एक मिसाल ऐसी भी : शादी के कार्ड पर लिखवा दिया ‘रक्तदान महादान’ का संदेश, ताकि रक्त की कमी से न जाए किसी की जान

सेवानिवृत्त विकासखंड शिक्षा अधिकारी द्वारा बेटे की शादी के कार्ड पर छपवाया गया रक्तदान महादान का संदेश काफी सराहा जा रहा है। पूर्व शिक्षक के बेटे और बहू स्वयं भी सक्रिय रक्तदूत हैं।

एक मिसाल ऐसी भी : शादी के कार्ड पर लिखवा दिया ‘रक्तदान महादान’ का संदेश, ताकि रक्त की कमी से न जाए किसी की जान
रक्तदान महादान का संदेश देता सेवानिवृत्त विकासखंड शिक्षा अधिकारी महेश मिश्रा के पुत्र अक्षांश व पुत्रवधू वेणु की शादी का कार्ड।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । रक्तदान के मामले में रतलाम और यहां के रक्तदूत मिसाल हैं। रक्त की कमी से किसी की जान न जाए, इसके लिए ये रक्तदूत कुछ भी कर गुजरने को हरवक्त तैयार रहते हैं। इसके लिए वे और उनके परिजन समाज को भी जागरूक करने में पीछे नहीं है। सेवानिवृत्त विकासखंड शिक्षा अधिकारी महेश मिश्रा ने तो लोगों को जागरूक करने के लिए अपने बेटे की शादी के कार्ड में ही ‘रक्तदान महादान’ का संदेश छपा दिया जिसकी हर तरफ प्रशंसा हो रही है। 

रतलाम निवासी महेश मिश्रा बताते हैं कि नव दंपति (पुत्र अक्षांश और पुत्रवधू वेणु) दोनों ही सामाजिक सरोकार से जुड़ी गतिविधियों और रक्तदान के प्रति समर्पित हैं। इसे देखते हुए ही उन्होंने अक्षांश और वेणु के शादी के कार्ड में ‘रक्तदान महादान करके देखिए अच्छा लगता है’ संदेश छपवाया ताकि रक्तदान के प्रति औरों को भी जागरूकता कर सकें। मिश्रा के अनुसार कई बार देखने में आता है कि हादसों में घायल अथवा अन्य बीमारियों से ग्रसित मरीज की जान खून की कमी के कारण चली जाती है। मुझे गर्व है कि बेटा अक्षांश व बहू वेणु मानव सेवा के इस कार्य में अग्रसर हैं।

हेल्पिंग हैंड्स ग्रुप के सदस्य हैं युगल

सेवानिवृत्त शिक्षक महेश मिश्रा के पुत्र अक्षांश और पुत्र वधू वेणु समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय हेल्पिंग हैंड्स ग्रुप के सक्रिय सदस्य हैं। अक्षांश अब तक 15 बार रक्तदान कर चुके हैं, वहीं वेणु भी तीन बार रक्तदान कर चुकी हैं। ग्रुप के संस्थापक अनिल रावल के मुताबिक वेणु एवं अक्षांश अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर भी निःस्वार्थ सेवा कर जरूरतमंदों की हरसंभव मदद के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। इनकी शादी के आमंत्रण पत्र पर ‘रक्तदान’ के लिए जागरूक करने वाला संदेश देना सराहनीय है। रावल के अनुसार अभी भी लोगों में रक्तदान के प्रति पर्याप्त जागरूकता नहीं है और लोग रक्तदान करने में झिझकते हैं। कई लोगों में यह भ्रम भी है कि रक्तदान से कमजोरी आ जाती है। इस झिझक और भ्रम को दूर करने के लिए ऐसे जागरूकता वाले कदम उठाना जरूरी हैं।

रक्त न फैक्टरी में बनता है और न ही पेड़-पौधे से पैदा होता

हादसों और बीमारी के दौरान रक्त की उपलब्धता नहीं हो पाती है। इसकी वजह यह है कि यह जीवनदायी तत्व न तो किसी खेत में पैदा हो सकता है और न ही किसी पेड़-पैधे से। यह इसका उत्पादन फैक्टरी में भी नहीं ह सकता है। यह सिर्फ हमारे शरीर में ही बनता है। हम जितना रक्तदान करते हैं, कुछ ही दिन में उतना ही नया रक्त हमारे शरीर में बन जाता है। नया रक्त बनने से शरीर भी स्वस्थ रहता है। यानी हम रक्त देकर औरों को तो जीवनदान दे ही सकते हैं, खुद भी स्वस्थ रहते हैं।