यह कैसी ‘बोधि’ ? बोधि इंटरनेशनल स्कूल का प्रबंधन पहले सिर्फ विद्यार्थी को ठहरा रहा था गलत, अब प्रिंसिपल का अस्थायी निलंबन कर जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली

छात्र के स्कूल भवन से कूदने के मामले में रतलाम के बोधि इंटरनेसनल स्कूल ने प्रिंसिपल को अस्थायी रूप से निलंबित कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली है। इधर, सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर बहस जारी है। लोग स्कूल की मान्यता निरस्त करने की मांग भी कर रहे हैं।

यह कैसी ‘बोधि’ ? बोधि इंटरनेशनल स्कूल का प्रबंधन पहले सिर्फ विद्यार्थी को ठहरा रहा था गलत, अब प्रिंसिपल का अस्थायी निलंबन कर जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली
बोधि इंटरनेशनल स्कूल।

एसीएन टाइम @ रतलाम । कथित तौर पर अस्तित्वहीन समिति के नाम पर हथियायी गई जमीन पर खड़े बोधि इंटरनेशनल स्कूल का प्रबंधन अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने में माहिर है। जो प्रबंधन पहले छत से छलांग लगाने वाले छात्र को ही गलत ठहरा रहा था, उसी ने अब अपनी प्रिंसिपल को निलंबित कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है। निलंबन भी सिर्फ अस्थायी तौर पर किया गया है। ऐसे प्रबंधन द्वारा संचालित स्कूल की मान्यता रद्द करने के लिए लोग सोशल मीडिया पर मांग कर रहे हैं।

प्रताड़ना से तंग आकर कक्षा 8वीं के विद्यार्थी द्वारा स्कूल की तीसरी मंजिल से कूद कर आत्महत्या करने के प्रयास के मामले में स्कूल प्रबंधन का झूठ सामने आ चुका है। सीसीटीवी फुटेज में उक्त विद्यार्थी लगातार प्रिंसिपल डॉली चौहान की प्रताड़ना झेलता नजर आ रहा है। 47 बार माफी मांगने के बाद भी प्रिंसिपल चौहान का रवैया हिटलर जैसा ही रहा। शारीरिक श्रम और अपने मेहनत के बूते पर अर्जित किए गए मेडल वापस लेने और करियर खराब करने जैसी धमकियों ने विद्यार्थी को इतना मायूस कर दिया कि उसने स्कूल की तीसरी मंजिल से कूद कर जीवन समाप्त कर लेने जैसा घातक कदम उठा लिया। प्रिंसिपल की इस प्रताड़ना ने एक किशोर को जिंदगी भर के लिए अपाहिज बना दिया है और उसके मन में एक अजीब का डर भी पैदा कर दिया है। बावजूद, प्रबंधन शुरुआत में अपनी प्रिंसिपल के पक्ष और बचाव में ही खड़ा रहा और स्कूल में मोबाइल लाने के लिए विद्यार्थी को समझाइश देने की बात कहता रहा।

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वरना दर्ज नहीं हो पाता केस !

गनीमत रही कि विद्यार्थी बोल पाने की स्थिति में रहा और उसने स्कूल प्रिंसिपल चौहान की करतूत मीडिया के साथ ही पुलिस और प्रशासन को बता सका। उसके बयान और सीसीटीवी फुटेज के आधार पर ही औद्योगिक क्षेत्र थाने पर प्रिंसिपल डॉली चौहान के विरुद्ध जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धाराओं में प्रकरण दर्ज हो सका है। अगर विद्यार्थी बयान देने की स्थिति में नहीं होता और प्रबंधन को घटना के समय के सीसीटीवी फुटेज से झेड़छाड़ का मौका मिल गया होता तो शायद ही यह केस दर्ज हो पाता। वैसे भी स्कूल के संचालन से जुड़े लोगों को ऐसे मामलों को रफा-दफा करने में महारथ हासिल है। उन्हें सफलता नहीं मिल पाने की मुख्य वजह गंभीर घायल विद्यार्थी के परिजन का मुखर होना और उन्हें आदिवासी संगठनों का साथ मिलना रही।

