प्रसंगवश (जन्मदिन 13 जनवरी पर विशेष) : "साहित्यकार अजहर हाशमी ने जो लिखा, उसे जीया"

साहित्यकार, कवि, चिंतक एवं समालोचक प्रो. अज़हर हाशमी का 13 जनवरी को जन्मदिन है। इस खास अवसर पर प्रस्तुत है यह आलेख।

प्रसंगवश (जन्मदिन 13 जनवरी पर विशेष) : "साहित्यकार अजहर हाशमी  ने जो लिखा, उसे जीया"
प्रो. अज़हर हाशमी एवं श्वेता नागर।

श्वेता नागर 

''नेक नीयत से तेरा जब, वास्ता हो जाएगा,

रब की रहमत से तुझे, सब कुछ अता हो जाएगा।

पूछता रहता है तू, कहते हैं किसको देवता?

इंसानियत के पथ पे चल, तू देवता हो जाएगा।'' 

ये प्रेरणादायी काव्य पंक्तियाँ हैं प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार अज़हर हाशमी जी की। इन पंक्तियों की व्याख्या करने की आवश्यकता इसलिए नहीं है क्योंकि ये बोलती हुई कविता की तरह है। अर्थात एक तरह का लाइव टेलीकास्ट जिसमें सकारात्मक संदेश निहित है। अजहर हाशमी जी अपनी हर रचना में चाहे वह कविता हो, मुक्तक हो, गीत हो, ग़ज़ल हो, निबंध हो या लेख हो सार्वभौमिक मानवीय मूल्यों का परचम लहराते हैं। उनकी सबसे बड़ी बात तो यह है कि जैसा उन्होंने लिखा है और लिख रहे हैं, वैसा ही जीवन जीया और जी रहे हैं। खरापन, स्पष्टवादिता और सत्य को साहस के साथ रेखांकित करना, ये उनके व्यक्तित्व की पहचान है। उन्हीं की पंक्तियाँ हैं- 

"जब कभी अन्याय की हो सख्तियाँ,

बोलकर, लिखकर करो अभिव्यक्तियाँ।

आप सचमुच सत्य हैं तो झूठ की,

ध्वस्त हो जाएंगी सारी शक्तियां।" 

उनके संपूर्ण जीवन दर्शन में सूफी परंपरा की झलक मिलती है। एक सूफी संत जिस तरह का जीवन जीता है और व्यवहार करता है, अर्थात् सब के प्रति समदर्शिता का भाव लेकिन सब्र, सच्चाई और साहस कभी नही छोड़ना। सूफी की यह भी विशेषता है कि वह सभी धर्मों और उनके आदर्शों के प्रति श्रद्धा भाव रखते हैं। इसलिए अज़हर हाशमी जी ने भारतीय संस्कृति के सभी आदर्शों के प्रति अपना समर्पण भाव रखते हुए भगवान राम, कृष्ण, शिव और सनातन धर्म के सभी वेद, उपनिषद, भगवत गीता और रामचरित मानस की सरल व्याख्या कर उनमें निहित संदेशों को भारत ही नही विदेशों में भी पहुंचाया है।

इसके साथ ही जैन धर्म, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, सिक्ख धर्म और इस्लाम धर्म में निहित पवित्र और गूढ़ बातों को जन मानस तक पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं। क्योंकि धर्म के बारे में उनका बड़ा मशहूर वक्तव्य है "वैदिक धर्म विश्वास का व्याकरण है, जैन धर्म अहिंसा का अमृत कुंड है, बौद्ध धर्म करुणा का कलश है, इस्लाम धर्म बंधुत्व की बारहखड़ी है, ईसाई धर्म क्षमा का क्षितिज है, यहूदी धर्म सदाशयता का संदेश है, सिक्ख धर्म साहस का सेतु है। सभी धर्म सत्कर्म सिखाते हैं। कुल मिलाकर यानी धर्म मानवता की मुंडेर पर चेतना का चिराग़ है।" यानी अज़हर हाशमी जी हर धर्म में मौजूद अच्छी बातों को आचरण में उतारने पर जोर देते हैं। इसी से धर्म की सार्थकता सिद्ध होती है। 

प्रो. अज़हर हाशमी जी एक ऐसे गुरु हैं जो अपने शिष्यों को सदैव संस्कार, ज्ञान और विज्ञान की ऊँचाई पर देखना चाहते हैं। इसके लिए वे हमेशा अपने शिष्यों को सदैव आत्मविश्वास और सकारात्मकता से भरपूर रखते हैं। उन्हीं की काव्य पंक्तियाँ हैं जो शिष्यों के प्रति उनके भावों को व्यक्त करती है- 

"अपने शिष्यों के लिए ज्ञान का संसार गुरु,

कभी विद्या का नहीं करता है व्यापार गुरु!

कभी शिष्यों को भटकने नहीं देता है वो,

प्रेरणा-पुंज है, आलोक का संचार गुरु!" 

अज़हर हाशमी जी युवा पीढी को अच्छे लक्ष्य के प्रति सतत् कर्म करने की सीख देते हुए कहते हैं कि- 

"लक्ष्य शुभ है तो चलो-चलते रहो,

सोचो मत 'ऐसा न हो, वैसा न हो'

भाग्य की भी भूमिका होती है, पर

कोशिशें करने में मत पीछे रहो!"

सामान्यतः देखने में आता है कि कृतज्ञता का भाव लुप्त होता जा रहा है जबकि कृतज्ञता का भाव मानवीय मूल्यों और संस्कारशीलता का परिचायक है। इसलिए हाशमी जी कहते हैं कि- 

"जो शख्स तेरे दुख में तेरे साथ खड़ा था,

कद उसका फरिश्ते से कहीं ज्यादा बड़ा था।" 

दरअसल, साहित्यकार अज़हर हाशमी जी का समस्त साहित्य संदेश देता है इंसानियत और सत्कर्म का और इसे ही वे धर्म मानते हैं और कहते हैं- 

"इंसानियत का काम है लोगों के दुख हरना

जो भर सको तो घाव लोगों के सदा भरना

चलते रहना तुम सदा सत्कर्म के पथ पर

आलोचना होगी मगर परवाह न करना।" 

अज़हर हाशमी जी को जन्मदिन (13 जनवरी) की बधाई! 

(श्वेता नागर)

संपर्क : 7869542660