क्रांतिकारियों के जीवन चरित्र से परिचय कराने वाले मांगीलाल जी का यूँ चले जाना अर्थात वैचारिक समरसता के दीपक का बुझ जाना

वैचारिक समरसता के दीपक के प्रतीक साहित्यकार मांगीलाल यादव का निधन रतलाम के साहित्य जगत के लिए एक बड़ी क्षति है। इसी पर प्रकाश डाल रहे हैं राष्ट्रवादी विचारक डॉ. रत्नदीप निगम।

क्रांतिकारियों के जीवन चरित्र से परिचय कराने वाले मांगीलाल जी का यूँ चले जाना अर्थात वैचारिक समरसता के दीपक का बुझ जाना
स्व. मांगीलाल यादव।

राष्ट्रीय विचारक डॉ. रत्नदीप निगम से जानें साहित्य जगत को हुई क्षति के बारे में

आज की सुबह रतलाम के लिए स्तब्ध करने वाली एक अत्यंत दुखद सूचना लेकर आई। नवसंचार माध्यम से जैसे ही श्री मांगीलाल जी यादव के निधन का समाचार प्रसारित हुआ, रतलाम का साहित्य जगत शोकमग्न हो गया। श्री मांगीलाल जी यादव रतलाम के ऐसे अदृश्य योद्धा थे जिन्होंने अपना जीवन क्रांतिकारियों के समर्थन एवं उनकी स्मृतियों को जीवित रखने में बिता दिया। रतलाम ही नहीं अपितु आसपास के अंचल में भी जाकर उन्होंने तत्कालीन समय के आजाद हिंद फौज के सिपाहियों को एवम क्रांतिकारियों को ढूंढ-ढूंढ कर उनसे मिलना एवम् उनका विभिन्न मंचों पर सम्मानित करना उनके जीवन का ध्येय था।

प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह की प्रतिमा रतलाम में स्थापित करने का उनका जुनून था। लगभग 30 वर्षों के सतत संघर्ष के बाद पूर्व पार्षद संदीप यादव के सहयोग से तत्कालीन महापौर परिषद द्वारा भगतसिंह की प्रतिमा की स्थापना करवाकर ही चैन लिया। रतलाम में व्याख्यानमालाओं के प्रारंभ करने के लिए उन्होंने कई लोगों को प्रेरित किया जिसके फलस्वरूप स्वर्गीय सरदार हरदयाल सिंह जी ने उनकी प्रेरणा से 1995 में रतलाम में तीन दिवसीय व्याख्यानमाला प्रारंभ हुई।

स्वर्गीय भंवर लाल जी भाटी की स्मृति में व्याख्यानमाला प्रारंभ करने और देश के प्रसिद्ध विद्वानों को उसमें व्याख्यान करवाने में भी श्री यादव जी ने सक्रिय भूमिका अदा की। रतलाम में साहित्यिक गोष्ठियों के नियमित आयोजन के लिए भी कवियों, लेखकों को लगातार प्रेरित करते रहने वाले यादव जी कुशल अध्येता एवं सफल आयोजक रहे हैं। उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी कि वे अपने वैचारिक प्रतिद्वंद्वीयों में भी सभी के अत्यंत प्रिय थे। रतलाम में किसी भी विषय की गोष्ठियों का आयोजन करना और सभी मे अपने वैचारिक प्रतिद्वंद्वियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने की कला में पारंगत थे।

विचारधारा के आधार पर छुआछूत और घृणा के इस युग में कोई कल्पना कर सकता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय का सभाकक्ष हो और वीर सावरकर के विषय पर व्याख्यान हो और व्याख्यान देने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सरदार हरदयाल सिंह हों, उपस्थित श्रोता गण घोर कम्युनिस्ट, कांग्रेसी और संघ के स्वयंसेवक हों। यह साम्यता केवल मांगीलाल यादव ही स्थापित कर सकते थे और उन्होंने कर दिखाया। वे युवाओं को क्रांतिकारियों का साहित्य एकत्रित कर पढ़ने के लिए देते थे और क्रांतिकारियों के विषय पर उनको लिखने के लिए प्रेरित करते थे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सक्रिय स्वयंसेवक रहे मांगीलाल जी कम्युनिस्ट संगठनों के कार्यक्रमो, कांग्रेसी मंचो पर आदरपूर्वक बुलाये ही नहीं जाते थे अपितु उन आयोजनों में व्यवस्थापक की भूमिका भी निभाते थे। रतलाम ने आज विचारधाराओं की नदियों के मध्य का सेतु खो दिया। शहीद भगतसिंह की जयंती हो या पुण्यतिथि, वर्ष में दो कार्यक्रम उनकी ओर से आयोजित किया जाना तय था। क्रांतिकारियों के जीवन चरित्र से सभी को परिचय कराने वाले मांगीलाल जी का यूँ चले जाना अर्थात वैचारिक समरसता का दीपक बुझ जाना। भविष्य में होने वाली किसी भी व्याख्यानमालाओं, साहित्यिक गोष्ठियों एवम बौद्धिक कार्यक्रमों में मांगीलाल जी सदैव स्मरण किये जायेंगे।

डॉ. रत्नदीप निगम

(राष्ट्रवादी विचारक)

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वैचारिक समरसता के पर्याय और क्रांतिकारियों के योगदान को जन-जन तक पहुंचाने वाले मांगीलाल यादव जी को एसीएन टाइम्स परिवार की ओर से शत्-शत् नमन।