प्रसंगवश : बच्चों का मनोविज्ञान, बाल साहित्य और डॉ. विकास दवे का योगदान
बच्चों के मनोविज्ञान को समझना और उसके अनुरूप बच्चों साहित्य उपलब्ध कराना आसान नहीं है। इसे आसान बनाने में मप्र साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। डॉ. दवे ऐसा कैसे कर पाए यह बता रही हैं पेशे से शिक्षक एवं युवा लेखिका श्वेता नागर।
डॉ. विकास दवे का जन्मदिवस (30 मई) पर विशेष
श्वेता नागर
बाल मन उस अनंत आकाश की तरह है जिसकी सीमाएं नहीं बांधी जा सकती। कल्पनाशीलता, रचनात्मकता और जिज्ञासा इस अनंत आकाश में निरंतर उड़ान भरती रहती हैं। आवश्यकता है इस उड़ान को सही दिशा देने की क्योंकि इस बाल मन में ही निर्माण होता है एक संवेदनशील, चरित्रवान और संस्कारी मानव का।
नई शिक्षा नीति 2020 में भी इस बात पर जोर दिया गया है कि बच्चों को भारतीय संस्कृति की समृद्ध परंपरा से जोड़ते हुए उनमें रचनात्मकता, नैतिक और मानवीय मूल्यों को विकसित किया जाए। बच्चों के लिए इसी आनंदमूलक, मानवीय मूल्यों और भारतीय संस्कारों से युक्त शिक्षा की दिशा में निरंतर अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे। बाल साहित्य के क्षेत्र में 'देवपुत्र पत्रिका' उनके प्रयासों की प्रामाणिकता का प्रतीक है जिसके वे संपादक भी हैं। देव पुत्र पत्रिका विश्व की सर्वाधिक प्रसार संख्या वाली बाल पत्रिका है। बाल साहित्य एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ निरंतर शोध कार्यों की आवश्यकता होती है क्योंकि यह सीधा बच्चे के मनोविज्ञान से जुड़ता है। इस बात का श्रेय डॉ. विकास दवे को जाता है क्योंकि उनके अथक प्रयासों से ही सन् 2002 में बाल साहित्य शोध संस्थान की स्थापना इंदौर में की गयी और यह भारत का एकमात्र बाल साहित्य शोध संस्थान है।
नि:संदेह डॉ. दवे ने बाल साहित्य के क्षितिज को नए आयाम दिये हैं। इसके पीछे उनके अथक प्रयासों की एक अनवरत शृंखला है जहाँ उन्होंने बाल साहित्य को केवल ज्ञान या पुस्तकों के पांडित्य तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि निरंतर बच्चों के बीच में रहकर और सतत् संवाद स्थापित कर प्रायोगिक और व्यावहारिक रुप से बच्चों के मनोविज्ञान को समझने का प्रयास किया है। इसका एक उदाहरण है कि बच्चों के लिए उनकी आयु और कक्षा के अनुसार किस तरह का साहित्य उन्हें उपलब्ध करवाया जाए, यह भी एक समस्या थी और इस समस्या के समाधान लिए डॉ. दवे ने अथक प्रयास करते हुए कक्षा 1 से लेकर कक्षा 12 तक के बच्चों के लिए संदर्भ और पूर्ण विवरणों के साथ पुस्तकों की सूची तैयार की। नि:संदेह डॉ. दवे के बाल साहित्य के क्षेत्र में किये गए कार्य केवल हवाई किले बनाना नहीं है बल्कि जमीनी स्तर पर समस्याओं का अध्ययन करके उन्हें व्यावहारिक रूप में परिणत किया है। इसका प्रमाण है कि देवपुत्र पत्रिका का संपादन करते हुए उन्होंने कार्यशालाओं के माध्यम से लगभग 10 लाख बच्चों से सीधा संवाद स्थापित किया ताकि बच्चों के मनोभावों को समझ सके और बच्चों तक अपनी बात पहुँचा सके।
चूंकि डॉ. दवे बाल साहित्यकार के साथ ही विद्यालय में शिक्षण कार्य से भी लंबे समय तक जुड़े रहे हैं इसलिए बच्चों के अध्यापन कार्य में शिक्षक की भूमिका क्या और कैसी होनी चाहिए, इस बारे में उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि 'अध्यापक की भूमिका हवा की तरह होती है। हवा के बिना पुष्प विकसित नहीं हो सकता, हवा के बगैर पुष्प को रंग नहीं मिल सकता है और न ही गंध। जबकि हवा के पास न गंध होती है और न ही रंग। यानी अध्यापक में अपने विद्यार्थियों को ज्ञान देने की अद्भूत क्षमता है।'
बाल साहित्य में डॉ. दवे के सराहनीय कार्यों की एक लंबी सूची है। स्वयं वे बाल साहित्य में पीएच.डी. हैं। लर्न बाय फन की कक्षा 6, 7 और 8 की हिंदी पाठ्य पुस्तकों में उनकी रचनाएँ सम्मिलित हैं। 50 से अधिक शोध आलेखों का प्रकाशन हो चुका है। उनके द्वारा 80 से अधिक शोधार्थियों को बाल साहित्य में शोध कार्य संपन्न कराया जा चुका है। म.प्र साहित्य अकादमी से प्रकाशित साक्षात्कार पत्रिका का संपादन करते हुए बाल साहित्य पर केंद्रित शोधपरक अंक प्रकाशित किया गया जो कि बाल साहित्य में शोधार्थियों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करेगा।
डॉ. दवे म.प्र. शासन के पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा समाहित करने हेतु गठित सलाहकार समिति और गीता दर्शन को सम्मिलित करने हेतु गठित समिति के सदस्य भी है। वैसे भी डॉ. दवे बाल साहित्य में राष्ट्रीय चेतना, लोकतांत्रिक चेतना, पर्यावरण चेतना और आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील हैं। बच्चों को समाज के प्रति संवेदनशील बनाने में बाल साहित्य की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। स्वयं डॉ. दवे के शब्दों में 'व्यष्टि से समष्टि की यात्रा करवाना ही बाल साहित्य का उद्देश्य है।'
बाल साहित्य में किये गये अपने मौलिक और प्रशंसनीय कार्यों के लिए डॉ. दवे कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से सम्मानित किये जा चुके हैं। इनमें बाल साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने वाला प्रमुख सम्मान कन्हैयालाल नंदन पुरस्कार, बाल साहित्य प्रेरक सम्मान, बाल साहित्य जीवन गौरव सम्मान बाल साहित्य का राष्ट्रीय सम्मान गीता भाटिया आलोचना सृजन सम्मान आदि शामिल हैं। इसके साथ ही साहित्य में उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए महाराष्ट्र साहित्य अकादमी का सर्वोच्च सम्मान महाराष्ट्र भारती सम्मान भी उन्हें प्राप्त हो चुका है।
अपनी इस साहित्य यात्रा में डॉ. विकास दवे यूँ ही निरंतर कीर्तिमान स्थापित करते रहें और अपने साहित्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति, संस्कारों से परिपूर्ण पीढ़ी तैयार करते रहें, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ उन्हें जन्मदिवस (30 मई) पर बधाई!
श्वेता नागर
60, शुभम श्री कॉलोनी, रतलाम, मध्य प्रदेश
मोबाइल नंबर - 7869542660