जनप्रतिनिधि हो तो ऐसा : मप्र का एकमात्र विधायक जो नहीं लेता वेतन और किसी भी प्रकार का भत्ता, जनहित के लिए छोड़ दिए सरकारी खजाने के करीब 2 करोड़ 40 लाख रुपए

230 विधायकों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा के एकमात्र सदस्य चेतन्य काश्यप एक विशेष कारण से चर्चा का विषय बने हुए हैं। अपने दोनों कार्यकाल में वेतन-भत्ते नहीं लेकर उन्होंने मिसाल प्रस्तुत की जिसकी हर तरफ सराहना हो रही है।

जनप्रतिनिधि हो तो ऐसा : मप्र का एकमात्र विधायक जो नहीं लेता वेतन और किसी भी प्रकार का भत्ता, जनहित के लिए छोड़ दिए सरकारी खजाने के करीब 2 करोड़ 40 लाख रुपए
जनप्रतिनिधि हो तो ऐसा।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । राजनीति पेशा नहीं, जनता की सेवा का जरिया है। ऐसा कहते तो सभी है लेकिन अमल करते कम ही लोगों को देखा है। रतलाम शहर विधायक चेतन्य काश्यप ऐसे ही चंद लोगों में शुमार हैं जिन्होंने राजनीति के क्षेत्र को जनसेवा के लिए चुना। काश्यप मध्यप्रदेश के इकलौते ऐसे विधायक हैं जो सरकार से न तो वेतन लेते हैं और न ही किसी अन्य प्रकार का भत्ता। उनका मानना है कि वेतन और भत्ते से बची राशि का उपयोग जनहित के कार्य में हो सकता है।

उद्योगपति चेतन्य काश्यप साढ़े नौ साल पहले जब भाजपा के टिकट पर रतलाम शहर से विधायक निर्वाचित हुए थे तब शपथ होते ही उन्होंने विधानसभा सचिवालय को एक पत्र सौंपा था। यह पत्र विधायकों शासन से मिलन वाले वेतन और भत्ते नहीं लेने की घोषणा का था। 230 विधायकों वाले राज्य मध्यप्रदेश में सिर्फ काश्यप ही ऐसे विधायक हैं जिन्होंने ऐसा संकल्प लिया और उस पर अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम दौर में भी कायम हैं। इसकी पुष्टि विधानसभा के प्रमुख सचिव ए. पी. सिंह ने भी की है।

यहां यह बताना उचित होगा कि मप्र में काश्यप जैसे उद्योगपति, सामाजसेवी और दानवीर कई विधायक हैं। कई तो आर्थिक रूप से संपन्नता के मामले में काश्यप से भी बढ़ कर हैं लेकिन वेतन-भत्तों नहीं लेने वाले वे इकलौते विधायक हैं। उन्होंने यह घोषणा करते हुए इसका उद्देश्य भी स्पष्ट किया था। उन्होंने कहा था कि वे चाहते हैं कि उनके हिस्से के वेतन और भत्ते की बची राशि का उपयोग सरकार जनहित से जुड़े कार्यों में करे। उनके इस निर्णय की तब भी काफी सराहना हुई थी और उनके इस कार्य को आदर्श के रूप में प्रदर्शित किया गया था।

करीब ढाई करोड़ रुपए होती वेतन-भत्तों की राशि

विधानसभा सचिवालय के अनुसार मध्यप्रदेश में एक विधायक को तकरीबन 1 लाख 10 हजार रुपए मासिक वेतन प्राप्त होता है। जितनी भी बैठकें होती हैं, इनका प्रति बैठक 2000 रुपए के हिसाब से भत्ता भी मिलता है। इसके अलावा यातायात भत्ता विधायकों को दिया जाता है। इस तरह तकरीबन 2 लाख रुपए एक विधायक को प्रतिमाह वेतन और भत्ता मिलता है। इस तरह विधायक काश्यप द्वारा अपने दोनों कार्यकाल में करीब 2 करोड़ 40 लाख रुपए वेतन-भत्तों का त्याग किया है। 

सामाजिक कार्य हो या जनहित का, अपनी कमाई से करते हैं खर्च

सरकारी वेतन-भत्ते नहीं लेने वाले विधायक काश्यप दान और सद्कार्य के मामले में भी हरदम आगे रहते हैं। इसकी बानगी उनके द्वारा शुरू किए गए और संचालित प्रकल्प हैं। अहिंसा ग्राम जैसा महत्वपूर्ण प्रकल्प पूर्ण रूप से उनके द्वारा ही वित्तपोषित है। इसके अलावा जब बरबड़ हनुमान मंदिर के सामने सभागृह बनाने की बात आई तब भी उन्होंने अलग हटकर प्रयास किए। सरकारी काम में कमीशनखोरी नई बात नहीं है। सभागृह के निर्माण में भी इसकी पूरी संभावना थी। मामला विधायक के संज्ञान में आया तो उन्होंने अपने स्तर पर भी एस्टीमेट तैयार करवाया तो पता चला कि निगम द्वारा तैयार करवाए गए एस्टीमेंट से तकरीबन आधे में ही सभागृह बन सकता है। विधायक ने जिम्मेदारों की ताकीद की और स्पष्ट कर दिया कि ऐसी कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए। इसका असर भी हुआ।

प्रधानमंत्री आवास की राह कर दी आसान

गरीबों को भी आशियाना मिल सके इसके लिए प्रधानमंत्री आवास योजना अस्तित्व में आई। तब कई हितग्राहियों के सामने आर्थिक संकट था खासकर उन लोगों के जिन्होंने किसी न किसी प्रकार का लोन ले रखा था। तब चेतन्य काश्यप फाउंडेशन और काश्यप परिवार द्वारा ऐसे लोगों की ऋण अदायगी में आर्थिक मदद की गई जिससे कई लोगों को उनके सपनों का घर मिल सका। मेडिकल कॉलेज को लेकर भी जब कानूनी दांव-पेंच आड़े आए तो काश्यप ने अपने खर्च पर ही वकील नियुक्त कर सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखने की तैयारी की गई। खेल चेतना मेला सहित अन्य खेल गतिविधियां, धार्मिक अनुष्ठान और अन्य सामाजिक कार्यों में विधायक काश्यप की सहभागिता एक मिसाल है।