MP में आकाश में दिखा जलता हुआ उल्कापिंड, रतलाम, भोपाल और बड़वानी सहित प्रदेश के कई जिलों में लोगों ने देखा नजारा, देखें वीडियो...
शनिवार रात को मप्र के आकाश में उल्कापिंड धरती की तरफ गिरता दिखाई दिया। जलते हुए इस पिंड की मौसम विज्ञान केंद्र भोपाल के उप संचालक और उज्जैन की वेधशाला के अधीक्षक ने भी उल्कापिंड के रूप में पुष्टि की है। लोगों ने गिरते उल्कापिंड को अपने मोबाइल फोन के कैमरे में कैद किया।
एसीएन टाइम्स @ डेस्क । मध्यप्रदेश के कई जिलों में शनिवार को लोग उस समय चौंक गए जब उन्हें एक चमकती हुई कोई चीज आसमान से धरती की ओर तेजी से आती हुई नजर आई। मौसम विज्ञान केंद्र भोपाल ने इस चमकीत चीज की पुष्टि उल्कापिंड (meteorite) के रूप में की है। यह पुच्छल तारा खंडवा में गिरने की बात कही जा रही है।
शनिवार रात करीब पौने आठ बजे रतलाम, भोपाल, खंडवा, बडवानी, धार, उज्जैन सहित मप्र के कई जिलों में आसमान पर लोगों ने आसमान में जलता हुआ उल्कापिंड देखा। करीब 40 मिनट तक चले इस घटनाक्रम को लोगों ने अपने-अपने मोबाइल फोन में कैद किया। इसका वीडियो कुछ ही देर में वायरल हो गया। शुरुआत में लोगों को लगा कि कोई विमान क्रैश हो गया है और वह जलता हुआ तेजी से धरती की तरफ आया। गति किसी रॉकेट जैसी थी। नजारे को देख कर लोग अचंभित थे और कौतूहलवश एक-दूसरे को वीडियो दिखाकर उक्त चमकीली जलती हुई वस्तु के बारे में पूछते रहे। हालांकि कुछ ही देर बाद स्थिति स्पष्ट हो गई।
छोटे उल्कापिंडों की 100 साल होती है उम्र
भोपाल स्थित मौसम केंद्र के डिप्टी डायरेक्टर वेदप्रकाश सिंह के अनुसार उन्हें खंडवा में उल्कापिंड (meteor) गिरने की जानकारी मिली है। सिंह ने बताया पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं। उन्हें उल्का (meteor) और साधारण बोलचाल में 'टूटते हुए तारे' अथवा 'लूका' भी कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड कहते हैं। उल्कापिंड पुच्छल तारे के रूप में होते हैं। जब ये गिरते हैं तो इनकी चमक बहुत ज्यादा होती है। ये आसमान में 200 से 300 किलोमीटर तक देखे जा सकते हैं। छोटे-छोटे उल्कापिंड की उम्र लगभग 100 साल होती है। ये उल्का पिंड और पुच्छल तारे सौर मंडल में चक्कर लगाते हुए किसी भी ग्रह के वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं और गुरुत्वाकर्ण के प्रभाव में ये जमीन तक पहुंच जाते हैं।
घर्षण के कारण लग जाती है आग, वायुमंडल में प्रवेश करते ही हो जाते हैं नष्ट
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उज्जैन स्थित जीवाजी वेधशाला के अधीक्षक डॉ. आर. पी. गुप्त ने भी चमकती वस्तु को उल्कापिंड बताया है। उनके अनुसार उल्कापिंड अक्सर टूटकर गिरते हैं। वे वायुमंडल में प्रवेश करते ही नष्ट हो जाते हैं। शनिवार को नजर आया उल्कापिंड काफी बड़ा था जिसके चलते वह स्पष्ट रूप से नजर आया। गुप्त का कहना है कि टूटकर गिरने के दौरान हवा के घर्षण से उल्कापिंड में आग लग जाती है। इसके सात ही इसके छोटे-छोटे टुकड़े भी हो जाते हैं। प्रायः 99 फीसदी उल्कापिंड वायुमंडल में ही जलकर नष्ट हो जाते हैं। नतीजतन वे नजर नहीं आते। बता दें कि उल्कापिंड के टुकड़ों की वैसे तो बाजार में कोई कीमत नहीं है किंतु शोध की दृष्टि से ये वैज्ञानिकों के लिए बहुत कीमती हैं।