अपनी प्रिंसिपल पर अब भी भरोसा, इसलिए किया अस्थायी निलंबन

विद्यार्थी के परिजन, आदिवासी संगठन के विरोध प्रदर्शन और सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद स्कूल संचालक विवेक पितलिया ने प्रिंसिपल डॉली चौहान को निलंबित करने का आदेश तो जारी कर दिया है लेकिन उन्हें अभी भी उनके बेगुनाह होने का पूरा भरोसा है। यही वजह है कि प्रिंसिपल को जांच प्रक्रिया पूरी होने तक अस्थायी रूप से ही निलंबित किया गया है। स्कूल प्रबंधन की ओर से प्रिंसिपल को तीन दिन में अपना पक्ष रखने का भी मौका दिया गया है। प्रिंसिपल प्रबंधन की कार्रवाई या उन पर जो आरोप लग रहे हैं, यदि वे असहमत हैं तो उसके लिए भी स्कूल प्रबंधन से अपील कर सकती हैं। निलंबन अवधि में उन्हें स्कूल आने या किसी गतिविधि में शामिल होने की अनुमति नहीं रहेगी।

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सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस मान्यता निरस्त करने की मांग भी उठी

उक्त घटनाक्रम के बीच लोग सोशल मीडिया पर भी प्रतिक्रिया व्यक्त कह रहे हैं। कोई बच्चों को स्कूल में मोबाइल फोन लेकर नहीं आने की बात कह रहे हैं तो कोई शिक्षकों को भी अपने मोबाइल फोन घरों में ही रख कर आने की आवश्यकता जता रहे हैं। चर्चा में स्कूल की शिक्षक और विद्यार्थी दोनों की ही गलती बताई जा रही है। वहीं कुछ लोग सीधे तौर पर बोधि इंटरनेशनल स्कूल प्रबंधन और उसकी प्रिंसिपल व शिक्षक को सीधे तौर पर गलत बताते हुए उन्हें जेल भेजने और स्कूल की मान्यता रद्द करने की मांग कर रेह हैं।

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फेसबुक पर इस मामले में हुई कुछ पोस्ट

‘हेमंत अजमेरा’ नामक एक व्यक्ति ने लिखा है कि-

‘बोधी इंटरनेशल स्कूल की मान्यता रद्द होनी चाहिए, इसे माफ न किया जाए ओर सभी पालकों को अपने बच्चों की tc ले लेनी चाहिए।’ इस पोस्ट का कई लोगों ने समर्थन भी किया है। वहीं एक व्यक्ति ने लिखा है कि ‘ज्यादा कुछ नहीं होना है’ जो स्कूल प्रबंधन के रसूख के आगे जिम्मेदारों की नहीं चलने का संकेत है।

‘मोहित लालन जैन’ लिखते हैं कि-

‘प्रिंसिपल को स्कूल में रहने का कोई अधिकार नहीं है। बच्चों के बार-बार सॉरी बोलने पर भी इतनी अकड़ अच्छी बात नहीं है। बच्चों के भविष्य के लिए प्राचार्य को रखा जाता है। कड़ी एक्शन होनी चाहिए। आज बच्चों को कुछ हो जाता तो इसकी जिम्मेदार कौन होती। मां-बाप से एक घर का चिराग मिट जाता।’

‘यशी मेनारिया’ की पोस्ट है कि-

‘बच्चों से हुई गलतियों को समझदारी और संवेदनशीलता के साथ स्वीकार कर लेना ही हर शिक्षक और अभिभावक का प्रमुख कर्तव्य होना चाहिए। जब हम उन्हें क्षमा करते हुए सही दिशा दिखाते हैं, तभी वे अपनी भूल से सीख पाते हैं और भविष्य में वही गलती दोहराने से बचते हैं।

‘सिंह साब’ नाम के एकाउंट की पोस्ट है-

‘Bacha innocent hai apne dosto ka naam bhi highlight kar diya.. teachers ko samjhna chahiye kis degree ka dabao banana hai bachcho par.. har bachcha strong nahi hota ke sab jhel jae..’

