मन एकाग्र करना और समता सिखाती है विपश्यना, किसी के मन से अंधेरे का डर दूर हुआ तो किसी ने जीवन जीने का तरीका सीखा
मप्र व गुजरात से 16 किशोरों ने रतलाम जिले के धामनोद में स्थित विपश्यना साधना केंद्र में 7 दिवसीय आवासीय शिविर में भाग लिया। इस दौरान उन्होंने मन को एकाग्र करने के साथ ही लोगों से मैत्री करना और गुस्से पर नियंत्रण करना सीखा। किशोरों ने सात दिन तक मौन रहने के बाद शिविर के अनुभव साझा किए।
धामनोद स्थित विपश्यना साधना केंद्र में आयोजित शिविर में 16 किशोरों ने लिया भाग, 7 दिन बाद मौन टूटने पर साझा किए अनुभव
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । रोज सुबह सात से साढ़े सात बजे सोकर उठने वाले किशोर सात दिन से सुबह 4 से 5 बजे उठ रहे हैं। जिन्होंने शायद ही कभी सूर्योदय का मनोरम दृश्य देखा होगा उन्होंने न सिर्फ सूर्योदय होते देखा अपितु प्रकृति से भी रूबरू हुए। जिन्हें पहले मौत और अंधेरे से डर लगता था उनमें अब इससे टकराने का हौसला आ गया है। महज एक सप्ताह की विपश्यना साधना ने ही उन्हें मन को एकाग्र करने की कला सिखा दी और संयमित और अनुशासित रहना भी।
यह संभव हुआ धामनोद स्थित विपश्यना साधना केंद्र में आयोजित सात दिवसीय विपश्यना साधना शिविर में। 25 मई को शुरू हुए शिविर में मप्र और गुजरात के आगर मालवा, उज्जैन, सूरत, राजकोट, नड़ियाद, राजकोट, रामपुरा, रतलाम, जामनगर आदि जिलों के 16 किशोर यहां समता में रहना और मन को नियंत्रित करना सीख रहे हैं। 13 वर्ष से 19 वर्ष तक के इन किशोरों ने गुरुवार को मौन टूटने के बाद अपने अनुभव एसीएन टाइम्स से साझा किए। कई के लिए यह पहला अऩुभव था वहीं कई पूर्व के अऩुभव से प्रभावित होकर दोबारा विपश्यना साधना करने यहां आए। इनमें से कुछ शिविर में भाग लेने से पहले काफी चंचल स्वभाव के थे तो कुछ पढ़ने में मन नहीं लगा पाते थे। वहीं अब वे मन को नियंत्रित करना भी सीख चुके हैं और लोगों को एक नजर से देखना भी। इस छोटी सी उम्र में बड़ा सबक जानने के बाद सभी किशोर अभिभूत हैं।
शिविरार्थी किशोरों ने ये अनुभव किए साझा
विपश्यना, आनापान और पंचशील के सिद्धांतों ने दूर भगाया मन में बैठा डर
ओंकार पटेल अहमदाबाद के निवासी हैं और कक्षा 11वीं में पढ़ते हैं। पिता कल्पेश पेशे से किसान है। ओंकार बताते हैं कि सामान्य दिनों में उनकी सुबह 7.00 से 7.30 बजे तक होती है क्योंकि उन्हें सोते-सोते रात के 10.30 से 11.00 तक बज जाते हैं। शिविर ने उनका रुटीन ही बदल दिया। हर हाल में सुबह 5.00 बजे उठना और आधे घंटे के भीतर रुटीन कार्य से फारिग होकर एक घंटे तक मेडिटेशन करना अलग ही अनुव रहा। उसके बाद दिनभर की अन्य गतिविधियों में शामिल होकर विपश्यना, आनापान करना सीखा और पंचशील के सिद्धांतों को जाना। पहले मन में अजीब सा डर रहता था जो अब नहीं रहा।
मन एकाग्र करना, समता में रहना और गुस्से पर नियंत्रण करना सीख लिया
13 वर्षीय पार्श्व अतंती को शिविर में आने की प्रेरणा उनके 70 वर्षीय दादा छगनभाई से मिले। वे स्वयं भी विपश्यना शिविर करते रहे हैं। उन्होंने अपने अनुभव साझा किए तो गुजरात के राजकोट के बिजनेसमैन पिता के बेटे पार्श्व शिविर का लाभ उठाने से खुद को रोक नहीं पाए। पार्श्व कहते हैं कि शिविर में भाग लेने से उनाक दिमाग पहले से ज्यादा शार्प हुआ है। 8वीं में पढ़ने वाले इस किशोर को विपश्यना ने मन एकाग्र करना, समता में रहना और गुस्सा नहीं करना सिखा दिया।
