नीर का तीर : यह रतलाम है साहब, यहां जनता, जनप्रतिनिधि और अफसर तक सभी ‘प्रभु’ भरोसे हैं

चुनावी माहौल है, इसलिए इस बार के नीर के तीर में ऐसा ही कुछ खास पढ़िए। अगर पसंद आए तो प्रतिक्रिया जरूर दीजिए और इसे औरों को भी साझा कीजिए और पसंद नहीं आए तब भी प्रतिक्रिया जरूर दीजिए।

नीर का तीर : यह रतलाम है साहब, यहां जनता, जनप्रतिनिधि और अफसर तक सभी ‘प्रभु’ भरोसे हैं
नीर का तीर।

नीरज कुमार शुक्ला

‘भ’ से भगवान होता है और भरोसा भी। जब किसी को ‘किसी’ पर भी भरोसा नहीं रह जाए तो समझिए कि वह ‘भगवान भरोसे’ है। रतलाम इस मामले में पूरे प्रदेश में अव्वल है। अव्वल नहीं भी हो तो किसी से कम भी नहीं है। जनता से लेकर जनप्रतिनिधि तक और इन दोनों की सेवा के लिए गढ़ी गई अफसरों की जमात भी यहां ‘प्रभु’ (भगवान) भरोसे ही है।

गांवों में (अभि)नेताओं की आमद, आश्वासनों के पुल

चुनावी साल है, इसलिए जो न हो सो कम है। जो (अभि)नेता चार साल या या इससे भी ज्यादा समय तक अपने हाल में मस्त थे, उन्हें अचानक ही जनता और उसकी तकलीफें याद आने लगी हैं। रतलाम जिला मुख्यालय के आसपास के गांवों में तो विकास कार्यों की बाढ़ ही आ चुकी है। यहां लाखों-करोड़ों रुपयों के काम के भूमि पूजन हो रहे हैं। ऐसी जगह, जहां हर बारिश में घुटनों-घुटनों या कमर और इससे ऊपर तक पानी भर जाता है, वहां ‘आश्वासनों के पुल’ बन रहे हैं। टपकती छत तले अपना भविष्य संवारने की जद्दोजहद करने वाले स्कूलों में (अभि)नेताओं की आमद बढ़ गई है और बच्चों के साथ बैठकर भोजन करने की रस्म अदायगी भी। जिन बच्चों को मध्याह्न भोजन के वक्त कटोरी में रखे नमक-मिर्च मिले पानी में सब्जी के टुकड़े और दाल के दाने ढूंढे नहीं मिलते, उन्हें पूड़ी और खीर खाने को मिल रही है। यानी (अभि)नेताओं को चुनाव आते ही इन बच्चों में ‘भगवान’ और अभिभावक ‘वोट रूपी प्रसाद’ देने वाले पुजारी अथवा सेवादार नजर आने लगे हैं।

नाव के सवार ही नहीं, ‘मांझी’ भी ‘प्रभु’ भरोसे

‘प्रभु’ की भक्ति भी यकायक बढ़ गई है। भजन-कीर्तन तो कोई कथा-यात्रा करवा रहा है। रतलाम शहर से हर सप्ताह एक धार्मिक यात्रा निकल रही है। इसके आयोजक महाकाल को प्रसन्न करने के लिए पसीना बहा रहे हैं। आयोजकों का दावा है कि इस फ्री की यात्रा का सैकड़ों लोग लाभ ले रहे हैं लेकिन उनकी सुरक्षा और एहतियात के तौर पर सामूहिक बीमे जैसी व्यवस्था से जुड़े सवाल का जवाब  किसी के पास नहीं है। दावों में गिनाए जा रहे श्रद्धालुओं और वाहनों की संख्या में तालमेल नजर नहीं आ रहा। दरअसल, हर वाहन में यात्री के बैठने की क्षमता (संख्या) नियत है, यदि उससे अधिक लोग सवार हों तो मोटर व्हीकल एक्ट के तहत चालान हो सकता है। कहने वाले कह रहे हैं कि- श्रद्धालु से लेकर ऐसी कार्रवाई के लिए जिम्मेदार विभाग के अमले तक, सभी ‘प्रभु’ भरोसे हैं। अब जिस नाव का ‘मांझी’ खुद ‘प्रभु’ भरोसे हो, उसकी सवारी करने वाले का भगवान ही मालिक है।  