‘मोहिनी राय’ नाम से एक पोस्ट में कहा गया है कि-

‘teacher ya principal ne kuch nhi bola, bahut jada hi bol diya.. panic kar diya bachhe ko.. jbki bachha lagatar maafi mang raha tha ki aage se kabhi nhi karunga... bahut dar gaya tha apne kaan pakad k maafi mang raha tha.. but principal ne bola tmko risticate karta hu, tmhara career gaya ab.. papa ko aane do fir dekho tm... bachha kitna bhi ho chota h.. itna panic kiya gya usko.. use lga mera career gaya ab... isliye wo bardasht nhi kr paya kud gya... Itna kisi k bhi sath nhi karna chahiye atyachar’

‘सुकृति नवीन श्रीवास्तव’ नाम से की गई एक पोस्ट है-

‘Bacche se jayada principal ki galati h itni baar sry bolne ke baad bhi akad rahi thi’

‘प्रिंस शीनू खराड़ी’ के अनुसार-

‘Teacher's ko student par itna dabaaw nahi dalna chahiye tha.’

‘जयश्री डोशी’ लिखती हैं कि-

‘ज्यादातर इंग्लिश मीडियम स्कूल में टीचर B.Ed किए हुए नहीं होते हैं, इसलिए सही तरह से टीचिंग भी नहीं कर पाते हैं, यही वीडियो में दिख रहा है, सारे टीचर्स किस तरह से स्टूडेंट को डांट रही है, इसकी जगह कोई भी बच्चा डिप्रेशन में आ सकता है। मां बाप को भी समझना चाहिए की इंग्लिश सिर्फ बोलचाल की भाषा है संस्कार और संस्कृति की भाषा नहीं है बच्चों को ज्यादा परसेंटेज नहीं लेकिन खुद की पहचान बनाने का रास्ता दिखाना चाहिए।’

इसी प्रकार ‘राजू पांडेय’ नाम के व्यक्ति की पोष्ट है कि-

‘इसको हटाओ गे दूसरा आयेगा ये नहीं चलेगा नियम ये होना चाहिए कि अगर कोई भी बच्चा स्कूल के दबाव में मारा तो स्कूल के प्रबंधक प्रिंसिपल क्लास टीचर को सब से पहले जेल हो और स्कूल कि मान्यता रद्द हो जब जाके ये सुधरेंगे।’

'अमिता ओझा' नाम की एक फेसबुक यूजर ने लिखा-

'सारे घटक कुछ कुछ सीमा तक। बालक ने शाला अनुशासन का पालन नहीं किया। अभिभावक का भय इतना की "ख़ैर होगा" तक ही बात सिमित नहीं रहेगी। शाला प्रशासन तो सबसे अधिक __। बच्चा आपसे कयी बार माफी मांग रहा है फिर थोड़ा नरम व सकरात्मकता रवैया होना चाहिए। बात बिगड़ जाए फिर क्या आप और आपकी समझदारी। मेरा दृष्टिकोण।'
'बोधि' का क्या है अर्थ और संस्था में इसका कितना है प्रभाव

'बोधि' शब्द का अर्थ है "जागृति," "ज्ञानोदय," या "श्रेष्ठतम ज्ञान।" यह शब्द संस्कृत और पाली भाषा से आया है। बौद्ध धर्म में इसका काफी गहरा महत्व है। यह बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति और निर्वाण की स्थिति को दर्शाता है। इसका शाब्दिक अर्थ "जाग जाना" या "समझ जाना" भी होता है। यह बात अलग है कि एक स्वयं-भू 'इंटरनेशनल' होने का तमगा लगाने वाला स्कूल प्रबंधन 'बोधि' शब्द के अर्थ को न तो समझ पाया है और न ही अपने स्टाफ को ही समझा पाया है कि- उसे अपने विद्यार्थियों की मनःस्थिति को किस तरह भांपना है और उनसे किस तरह पेश आना है।