चुनावी रण छोड़ने की उल्टी गिनती शुरू : नाम वापसी का आज आखिरी दिन, जानें- कैसी होगी नगर सरकार और क्या होगा विधानसभा चुनाव पर असर
बुधवार को नाम वापसी का आखिरी दिन है। इस दिन कुछ को छोड़कर ज्यादातर नाम वापस होने की संभावना जताई जा रही है। दोपहर 3 बजे बाद यह स्पष्ट होने की उम्मीद है कि अगली नगर सरकार कैसी होगी?
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । टिकट नहीं मिलने से नाराज कांग्रेसियों और भाजपाइयों ने जिस जोश और जज्बे के साथ बगावत का बिगुल बजाया था, वे उतनी ही बहादुरी के साथ अब अपने कदम पीछे भी खींच रहे हैं। कुछ लोगों ने सोमवार को नाम वापस लिए थे तो कुछ ने मंगलवार को रण छोड़ दिया। बुधवार को चुनावी मैदान छोड़ने का आखिरी दिन है। इसके बाद स्थिति साफ हो जाएगी कि महापौर और पार्षद के लिए मुकाबला सीधा होगा या त्रिकोणीय।
नगरीय निकाय चुनाव में एक ओर कांग्रेस के सामने जहां अपना अस्तित्व बनाने का संघर्ष है तो दूसरी ओर अति आत्मविश्वास से भरी भाजपा को अपनी जीत दोहराने की चुनौती। महापौर पद के लिए मयंक जाट को टिकट देकर कांग्रेस ने हताश-निराश कांग्रेस में कुछ हद तक जान फूंकने की कोशिश की है। इसके उलट महापौर पद के दो प्रमुख दावेदारों को दरकिनार करते हुए तीसरे नंबर के दावेदार प्रहलाद पटेल को टिकट देकर भाजपा ने बड़ा जोखिम मोल लिया है।
कांग्रेस के पास फिलहाल खोने को कुछ नहीं है परंतु भाजपा के हिस्से 15 साल से कायम अपनी साख बचाए रखने की चिंता है। टिकट नहीं मिलने से बागी के रूप में चुनावी मैदान में कूदने वाले असंतुष्टों की मान-मनौवल का दौर जारी है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वी.डी. शर्मा ने तो अधिकृत प्रत्याशी के अलावा चुनाव लड़ने वालों को अनुशासनहीन मानते हुए उन्हें 6 साल के लिए पार्टी से बाहर करने की चेतावनी भी दी है।
अनुरोध बनाम धमकी का यह हुआ असर
महापौर पद के साथ ही पार्षद के लिए भी काफी बागियों ने नामांकन दाखिल किए। इनमें भाजपा के बागियों के नाम ज्यादा हैं। हालांकि भाजपा के बागियों द्वारा नाम वापस लेने का सिलसिला चल पड़ा है। मंगलवार को कई लोगों ने उतनी ही बहादुरी दिखाते हुए नाम वापस लिया जितनी बहादुरी के साथ वे आगे बढ़े थे। ऐसे लोगों को समाज ने ‘रणछोड़’ की संज्ञा दी है। मंगलवार को भी कई लोगों ने मैदान छोड़ा। इनमें 7 भाजपा के बताए जा रहे हैं। भाजपा का दावा है कि उसने पार्टी के अधिक प्रत्याशी के समर्थन में नाम वापस लिया है। चर्चा है कि यह भाजपा प्रदेश अध्यक्ष द्वारा दी गई 6 साल के लिए पार्टी से बाहर करने की चेतावनी का ही असर है जिसने उम्मीदवारों को रणछोड़ बनने पर विवश कर दिया।
भाजपा का दावा : इन्होंने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के लिए वापस लिया नाम
