मां गायत्री के उपाषक प्रो. रुद्र कुमार कृष्णात्रे नहीं रहे, ताउम्र विद्यार्थियों के लिए समर्पित रहे शिक्षक ने अपनी देह भी शिक्षा के लिए समर्पित कर दी

अंग्रेजी के ख्यात प्रोफेसर रुद्र कुमार कृष्णात्रे का सोमवार को निधन हो गया। 87 वर्षीय प्रो. कृष्णात्रे की पार्थिव देह परिवार ने चिकित्सा के विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए रतलाम के शासकीय मेडिकल कॉलेज को सौंपी गई।

मां गायत्री के उपाषक प्रो. रुद्र कुमार कृष्णात्रे नहीं रहे, ताउम्र विद्यार्थियों के लिए समर्पित रहे शिक्षक ने अपनी देह भी शिक्षा के लिए समर्पित कर दी
प्रो. रुद्र कुमार कृष्णात्रे।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । शिक्षा जगत में चंद ही दिनों के अंतराल पर दूसरी बड़ी क्षति हो गई। सोमवार दोपहर करीब 12.20 बजे मां गायत्री के अनन्य उपाषक 87 वर्षीय प्रो. रुद्र कुमार कृष्णात्रे दुनिया को अलविदा कह गए। राजस्व कॉलोनी निवासी अंग्रेजी के प्रोफेसर ताउम्र विद्यार्थियों और लोगों को शिक्षित करने के अभियान में लगे रहे और जाते-जाते अपनी देह भी चिकित्सा शिक्षा के विद्यार्थियों के लिए समर्पित कर गए।

संभागीय अंगदान प्रत्यारोपण प्राधिकार समिति के सदस्य और पूर्व एमआईसी सदस्य समाजसेवी गोविंद काकानी के अनुसार प्रो. कृष्णात्रे की अंतिम इच्छा थी कि कि उनकी पार्थिव देह चिकित्सकीय शिक्षा के विद्यार्थियों के लिए मेडिकल कॉलेज को दान दे जाए। प्रो. कृष्णात्रे ने 11 मार्च (सोमवार) दोपहर को आखिरी सांस ली। करुणेश, सुदेश,  मुकेश और करुणा के पिता तथा एंजेला, हिमानी, श्रुति, कृति और भक्ति के दादा, अंकुर एवं ऋतिक के नाना रुद्र कुमार कृष्णात्रे का प्रभु मिलन होने पर उनकी अंतिम इच्छा अनुसार पार्थिव देह डॉ. लक्ष्मीनारायण शासकीय मेडिकल कॉलेज को दान की गई। प्रो. कृष्णात्रे ज्वाला प्रसाद जागीरदार (ठिकाना-रिंजलाएं जिला इंदौर) के सुपुत्र थे।

प्रो. कृष्णात्रे का पार्थिव शरीर मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. जितेंद्र गुप्ता, एनाटॉमी विभाग प्रभारी डॉ. राजेंद्र सिंगरौले, डॉ. फातिमा भोपालवाला, डॉ. शिवप्रकाश, डॉ. पुनीत शर्मा, डॉ. अनिल पटेल, डॉ. प्रवीण भारती  सहित अन्य की उपस्थित क्षेत्रवासी, समाजजन एवं परिवार के सदस्यों ने चिकित्सा के विद्यार्थियों को उनके अध्ययन हेतु सौंपा।

पूरी जीवन रहे शिक्षा के लिए समर्पित

प्रो. कृष्णात्रे अंग्रेजी के विद्वान होकर उन्होंने कई शिक्षकों, जज, एडवोकेट, डॉक्टर आदि को अंग्रेजी की शिक्षा दी। इतना ही नहीं उन्होंने शासकीय सेवा से निवृत्ति के बाद भी अध्यापन और मां गायत्री की साधना नहीं छोड़ी। उन्होंने आखिर तक बच्चों को नि;शुल्क शिक्षा दी। वे मानते थे कि शिक्षा से बड़ा कोई दान नहीं है। गायत्री परिवार वरिष्ठ सदस्य रहे प्रो. कृष्णात्र अच्छे संगीतज्ञ और गायक भी थे। उन्होंने मप्र और उप्र सहित अन्य शहरों में संगीत के कई कार्यक्रम प्रस्तुत किए। गायत्री मंत्र को लयबद्ध कर भजन के रूप में प्रस्तुत करने में उनका कोई सानी नहीं था।