पहले कीड़े-मकोड़ों से लगता था डर अब उनसे भी मैत्री करने की इच्छा होने लगी
राजकोट के ही रहने वाले संवेद पांभर कक्षा 7वीं में पढ़ते हैं। कहते हैं कि सात दिन बहुत अच्छे गुजरे। मन को शांत किया किया। संवेद के अनुसार पहले मैं बहुत बोलता था लेकिन यहां शांत रहना सीखा। पहले रोज 5 बजे उठ जाता था लेकिन यहां एक घंटे पहले 4 बजे ही उठ कर दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर ताजी हवा का आनंद लेते थे। संवेद को पहले कीड़ों-मकोड़ों से डर लगता था और उन्हें मार देने का मन करता था। अब डर के साथ ही उन्हें मारने का भाव भी जाता रहा। अब वे किसी जीव को परेशान नहीं करेंगे बल्कि उन्हें उनके सुरक्षित परिवेश में पहुंचाने का प्रयास करेंगे। क्योंकि विपश्यना साधना सभी से प्रेम करना सिखाती है।
जीवन जीने की कला और पसंद-नापसंद में समता रखना सिखाती है विपश्यना
विश्वम् मौलिया 17 वर्ष के हैं। गुजरात निवासी विश्वम् कम्प्यूटर इन एजुकेशन में डिप्लोमा कोर्स कर रहे हैं। यह उनका दूसरा शिविर है। दो साल पहले 15 वर्षी की उम्र में भी शिविर कर चुके हैं। तब उम्र छोटी थी और मन चंचल था। तरह-तरह के विचार आते थे लेकिन इस बार इस पर नियंत्रण करना सीख लिया है। जीवन कैसे जीना है तथा पसंद व नापंसद में समता कैसे रखना है, यह सीखा। विश्वम् को भरोसा है कि वे अब हर काम तल्लीनता से कर पाएंगे।
एक साधना पुरानी ऊर्जा बाहर निकालाना तो दूसरी अंदर ही सदुपयोग करना सिखाती है
उज्जैन निवासी यशपाल सिंह 12वीं विज्ञान संकाय के छात्र हैं। डॉक्टर बनना चाहते हैं। इन्हें अंधेरे और मृत्यु से भय लगता था। जब विपश्यना की और यह जाना कि मौत तो सास्वत सत्य है तो डर काफूर हो गया। यशपाल बताते हैं कि- वे इससे पहले ओशो द्वारा प्रतिपादित मेडिटेशन भी कर चुके हैं। दोनों ही साधनाएं मानसिक समता बढ़ती हैं। एक साधना ऊर्जा को शहीर से बाहर निकालना सिखाती है ताकि नई ऊर्जा अंदर प्रवेश कर सके। वहीं विपश्यना अंदर की ऊर्जा पर ही फोकस कर उसका सद्उपयोग करना सिखाती है।
दोस्त और चाचा से मिली जानकारी तो आ गए शिविर में
कक्षा 7वीं के छात्र रुद्र अतंती राजकोट से आए हैं। उनका भी यह दूसरा शिविर है। विपश्यना के बारे में दोस्त ने बताया। शिविर में पहले दिन क्रियाओं में मन नहीं लगा लेकिन दूसरे दिन स्वतः ही मन एकाग्र होने लगा। मप्र के आगर मालवा जिले के रंजीत सिंह चौहान 19 के हैं। 12वीं में पढ़ते हैं। अपने चाचा से विपश्यना के बारे में जाना। वे रुटीन में भी आनापान जैसी क्रिया करते हैं। विपश्यना को नजदीक से जानने, समझने और अनुभव प्राप्त करने क लिए शिविर में भाग लेना उचित समझा।
इनका रहा शिविर में सक्रिय योगदान
शिक्षक डॉ. शारदा वाधवानी के मार्दगर्शन में लगे शिविर में गुजरात से आए शिक्षक संजय भाई पटेल ने किशोरों को विपश्यना साधना का अभ्यास कराया और इसका जीवन में महत्व बताया। शिविर में बलराम पाटीदार, जय गेहलोत, रघुनाथ सहित अन्य का उल्लेखनीय योगदान रहा।