय ने लगातार आठ बार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए संसदीय क्षेत्र को विकास कार्यों की कई सौगातें भी दिलाईं। सहज, सरल व सौम्य स्वभाव के धनी डॉ. पांडेय क्षेत्र में इतने लोकप्रिय थे कि उन्हें क्षेत्र में ‘मालवा का गांधी’ कहा जाता था। जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी के सफर में डॉ. पांडेय का अभूतपूर्व योगदान है। राजमाता विजयाराजे सिंधिया, अटल बिहारी वाजपेयी, कुशाभाऊ ठाकरे, प्यारेलाल खंडेलवाल, सुंदरसिंह भंडारी, भैरोसिंह शेखावत जैसे वरिष्ठों के समकालीन रहे डॉ. पांडेय ने भी गांव-गांव जाकर साइकिल, तांगे व दोपहिया वाहनों से संगठन को मजबूती दिलाने और कार्यकर्ताओं की फौज को तैयार करने में कड़ी मेहनत की। इसके फलस्वरूप मंदसौर, नीमच, रतलाम, उज्जैन, शाजापुर, धार, देवास राष्ट्रवादी विचारों से ओत-प्रोत होकर एक ऐसा क्षेत्र बन गया जहां राष्ट्रीय विचारधारा की जड़ें फैल सी गईं।

आपातकाल की भट्टी से तपकर निकले सर्वमान्य नेता

उस समय की कांग्रेस सरकारों के जनविरोधी कार्यों का विरोध करना भी जोखिम भरा कार्य था, क्योंकि सरकारों के खिलाफ आवाज उठाना अपराध माना जाता था और संबंधित के विरुद्ध कार्यवाही भी की जाती थी। ऐसी विकट परिस्थितियों के बीच कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाकर निरंतर संगठन को सशक्त बनाने के जटिल कार्य को बखूभी निभाने के प्रयास में डॉ. पांडेय सफल रहे। हालांकि आपातकाल के दौर में अन्य राष्ट्रवादी नेताओं के साथ डॉ. पांडेय भी जेल गए, लेकिन इस बुरे दौर के बाद मजबूती से उभर कर आए। जनमानस ने भी इन्हें अपना नेता माना। सांसद के रूप क्षेत्र को रेलवे, दूरसंचार, सड़कों, पेयजल व्यवस्था, औद्योगिक क्षेत्र, ऊर्जा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय स्वीकृति दिलाने में सफल रहे।

विद्द्वता को मिला सम्मान, 23 देशों में किया देश का प्रतिनिधित्व

डॉ. पांडेय ने अपनी विद्वत और कार्यकुशलता से एक विशिष्ट पहचान भी बनाई। विदेश व रक्षा मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभिन्न स्थायी समितियों के सभापति रहे। इसके अलावा लोकसभा अध्यक्षीय पैनल में लंबे समय तक सदस्य रहकर लोकसभा का संचालन किया। अपने संसदीय कार्यकाल के दौरान भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में 23 देशों की यात्रा की। विश्व हिंदी सम्मेलन व सीपीए सम्मेलन में भी भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बने, नरेंद्र मोदी भी कर चुके साथ काम

कुशल संगठक के रूप में विख्यात डॉ. पांडेय म.प्र. भारतीय जनता पार्टी के सफल प्रदेश अध्यक्ष रहे। आपके कार्यकाल में ही प्रदेश कार्यालय का शुभारंभ हुआ। जो देश के सबसे उत्कृष्ट भाजपा कार्यालयों में जाना जाता रहा। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पूरे प्रदेश का दौरा किया। कांग्रेस सरकार में विपक्षी दल के रूप भाजपा संघर्ष कर रही थी ऐसे दौर में संगठन को सशक्त करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को बखूबी निभाने वाले डॉ. पांडेय ने वर्तमान के कई नेताओं को राजनैतिक जीवन की शुरुआत कराने और विधानसभा में टिकट देकर विश्वास जताने का भी कार्य किया। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी उस समय डॉ. पांडेय के निवास पर संगठन की मन्त्रणा किया करते थे। इस कार्यकाल में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ जम्मू कश्मीर में आंदोलन का हिस्सा भी बने। हालांकि वर्तमान राजनीतिक में भाजपा भी नए कलेवर के साथ देश व प्रदेश में उभर कर स्थापित हो गयी, लेकिन पार्टी को इस स्थिति में खड़ा करने में एक स्तम्भकार के रूप में डॉ. पांडेय ने अहम् जिम्मेदारी निभाई।

पिता जैसा पुत्र, कांग्रेस की परम्परागत सीट भाजपा की विचारधारा में बदली

राजनैतिक कार्यकाल में मंत्री जैसे पद से सुशोभित नहीं होने का मलाल डॉ. पांडेय को कभी नहीं रहा। ऐसा ही स्वभाव उनके पुत्र विधायक डॉ. राजेन्द्र पांडेय में भी देखने को मिलता है। 1998 से जावरा क्षेत्र से भाजपा के रूप में चुनाव लड़ रहे राजेन्द्र पांडेय ने तीन चुनाव में विजयी होकर परम्परागत कांग्रेस सीट को भाजपा की विचारधारा में परिवर्तित कर दिया। 

रतलाम, मंदसौर व नीमच के अलावा म.प्र. व राजस्थान निश्चित रूप से भाजपा के गढ़ माने जाते हैं, जिसके पीछे डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडेय जैसे व्यक्तित्व की मेहनत, त्याग व संगठन के प्रति समर्पण है। ऐसे कर्मठ योद्धा को उनकी पुण्यतिथि पर सादर श्रद्धांजलि।