गोल्ड कॉम्पलेक्स की जमीन शासकीय होने के दस्तावेज नहीं- राजस्व मंत्री राजपूत
रतलाम शहर में प्रस्तावित गोल्ड कांप्लेक्स की जमीन के स्वामित्व का मामला अब तक साफ नहीं हुआ है।
विधानसभा में विधायक हर्षविजय गेहलोत के प्रश्न पर राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत का जवाब
एसीएन टाइम्स @ रतलाम। गोल्ड कॉम्प्लेक्स के लिए आरक्षित जमीन के स्वामित्व को लेकर अभी असमंजस बरकरार है। प्रशासन और शासन के पास जमीन के शासकीय होने के दस्तावेज ही उपलब्ध नहीं है। जिला प्रशासन तो ठीक, भू-अभिलेख विभाग का ग्वालियर स्थित आयुक्त कार्यालय भी दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा पाया है।
गोल्ड कॉम्पलेक्स की जमीन के स्वामित्व को लेकर सैलाना विधायक हर्षविजय गेहलोत द्वारा विधानसभा में सवाल पूछा गया था। इसके जवाब में मप्र के राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने बताया कि सर्वे नंबर 105 तथा 106/2 बंदोबस्त 1956-57 के समय निजी नाम पर दर्ज थी। राजस्व अभिलेखों में 1962 में इसे शासन के नाम दिखाया गया था लेकिन इस संबंध में रतलाम कार्यालय में कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। इस पर आयुक्त भू-अभिलेख ग्वालियर को पत्र क्रमांक 166/भूअ/2023/रतलाम दिनांक 5/4/2023 को लिखा गया था। इसका आज तक कोई जवाब नहीं आया।
रेकॉर्ड देखे बिना क्यों की आरक्षित
मामले में विधायक गेहलोत ने बताया कि न्यायालय कलेक्टर रतलाम के प्रकरण क्रमांक 57/अ-20(3)/2014-15 आदेश दिनांक 17/5/2015 में भी इस बात को नजरअंदाज किया गया कि गोल्ड कॉम्प्लेक्स के लिए जो जमीन आरक्षित की जा रही है, वह 1956-57 के बंदोबस्त में निजी नाम पर दर्ज है। वर्तमान में जमीनों के विक्रय के समय 1956-57 के रिकॉर्ड को मान्गा जाता है। ऐसे में 1956-57 के बंदोबस्त के रिकॉर्ड को देखे बिना, जमीन को आरक्षित क्यों किया गया, यह बड़ा सवाल है।
पहले दिए जवाब में छिपाई थी जानकारी
विधायक गेहलोत ने कहा है कि रतलाम कलेक्टर ने आदेश क्रमांक 474/नजूल/70/रतलाम दिनांक 12/8/1970 से उक्त जमीन को शासकीय घोषित किया था। यह जानकारी पूर्व में दिए गए उत्तर में छिपाई गई थी। गेहलोत ने कहा कि जमीन के मालिक को सुनवाई का मौका दिए बिना किसी जमीन को शासकीय घोषित करना कलेक्टर की अधिकारिता के बाहर है। जमीन का अधिकार संविधान के द्वारा दिया गया व्यक्ति का मौलिक अधिकार है।
वरना बन जाएगा राजीव गांधी सिविक सेंटर
गेहलोत ने कहा कि उत्तर में यह असत्य उल्लेख किया गया है कि 1970 के बाद से यह जमीन राजस्व अभिलेखों में शासन के अधिपत्य की बताई गई है। जबकि पूर्व के उत्तर में इस जमीन को 1962 से राजस्व अभिलेखों में शासन की बताया गया है। गेहलोत ने कहा कि कलेक्टर इस बिंदु पर कानूनी पहलू का अध्ययन करने के बाद गोल्ड कॉम्प्लेक्स का कार्य प्रारंभ करें , वरना राजीव गांधी सिविक सेंटर तथा सुभाष मार्केट महू रोड की तरह यह प्रोजेक्ट उलझ जाएगा। इससे शासन को डेढ़ सौ करोड़ रुपए की हानि होगी, शहर का विकास भी अवरुद्ध होगा।