हिंदू दार्शनिक व क्रांतिवीर महर्षि अरविंद की पुण्यतिथि पर स्वाध्याय, साधना, सत्संग शुरू, श्री अरविंद सोसायटी पुडुच्चेरी के आलोक पांडेय ने ध्वजारोहण किया
श्री अरविंद सोसायटी द्वारा हिंदू दार्शनिक, क्रांतिवीर श्री अरविंद घोष की पुण्यतिथि मनाई जा रही है। इसके तहत रतलाम के ऑरो आश्रम में 5 दिनी स्वाध्याय, साधना और अनुयायियों का समागम का आयोजन किया जा रहा है।
रतलाम के ऑरो आश्रम में आयोजित 5 दिवसीय कार्यक्रम का 9 दिसंबर को होगा समापन
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । ख्यात दार्शनिक श्री अरविंद घोष की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में 5 दिनी स्वाध्याय, साधना, सत्संग और समागम की शुरुआत 5 दिसंबर को हो गई। शुरुआत ध्यान शिविर से हुई। 9 दिसंबर तक चलने वाले आयोजन के दौरान श्री अरविंद का भारत विषय पर स्वाध्याय भी होगा।
श्री अरविंद सोसायटी की रतलाम शाखा द्वारा प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी महर्षि अरविंद की पुण्यतिथि पर स्वाध्याय, साधना, सत्संग और समागम का आयोजन कर रही है। आयोजन स्थानीय गंगासागर स्थित ऑरो आश्रम में होगा। शुरुआत 5 दिसंबर को सुबह ध्वजारोहण और ध्यान के साथ हो चुकी है।
इसी दिन सुबह 11.30 से दोपहर 1 बजे तक स्वाध्याय का आयोजन हो रहा है। 3.30 से शाम 5.00 बजे तक भी स्वाध्याय होगा। स्वाध्याय का विषय श्री अरविंद का भारत है। आयोजन श्री अरविंद आश्रम, पुडुच्चेरी के आलोक पांडेय के सान्निध्य में हो रहा है। स्वाध्याय और सत्संग का सिलसिला 9 दिसंबर तक चलेगी।
स्वाध्याय का समय
5 दिसंबर
- अपराह्न 3.30 से शाम 5.00 बजे तक
6 दिसंबर
- सुबह 9.30 से 11.00 बजे तक
- सुबह 11.30 से दोपहर 1.00 बजे तक
- अपराह्न 3.30 से शाम 1,00 बजे तक
7 दिसंबर
- सुबह 9.30 से 11.00 बजे तक
- सुबह 11.30 से दोपहर 1.00 बजे तक
- अपराह्न 3.30 से शाम 1,00 बजे तक
8 दिसंबर
- सुबह 9.30 से 11.00 बजे तक
- सुबह 11.30 से दोपहर 1.00 बजे तक
- अपराह्न 3.30 से शाम 1,00 बजे तक
9 दिसंबर
- सुबह 11.30 से दोपहर 1.00 बजे तक
- अपराह्न 4.30 बजे समापन एवं ध्वज अवतरण
- अपराह्न 3.30 से शाम 1,00 बजे तक
अन्य नियमित गतिविधियां (5 से 9 दिसंबर तक)
- सुबह 5.30 बजे मातृ संगीत
- सुबह 6.45 से 7.30 बजे तक योगाशन
- सुबह 8.15 से 8.45 बजे तक प्रातराश
- सुबह 8.45 से 9.30 बजे तक साधकों के उद्बोधन
- दोपहर 1.00 से 2.00 बजे तक भोजन
- दोपहर 2.00 से 3.15 बजे तक विश्राम
- अपराह्न 5.00 से शाम 6.00 बजे तक श्रमयज्ञ
- शाम 6.00 से 6.45 बजे तक विराम
- शाम 6.45 से 7.00 बजे तक संध्या
- शाम 7.00 से रात 8.00 बजे तक सांस्कृति कार्यक्रम
- रात 8.00 से 8.30 बजे तक भोजन
पिता ने 7 वर्ष की उम्र में भेज दिया था इंग्लैंड