भाजपा के अनुसार वार्ड 43 की प्रत्याशी एवं पूर्व भाजपा पार्षद मोनिका सोनी ने मंगलवार को नाम वापस लिया। इसी प्रकार वार्ड 5 से रविन्द्र सिंह, 8 से पार्षद प्रत्याशी चंद्रप्रकाश मालवीय, 12 से शशि - अभय जैन, 19 से ललिता-अरविंद गुर्जर, 21 से किरण-जितेन्द्र सिलावट, 36 से सरिता-पवन प्रकाश गुर्जर ने भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में अपना नाम वापस लिया। पार्टी के अनुसार अन्य वार्डों में भी प्रत्याशियों द्वारा नाम वापसी की जाना है, लेकिन मंगलवार को नियत समय गुजर जाने से वे ऐसा नहीं कर पाए।
अतः बुधवार को उनकी नाम वापसी होगी। सभी ने शहर विधायक चेतन्य काश्यप से मुलाकात कर पार्टी द्वारा अधिकृत प्रत्याशी के पक्ष में काम करने की बात कही। विधायक काश्यप ने प्रत्याशियों द्वारा नाम वापस लेने पर खुशी जाहिर करते हुए पार्टी के प्रति निष्ठा और समर्पण भाव की सराहना की। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि पार्टी कार्यकर्ताओं की निष्ठा और समर्पणपूर्वक की गई मेहनत से भाजपा निगम चुनाव में पुनः जीत दर्ज करेगी।
...तो आने वाली नगर सरकार और उसका असर ऐसा होगा
बुधवार को नाम वापस लेने का आखिरी दिन है। इस दिन भी कइयों की नाम वापसी तय मानी जा रही है। सभी की निगाहें भाजपा के महापौर पद के तीन बागी उम्मीदवारों पर हैं। ये नाम हैं पूर्व एमआईसी सदस्य सीमा टांक, पूर्व निगम अध्यक्ष अशोक पोरवाल और भाजपा जिला मीडिया प्रभारी व पूर्व एमआईसी सदस्य अरुण राव। अब तक की चर्चा के अनुसार टांक ने पार्टी की चेतावनी के बाद भी निर्दलीय लड़ने का अपना निर्णय नहीं छोड़ा है।
जिला मीडिया प्रभारी राव के तेवर भी इतनी जल्दी ठंडे होते नहीं दिख रहे। अब बचे पोरवाल जिन्हें नाम वापस लेने के लिए पार्टी के नेताओं को बड़े स्तर पर प्रयास करने पड़ रहे हैं। माना जा रहा है कि वे अगले जिला अध्यक्ष या फिर ऐसी ही किसी बड़ी जिम्मेदारी से कम पर मानने वाले नहीं हैं। उधर, दूसरी ओर कांग्रेस के एक पूर्व जिला अध्यक्ष भी डटे हुए हैं। कहा जा रहा है कि उन्होंने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी को पराजित करवाने का संकल्प लिया है। इस बात में कितनी सच्चाई है, यह आज दोपहर 3 बजे तक स्पष्ट हो जाएगी। इसके साथ ही यह भी तय हो जाएगा कि अगली नगर सरकार कैसी रहने वाली है।
स्थिति - 1 : महापौर और बोर्ड कांग्रेस का
पिछले चुनाव में भाजपा की डॉ. सुनीता यार्दे तकरीबन 21 हजार मतों से जीत कर मेयर बनी थीं। इस बार पार्टी ने पूर्व पार्षद प्रहलाद पटेल पर भरोसा जताया है। उनका नाम तय होते ही पार्टी में बगावत हो गई। और अभी भी तीन प्रमुख दावेदार पार्टी को चुनौती दे रहे हैं। अगर ये सभी नाम वापस ना लें तो तीनों कम से कम 15 से 17 हजार वोट प्रभावित कर सकते हैं। ये सिर्फ 11 से 12 हजार मत भी भाजपा के काट दें तो कांग्रेस की जीत संभव है। वार्डों से भाजपा के पार्षद पद के लिए बागियों की संख्या काभी है। ऐसे में 5 से 7 निर्दलीय पार्षद चुने जाने की संभावना राजनीतिक पंडित जता रहे हैं। ऐसा हुआ तो भाजपा का बोर्ड बनाने का ख्वाब भी अधूरा रह जाएगा। यानी महापौर व बोर्ड दोनों कांग्रेस के होंगे।
