प्रसंगवश : नवाचार और उपलब्धि के संदेशवाहक डॉ. विकास दवे के प्रयोगों व प्रयासों से नए आयाम स्थापित करती मप्र साहित्य अकादमी -श्वेता नागर

मप्र साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालता युवा लेखिका श्वेता नागर का यह आलेख आपको जरूर पसंद आएगा।

प्रसंगवश : नवाचार और उपलब्धि के संदेशवाहक डॉ. विकास दवे के प्रयोगों व प्रयासों से नए आयाम स्थापित करती मप्र साहित्य अकादमी -श्वेता नागर
डॉ. विकास दवे की साहित्य सेवा।

म. प्र. साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे के जन्मदिन (30 मई) पर विशेष

श्वेता नागर

'नवाचार और उपलब्धि' इस ध्येय वाक्य को आदर्श मानकर अपनी कर्मठ और सकारात्मक कार्यशैली से चरितार्थ करने वाले म. प्र. साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे, साहित्य के क्षेत्र में कई नवीन प्रयोग और क्रांतिकारी प्रयासों से निरंतर साहित्य अकादमी, म. प्र.में  सफलता के नवीन आयाम स्थापित करते जा रहे हैं।

साहित्य के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए नवाचार के माध्यम से साहित्य जगत में सकारात्मकता का माहौल तैयार हुआ जिसका प्रमाण यह है कि उन्होंने नई प्रतिभाओं को पहचान कर उनकी रचनाशीलता का पथ-प्रशस्त किया। इन नवीन प्रतिभाओं की सृजन शक्ति का स्थापित साहित्यकारो के साथ समन्वय किया। 'साक्षात्कार पत्रिका' इसका ज्वलंत उदाहरण है। युवाओं की ऊर्जा को वे न केवल पहचानते हैं अपितु उनको साहित्य से लेकर समाज और संस्कृति के उत्थान में भूमिका निभाने वाला महत्वपूर्ण घटक भी मानते हैं। वे स्वयं ऊर्जा से संपन्न हैं और चूँकि कर्मयोगी हैं इसलिए 'बिना रुके - बिना थके' भारतीय संस्कृति की उन्नति के ध्वज वाहक के रूप में आगे बढ़ते हुए कार्य करते रहते हैं

स्वामी विवेकानंद का यह कथन 'उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लो। 'इस संदेश का जीवंत प्रमाण है डॉ. विकास दवे का व्यक्तित्व। यूँ तो डॉ. विकास दवे के व्यक्तित्व में अनेक गुण हैं परंतु प्रमुख रूप से तीन गुण हैं- दृढ़ इच्छाशक्ति, जोखिम लेने की क्षमता और समय प्रबंधन। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति का ही प्रमाण है कि साहित्य अकादमी, म.प्र. के सीमित संसाधनों के बावजूद अकादमी की साहित्यिक गतिविधियाँ मध्यप्रदेश के कोने-कोने में जीवंत हो उठी।

पहला गुण : दृढ़ इच्छाशक्ति

'कोरोनाकाल' जिसने जीवन की सभी गतिविधियों को लगभग अवरुद्ध कर दिया था उस समय डॉ. विकास दवे का निदेशक पद संभालना और अकादमी के कार्यों को संचालित करना रेगिस्तान को हरा-भरा करने की चुनौती के समान था और उन्होंने यह चुनौती स्वीकार करके साहित्य के सूखे को समाप्त किया। सामान्यतः होता यह है कि प्रबंधन के मामले में सरकारी मशीनरी का अपना किंतु -परंतु होता है जिसके कारण प्रगति की धारा बाधित होती है। डॉ. विकास दवे ने सरकारी मशीनरी के इस किंतु-परंतु को अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से  संकल्पों की सिद्धि में बदल दिया।

दूसरा गुण : जोखfम लेने की क्षमता

डॉ. विकास दवे के व्यक्तित्व का दूसरा गुण है उनके जोखिम लेने की क्षमता । इसका प्रमाण है उन्होंने शासकीय सेवा जो कि कहीं न कहीं मध्यमवर्गीय परिवार के लिए  आर्थिक सुरक्षा की गारंटी होती है और डॉ. विकास दवे  रतलाम जिले की आलोट तहसील के एक साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हैं, उस शासकीय सेवा को छोड़कर चुनौती के रुप में देवपुत्र पत्रिका के संपादकीय विभाग में  कार्य करना प्रारंभ किया ताकि वे अपने 'नवाचार और उपलब्धि' के आदर्श को प्राप्त कर सके और हुआ भी ऐसा ही। संघर्ष करते हुए वे देवपुत्र पत्रिका के प्रबंध संपादक बने। और यहां भी उन्होंने अपनी सफल कार्यशैली से देवपुत्र पत्रिका को पाठकों के बीच लोकप्रिय बनाया और प्रसार संख्या के मामले में शीर्ष पर स्थापित किया। जोखिम लेने की डॉ. विकास दवे की यह क्षमता युवाओं के लिए संदेश देती है कि कुछ अच्छा और लीक से हटकर करने के लिए जीवन में जोखिम लेना पड़ता है। 

तीसरा गुण : समय प्रबंधन के धनी

डॉ. विकास दवे के व्यक्तित्व का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण गुण है समय प्रबंधन। इस दृष्टि से देखा जाए तो डॉ. विकास दवे चलते-फिरते प्रबंधन संस्थान है। उनके इस गुण का उदाहरण है कि वे प्रबंधन की संपूर्ण क्षमता के साथ समय तत्व का पालन करते हुए साहित्य अकादमी, म. प्र. के निदेशक, देवपुत्र पत्रिका के प्रबंध संपादक और बाल साहित्य शोध संस्थान का एक साथ कार्यभार संभालते हुए समय प्रबंधन की त्रिवेणी बने हुए हैं।

डॉ. विकास दवे की सृजनात्मकता को इन पंक्तियों के द्वारा रेखांकित किया जा सकता है-

"ठोकरों का काम लगना, हैं  लगेंगी

हार मत धीरज, की चलना जिंदगी है।

उस मुसाफ़िर को ही मंज़िल मिल सकेगी ,

जिनमें हिम्मत, हौंसले की ताज़गी है।"

श्वेता नागर (लेखिका)