स्मृति शेष : द्वितीय पुण्य स्मरण । अपनी अलहदा राह के अकेले मुसाफिर थे 'आनंद' जी

साहित्यकार एवं कवि सुरेश आनंद का द्वितीय पुण्य स्मृति दिवस सोमवार को है। खास मौके पर जाने श्री आनंद के साहित्य सृजन की विशेषताएं साहित्यकार आशीष दशोत्तर के शब्दों में।

स्मृति शेष : द्वितीय पुण्य स्मरण । अपनी अलहदा राह के अकेले मुसाफिर थे 'आनंद' जी
सुरेश आनंद

आशीष दशोत्तर

साहित्य सिर्फ समय व्यतीत करने का माध्यम नहीं है। साहित्य के जरिए पूरी जीवन पद्धति निर्धारित होती है। कोई व्यक्ति यदि कहता है कि वह अपने सुख के लिए साहित्य की रचना कर रहा है तो यह गलत है। साहित्य का सृजन स्वयं के लिए न होकर उस जनसमूह के लिए होता है, जिससे जुड़कर कोई रचना पूर्ण हो पाती है।

पांच दशक से भी अधिक समय तक निरंतर सृजनरत रहे साहित्यकार श्री सुरेश 'आनंद' इसी जन पक्षधरता के रचनाकार थे। उन्होंने अपने इक्यासी वर्ष के जीवन में खूब लिखा। खूब छपे।हजारों समाचार पत्रों- पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं छपीं। कई संकलनों में उनकी रचनाएं शामिल हुई । उनके अपने रचना संग्रह काफी हैं।

मगर श्री सुरेश 'आनंद' ऐसे रचनाकार रहे जिन्होंने अपने लिए एक अलग ही रास्ता चुना। वे अलहदा रास्ते के अकेले मुसाफिर थे। अकेले सफर करते रहे। अपनी यात्रा के दौरान बेहतर कार्य करते रहे। उन्होंने गद्य और पद्य की हर विधा में लिखा। कविता, कहानी, व्यंग्य, लेख, नाटक, एकांकी आदि विधाओं में आनंद जी ने खूब लिखा। जिस स्वाभाविकता से लिखते थे उनका स्वभाव भी उसी सहजता को अभिव्यक्त करता था। वे कभी स्वयं को बड़ा बनाकर पेश नहीं करते थे। दुनिया की चमक-दमक से भी वे बहुत दूर से थे। अपनी एक कविता में वे कहते हैं- 

सड़क पर चलते लोग तुमने देखे हैं ?

ईमानदारी से नहीं देखे होंगे

अब तो लोग 

लावण्य रूप, निर्मल मुस्कान 

आत्मीय पीड़ा का ज्ञान, शरीर की विकृतियों पर

सहानुभूति की बात नहीं करते हैं।

अब तो लोग सूक्ष्म दृष्टि से देखते हैं।

आनंद जी ग्वालियर में जन्मे और 27 जून 2020 को रतलाम में उन्होंने अंतिम सांस ली। इस सफर के दौरान वे जनपद से लेकर गांव, खेत- खलिहान तक पहुंचे। उन्होंने संघर्ष करने वाले लोगों के साथ समय व्यतीत किया। उन्होंने विनोबा भावे की यात्राओं में हिस्सा लिया। गांधी मार्ग का उन्होंने अनुसरण किया । जीवन भर खादी के ही वस्त्र धारण किए। वे चाहते थे कि हमारी नई पीढ़ी गांधी के विचारों से परिचित हों। उन्होंने कहा- 

राजपथ का श्रंगार चूमने को 

मचल -मचल जाएगा तुम्हारा दिल 

कहने लगोगे अपने देश को धन्य

इसी देश के बन जाओगे निर्माता

फिर होगा नया बोध

जैसे गांधी, गौतम, महावीर को हुआ था

ठीक वैसे ही नया ज्ञान

नई रोशनी मिलेगी तुम्हें

आनंद जी इसी नई रोशनी को लाने के लिए जीवन भर अंधकार से लड़ते रहे। उनके सामने बाधाओं के पहाड़ थे मगर उन्होंने उनका डटकर मुकाबला किया। संघर्ष के आगे व कभी हारे नहीं। कई सारे पहलुओं में आनंद जी अपने समकक्ष रचनाकारों में बेहतर भी साबित होते हैं।

उनकी पहचान देशभर के साहित्यकारों में होती थी। राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित साहित्य समारोह में उन्होंने कई बार शिरकत की। कई सम्मान उन्हें मिले। आकाशवाणी और दूरदर्शन से उनकी रचनाएं कई बार प्रसारित हुईं। देश के प्रमुख समाचार-पत्र और पत्रिका उनकी रचनाएं सम्मान के साथ छापते रहे।

आनंद जी कलम के धनी थे। ईमानदारी से उन्होंने जितना लिखा उसे जिया भी। वे कथनी और करनी में भेद नहीं रखते थे। आनंद जी आज हमारे बीच नहीं हैं, मगर उनकी रचनाओं का विपुल भंडार हमारे बीच है। आनंदजी के पुत्र पत्रकार इंगित गुप्ता उनकी इस धरोहर को लोगों के सामने लाने के लिए प्रयासरत हैं। यकीनन एक दिन आनंद जी के इस विपुल रचना भंडार से हमारी नई पीढ़ी परिचित होगी और आनंद जी के सपनों की नई रोशनी बहुत दूर तक फैलेगी। आनंद जी की स्मृतियों को प्रणाम।

आशीष दशोत्तर

12/2, कोमल नगर

बरवड़ रोड, रतलाम

मो. 982708496