नीर का तीर : रतलाम में पेड़ों की हत्या का विरोध बनाम अपने-अपने निहितार्थ, आप भी जानिए और समझिए
रतलाम में पेड़ कटने के विरोध में जारी संघर्ष में शामिल लोगों के अपने-अपने हित हैं। ये हित जानने और समझने के लिए पढ़िए यह नीर का तीर।
नीरज कुमार शुक्ला
चुनावी साल में आरोप-प्रत्यारोप बढ़ने के साथ अपने-अपने निहितार्थ साधने की कोशिशें भी बलवती हो जाती हैं। जैसा कि इन दिनों रतलाम में पेड़ों और परिंदों की हत्या का मामला सर्वाधिक चर्चा में है। प्रकृति के संरक्षण और नाश से जुड़ा यह मुद्दा राजनीतिक होता जा रहा है। वजह साफ है कि सब के अपने-अपने हित हैं जिसके लिए यह तात्कालिक मामला उन्हें साधने के लिए उपयुक्त नजर आ रहा है। किसी को सिर्फ और सिर्फ प्रकृति की चिंता है तो किसी को केवल अपने राजनीतिक, सामाजिक और व्यवसायिक प्रतिद्वंद्वी दिख रहे हैं।
रतलाम शहर में लगातार हो रही हरियाली और मूक जीवों की हत्या राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ ही आमजन में भी बहस का विषय बनी हुई है। पर्यावरण के नाम पर बने वाट्सएप ग्रुप हों या अन्य, सभी जगह इस मामले को लेकर वैसी ही बहस छिड़ी है जैसे प्रायः राष्ट्रीय चैनलों पर देखने को मिलती है। इसे लेकर किसी के निशाने पर शहर विधायक चेतन्य काश्यप हैं तो किसी के महापौर प्रहलाद पटेल। कोई कांग्रेस, भाजपा, आम आदमी पार्टी की रीति-नीति और उससे जुड़े लोगों की मंशा पर सवाल उठा रहा है तो कोई पूर्व गृह मंत्री हिम्मत कोठारी, पूर्व महापौर पारस सकलेचा या अन्य पर। किसी को, किसी की चुप्पी अखर रही है तो किसी को किसी का बोलना। ऐसे में मूल मुद्दा गौण होता जा रहा है। आइये, बात करते हैं मूल मुद्दे की जो कि ‘विकास का विरोध नहीं, प्रकृति का संरक्षण’ है।
12 वर्ष से जारी है कानूनी लड़ाई
विगत 12 वर्ष से कुछ लोग सिर्फ पेड़ों को बचाने के लिए लड़ रहे हैं। यह लड़ाई समाजिक स्तर पर भी जारी है और कानूनी तौर पर भी। पेड़ों के कटने पर पूर्व में न्यायालय में निजी वाद दायर करने का मामला हो या फिर हाल ही में नगर निगम के सामने प्रस्तावित गोल्ड कॉम्प्लेक्स वाली जगह व गांधी उद्यान के पेड़ काटने के विरुद्ध में एफआईआर दर्ज कराने का। यह पहला मौका था जब पेड़ों के कटने पर एफआईआर दर्ज हुई। पुलिस को एफआईआर दर्ज कराने के लिए फरियादी चाहिए लेकिन अफसोस कि पर्यावरण संरक्षण के बड़े-बड़े नारे लगाने वाले और दुहाइयां देने वालों में से कोई आगे नहीं आया। जिनका उद्देश्य सिर्फ हरियाली बचाना या उसे बढ़ाना ही रहा है, ऐसे चुनिंदा लोग आगे बढ़े जिसमें से एक के नाम से एफआईआर दर्ज कर ली गई। सबको पता था और है कि पेड़ किसने काटे, किसकी अनुमति से काटे गए फिर भी एफआईआर में आरोपी अज्ञात हैं। एफआईआर से वह ‘समदड़िया ग्रुप’ भी गायब है जिसके लिए प्रतिबंधित काल में पेड़ काटे गए और वह ‘स्थानीय ठेकेदार’ भी जिसने पेड़ काट डाले। इसके पीछे पुलिस का ‘अपना नजरिया और हित’ हो सकता है।
एफआईआर होते ही खिल गईं बांछें
जैसे ही एफआईआर हुई, इसकी जानकारी शहरभर में जंगल की आग की तरफ फैल गई। यह उनके लिए तो प्रसन्नता की बात थी ही जो वर्षों से पेड़ों को बचाने के लिए संघर्षरत हैं किंतु पेड़ काटने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने जैसी सफलता अब तक नहीं प्राप्त कर पाए थे। इनकी प्रसन्नता तो सहज है किंतु कुछ लोगों की प्रसन्नता बल्लियों उछलने जैसी प्रतीत हुई, क्योंकि उन्हें इसकी आड़ में अपने हित साधने का मौका जो मिल गया था। इसके साथ ही शुरू हो गई एफआईआर कराने वालों के कंधे पर बंदूक रखकर निशाना साधने की कवायद जो अब तक जारी है। किसके निशाने पर कौन है, यह सब पब्लिक जानती है।
जबकि, पर्यावरण प्रेमी यह चाहते हैं
- विकास होते रहना जरूरी है लेकिन यदि पेड़ों की बलि दिए बिना यह होता है तो इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता।
- यदि विकास के लिए पेड़ों का काटना जरूरी ही है तो, सुप्रीम कोर्ट के प्रावधान अनुसार उसके एवज में निर्धारित संख्या में पौधे रोपे जाएं और उनका संरक्षण सुनिश्चित हो।
- अगर पेड़ काटने वाला, उसके एवज में निर्धारित संख्या में पौधे नहीं रोपता है तो उसके विरुद्ध अपराधिक प्रकरण दर्ज कर दंडित किया जाए। दंड स्वरूप उससे निर्धारित संख्या से ज्यादा पौधे लगवाए जाएं।
- पेड़ काटने के एवज में पौधे रोपे नहीं जाते हैं तो कार्रवाई उस एजेंसी/विभाग के जिम्मेदारों पर भी अपराधिक कार्रवाई होनी चाहिए जिन्होंने पेड़ काटने की अनुमति दी। गोल्ड कॉम्प्लेक्स की जमीन व गांधी उद्यान के पेड़ों को के कटने के लिए सीधे तौर पर नगर निगम प्रशासन जिम्मेदार है।
राहत की बात...
पेड़ों की कटाई रोकने और हरियाली को बढ़ाने के लड़ रहे लोगों के लिए एक बात अच्छी हुई है। शहर विधायक चेतन्य काश्यप ने एक दिन पूर्व ही नीमचौक क्षेत्र में सड़क निर्माण के लिए भूमि पूजन के दौरान पेड़ काटने वाले दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई कराए जाने की बात कही। इससे पूर्व कलेक्टर नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी भी इस मुद्दें पर चिंता जता चुके हैं। उन्होंने तो यहाँ तक कहा है कि यदि इस तरह कहीं पेड़ कटता है तो उसके एवज में 10 पौधे रोपना वे खुद सुनिश्चित करेंगे। पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंतित लोगों के लिए यह राहत की बात है।