...तो होगा क्या ? 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में विधायक की कुर्सी तक भाजपा की पहुंच प्रभावित होगी। महापौर और बोर्ड दोनों कांग्रेस के हुए तो पार्टी का प्रयास रहेगा कि वह अगले 11 महीनों में अपने पक्ष में माहौल बना ले।
स्थिति - 2 : महापौर भाजपा व बोर्ड कांग्रेस का
अगर जनता पीएम नरेंद्र मोदी, सीएम शिवराज व विधायक चेतन्य काश्यप को देखकर वोट दे तो भाजपा का महापौर बन सकता है। परंतु बोर्ड भाजपा बनने की गारंटी नहीं है। 15 साल भाजपा की परिषद रही। इसमें से पिछली परिषद बुरी तरह फेल रही। सड़क, नाली, सफाई, सीवरेज, खुदी सड़कें, लॉकडाउन में बने लोगों के चालान, चुनाव से पूर्व सब्जी विक्रेताओं का विस्थापन, चार इंजिन वाली सरकार (केंद्र, राज्य, विधानसभा व नगर सरकार) भाजपा की होने के बाद निगम अमला निरंकुश रहने से लोग परेशान हैं। फिर इस बार के भाजपा के पार्षद प्रत्याशी अपेक्षाकृत कांग्रेस से कमजोर माने जा रहे हैं। ऐसे में महापौर भाजपा व बोर्ड कांग्रेस का होगा।
...तो होगा क्या ? भाजपा को बजट और प्रोजेट स्वीकृत करवाने में समस्या होगी। पार्टी चाह कर भी अगले 11 माह में विधानसभा सुनाव में शहर से पुनः जीत के लिए उचित माहौल तैयार नहीं कर पाएगी। यानी फायदा कांग्रेस को।
स्थिति नं. 3 : महापौर निर्दलीय, बोर्ड खिचड़ी (मिला-जुला)
अगर निर्दलीय प्रत्याशी सीमा टांक, अशोक पोरवाल या अरुण राव में से किसी एक को टिकट वितरण से नाराज सभी पार्टियों के नेता कार्यकर्ता सपोर्ट कर दें तो यह संभव है। इसके साथ ही जनता अगर धनबल व बाहुबल को नकारते हुए दोनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशियों से मुंह मोड़ ले तब भी यह संभव है। पारस सकलेचा भी ऐसी ही राजनीतिक परिस्थिति के चलते निर्दलीय जीत कर महापौर बने थे। ऐसे में बोर्ड भी मिला-जुला बन सकता है। इससे भाजपा और कांग्रेस के पार्षदों वाले वार्डों में विकास कार्य प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे।
...तो होगा क्या ? अगर कांग्रेस व भाजपा के वार्डों में काम नहीं हुए तो अगले विधानसभा चुनाव में दोनों ही पार्टियों को जनता का आक्रोश झेलना पड़ेगा। संभव है यही निर्दलीय महापौर विधायक पद के लिए दावेदारी भी कर दे।
स्थिति नं. 3 : महापौर और बोर्ड दोनों ही भाजपा के
मौजूदा हालात, टिकट को लेकर भाजपाइयों की नाराजगी के बावजूद यदि महापौर व पार्षद प्रत्याशी जीते तो नगर निगम में फिर से भाजपा काबिज हो सकती है। यह तभी संभव है जब सभी बागी चुनाव से नाम वापस ले लें। सभी भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी को जिताने का काम ईमानदारी से करें जिसकी उम्मीद दिखाई नहीं दे रही। पार्टी सभी बगावत करने वालों को मनाकर उन्हें इसके एवज में उन्हें बड़े पदों से नवाजा जाए या कोई अन्य फायदा पहुंचाया जाए।
...तो होगा क्या ? यदि ऐसा चमत्कार हो जाए तभी जाकर 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का भला हो सकता है। अगले पांच साल तक नगर सरकार के माध्यम से भाजपा को अपनी गलतियां सुधारने का मौका मिल जाएगा।