...और प्रकट हो गए नए ‘जनसेवक’

चुनाव की नाव में बैठने वालों की कमी नहीं हैं। पिछले दिनों रतलाम शहर में एक ‘जनसेवक’ अचानक ही प्रकट हो गए हैं। राजनीतिक घराने से ताल्लुकात रखने वाले इस ‘जनसेवक’ का इस तरह अचानक प्रकट होना फिलहाल आमजन की समझ में नहीं आ रहा है वह भी तब जबकि वे जिस पार्टी से संबंध रखते हैं उससे टिकट लगभग तय है। फिर भी कथित ‘जनसेवक’ के नजदीकी दावा कर रहे हैं कि उनका टिकट फाइनल हो गया है, परंतु कहां, कब और कैसे, ऐसे सवालों का सवाब उनके पास नहीं है। इसलिए सफाई दी जा रही है कि अगर अपनी पार्टी टिकट नहीं देती है तो दूसरी पार्टी तो है ही और यदि वहां भी पूछ-परख नहीं हुई तो फिर निर्दलीय के रूप में मैदान में कूदने से भला कौन रोक सकता है। शायद यही वजह है इन स्वयं-भू ‘जनसेवक’ के सोशल मीडिया पर जारी प्रचार में शुरुआत में किसी पार्टी का सिम्बॉल नज़र नहीं आ रहा था।

नगर-सरकार और चाय से ज्यादा गर्म केतली

पिछले दिनों रतलाम शहर में खबरचियों की प्रतिनिधि संस्था ने भव्य समारोह आयोजित किया। इसमें ‘खास’ ही नहीं, ‘आम’ लोग भी आमंत्रित किए गए। जनप्रतिनिधि भी आए और अफसर भी, परंतु ‘नगर-सरकार’ नहीं बुलाया। बताते हैं, कि- खबरचियों ने जानबूझ कर ‘नगर-सरकार’ को दरकिनार किया। दरअसल, खबरचियों को ऐसा पता चला है कि ‘नगर-सरकार’ और उनके सिपहलसालारों को उनकी ‘खोज-खबर’ लेने/रखने वाले खबरची पसंद नहीं हैं। इसलिए खबरचियों ने अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए उन्हें ‘नगर-सरकार’ से दूरी बना ली। इस दूरी की एक वजह नगर सरकार में ‘चाय से ज्यादा केतली का गर्म’ होना भी है। इस ‘केतली की गर्मी’ पिछले दिनों एक समारोह के दौरान भी महसूस की गई थी। यह ‘दूरी’ और ‘गर्मी’ आगे क्या गुल खिलाती है, फिलहाल कहना मुश्किल है।

चलते-चलते... पुड़िया में भरोसे की भैंस

रतलाम मालवा का हिस्सा है और यहां एक कहावत काफी प्रचलित है कि- ‘भरोसे की भैंस पाड़ा ही जनती है।’ कहने का आशय यह है कि बेशक आप किसी पर भी भरोसा कीजिए लेकिन आंख मूंद कर नहीं, खोल कर। ऐसा इसलिए कि कहीं आपके भरोसे की भैंस भी पाड़ा न जन जाए। भरोसा खुली आंख से करेंगे तो उसके टूटने पर या टूटने का अंदेशा होने पर संभलना आसान होगा। इसे जावरा विधानसभा के उन कांग्रेसियों से जोड़कर न देखें जो टिकट के लिए जारी दौड़ में एक-दूसरे को निपटाने की होड़ में लगे हैं। इनमें से एक दावेदार ने तो विरोधी पार्टी के लोगों को ही पुड़िया देने शुरू कर दी है, कि- ‘मेरा टिकट नहीं हो रहा है, मैं तो आपके लिए काम कर रहा हूं।’