बता दें कि श्री अरविंद घोष का जन्म 15 अगस्त 1872 में कोलकाता में हुआ था जबकि निधन 5 जनवरी 1950 को पांडिच्चेरी में हुआ। अरविंद के डॉ. कृष्णधन घोष थे। वे उन्हें उच्च शिक्षा दिला कर उच्च सरकारी पद दिलाना चाहते थे। इसके चलते उन्होंने मात्र 7 वर्ष की उम्र में ही अरविंद को इंग्लैंड भेज दिया था। उन्होंने महज 18 वर्ष की आयु में ही आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। उन्हें अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, ग्रीक और इटेलियन भाषा का भी ज्ञान था।
धर्म एवं राष्ट्र, शिक्षा और शिक्षक को लेकर श्री अरविंद के कुछ विचार
"भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान जैसी उत्कृष्ट उपलब्धि बगैर उच्च कोटि के अनुशासन के अभाव में संभव नहीं हो सकती जिसमें कि आत्मा व मस्तिष्क की पूर्ण शिक्षा निहित है।"
“जब मुझे आप लोगों के द्वारा आपकी सभा में कुछ कहने के लिए कहा गया तो मैं आज एक विषय “हिंदू धर्म” पर कहूँगा। मुझे नहीं पता कि मैं अपना आशय पूर्ण कर पाउँगा या नहीं। जब में यहाँ बैठा था तो मेरे मन में आया कि मुझे आपसे बात करनी चाहिए। एक शब्द पूरे भारत से कहना चाहिये। यही शब्द मुझसे सबसे पहले जेल में कहा गया और अब यह आपको कहने के लिये मैं जेल से बाहर आया हूँ।
एक साल हो गया है मुझे यहाँ आए हुए। पिछली बार आया था तो यहाँ राष्ट्रीयता के बड़े-बड़े प्रवर्तक मेरे साथ बैठे थे। यह तो वह सब था जो एकान्त से बाहर आया जिसे ईश्वर ने भेजा था ताकि जेल के एकान्त में वह इश्वर के शब्दों को सुन सके। यह तो वह ईश्वर ही था जिसके कारण आप यहाँ हजारों की संख्या में आये। अब वह बहुत दूर है हजारों मील दूर।“
"मानव की मानसिक प्रवृत्ति नैतिक प्रवृति पर आधारित है। बौद्धिक शिक्षा, जो नैतिक व भावनात्मक प्रगति से रहित हो, मानव के लिए हानिकारक है।"
"शिक्षक प्रशिक्षक नहीं है, वह तो सहायक एवं पथप्रदर्शक है। वह केवल ज्ञान ही नहीं देता बल्कि वह ज्ञान प्राप्त करने की दिशा भी दिखलाता है। शिक्षण-पद्धति की उत्कृष्टता उपयुक्त शिक्षक पर ही निर्भर होती है।"
"शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य विकासशील आत्मा के सर्वागीण विकास में सहायक होना तथा उसे उच्च आदर्शों के लिए प्रयोग हेतु सक्षम बनाना हैं।"
"मस्तिष्क का उच्चतम सीमा तक पूर्ण प्रशिक्षण होना चाहिए अन्यथा बालक अपूर्ण तथा एकांगी रह जायेगा। अत: शिक्षा का लक्ष्य मानव-व्यक्तित्व के समेकित विकास हेतु अतिमानस (supermind) का उपयोग करना है।"
"वास्तविक शिक्षण का प्रथम सिद्धान्त है कि कुछ भी पढ़ाना संभव नहीं अर्थात् बाहर से शिक्षार्थी के मस्तिष्क पर कोई चीज न थोपी जाये। शिक्षण प्रक्रिया द्वारा शिक्षार्थी के मस्तिष्क की क्रिया को ठीक दिशा देनी चाहिए।"