नीर-का-तीर : टिकट नहीं मिलने से दावेदारों में उपजे आक्रोश के बीच एक वरिष्ठ ने भाजपा से बनाई दूरी, पार्टी के लिए यह नया झटका तो नहीं ?
टिकट वितरण के बाद से भाजपा की मुसीबत बढ़ गई है। असंतुष्टों द्वारा जिम्मेदारों पर कार्यकर्ताओं की अनदेखी के आरोप लगाए जा रहे हैं। ऐसे में पार्टी के वरिष्ठों का टिकट निर्धारक व विधायक चेतन्य काश्यप से दूरी बनाना आने वाले समय में पार्टी के मेयर प्रत्याशी और पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
रतलाम के राजनीतिक ऊंट ने फिर बदली करवट, यह भाजपा के लिए बन न जाए अशुभ संकेत
नीरज कुमार शुक्ला
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । राजनीति में न स्थायी दोस्ती होती है और नहीं स्थायी दुश्मनी, इसलिए परिस्थिति कब बदल जाए, दावे के साथ नहीं कह सकते। कुछ वर्ष पूर्व रतलाम शहर में भाजपा के राजनीतिक ऊंट ने करवट बदली थी। इसका असर यह हुआ कि कि शहर की राजनीतिक शक्ति का केंद्र पैलेस रोड से उठकर स्टेशन रोड जा पहुंचा था। वही राजनीतिक ऊंट एक बार फिर करवट बदल रहा है। टिकट वितरण के बाद से उपजा आक्रोश महापौर प्रत्याशी प्रहलाद पटेल और बाकी पार्षद प्रत्याशियों की राह में तो रोड़ा बनने के आसार हैं ही, ऐसे विषम हालात में संघर्ष के दौर के साथियों द्वारा अपना दायरा सीमित कर लेना शहर विधायक चेतन्य काश्यप और भाजपा के लिए नई मुसीबतों को जन्म दे सकता है।
टिकट नहीं मिलने से दोपहर में पूर्व एमआईसी सदस्य सीमा टांक सहित तमाम दावेदारों ने शुक्रवार दोपहर विधायक चेतन्य काश्यप के निवास पर हल्ला बोल दिया। शहर से बाहर होने से वे वहां नहीं मिले। ऐसे में नाराज कार्यकर्ताओं ने उनके स्टाफ को ही खरी-खोटी सुना दी। अभी इस घटनाक्रम चर्चा में ही था कि विधायक के संघर्ष में सहभागी रहे मीसाबंदी परिवार के सदस्य व सामाजिक कार्यकर्ता गोविन्द काकानी भाजपा से जुड़ सभी वाट्सएप ग्रुप से लेफ्ट हो गए।
चर्चा है कि जिम्मेदारों से मिली उपेक्षा के चलते वे भी नाराज हैं। इनकी सत्यता जांचने के लिए हमने भी उन्हें कॉल किया लेकिन उनका मोबाइल नो रिप्लाई मिला। अन्य स्रोतों से भी पुष्टि नहीं हो सकी। हमारी जानकारी के अनुसार उन्होंने इस बार कोई टिकट नहीं मांगा था। फिर उनकी नाराजी किस बात को लेकर है, यह जानने की जिज्ञासा है। प्रथमदृष्टया जो बात समझ आ रही है उसके अनुसार इसकी वजह शायद तीन बार एमआईसी में रहने के बाद भी उन्हें न तो चुनाव संबंधी कोई जिम्मेदारी मिली और न ही संगठन में। संभवतः यह कारण उनकी नाराजी का हो सकता है। खैर, वक्त आने पर यह भी स्पष्ट हो जाएगा।
जिम्मेदारों का अहम् और अदूरदर्शिता बड़ी वजह
आज के हालात पर बात करें तो नगरीय निकाय चुनाव के लिए महापौर और पार्षद के टिकट तय करने के लिए भाजपा को इस बार कुछ ज्यादा ही मशक्कत करना पड़ी। पार्टी से जुड़े सूत्र बता रहे हैं कि इसके मूल में संगठन में स्थानीय स्तर के जिम्मेदारों की अदूरदर्शिता और अहम् है। ये दोनों ही बातें टिकट वितरण के बाद ज्यादा स्पष्ट भी हो गईं। अगर ये दोनों ही कारण आड़े नहीं आते तो पार्टी के भीतर दौड़ रहा विरोध रूपी अंडर करंट जन्म ही नहीं लेता।
आइये, इसे ऐसे समझते हैं...
इतिहास के झरोखे में झांके तो हम पाएंगे कि मौजूदा विधायक चेतन्य काश्यप के पहले चुनाव के दौरान ज्यादातर बड़े नेता अनजान भय से ग्रस्त और किंकर्तव्यमूढ़ होकर घरों में बैठे थे। ऐसे में उनके संघर्ष में सहभागी बनने की हिम्मत कुछ लोग ही जुटा पाए। इनमें अशोक पोरवाल, गोविन्द काकानी, निर्मल कटारिया, अश्विन जायसवाल, रवि जौहरी, मनोहर पोरवाल और अशोक चौटाला (जैन) जैसे कुछ नाम प्रमुख हैं। इनमें से कुछ की आस्थाएं पूर्व के वर्षों में कहीं और थीं। यह उस दौर की बात है जब भाजपा की राजनीतिक शक्ति का केंद्र पैलेस रोड माना जाता था। जैसे ही अस्थाएं बदली और समय ने करवट बदली शक्ति का केंद्र खिसक कर स्टेशन रोड स्थित वीसाजी मेंशन बन गया। आस्थाएं क्यों बदली, शक्ति के केंद्र में परिवर्तन क्यों हुआ, इसके पीछे लंबी कहानी है और उसके लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। जनका यहां उल्लेख करना बोझिल हो जाएगा।
यह इतिहास का दोहराव तो नहीं ?
किसी की शक्ति भी कभी स्थायी नहीं रहती, वह समय के अनुसार अपने ठिकाने बदलती है। यह शक्ति की प्रकृति है इसलिए यह एक बार फिर किसी अन्य दिशा की ओर रुख करने का संकेत दे रही है। राजनीति के पंडित इसके लिए जिन कारणों को जिम्मेदार मान रहे हैं उनमें पूर्व नगर निगम अध्यक्ष अशोक पोरवाल का महापौर का टिकट कटना, रवि जौहरी और अश्विन जायसवाल के पार्षद के टिकट कटना प्रमुख हैं।
कारणों की इस फेहरिश्त में विधायक की अशोक चौटाला से दूरी बढ़ना, और पूर्व एमआईसी सदस्य गोविन्द काकानी जैसे अऩुभवियों को संगठन में स्थान नहीं दिला पाना और रतलाम विकास प्राधिकरण जैसी संस्था के अध्यक्ष का पद अब तक खाली पड़ा रहना भी शामिल है। ये वजहें इन सभी की नाराजी बढ़ाने के लिए काफी हैं। कहीं यह इतिहास का दोहराव तो नहीं ? वैसे काश्यप से रूठने से यदि कोई बचा है तो वे हैं निर्मल कटारिया और मनोहर पोरवाल जिनकी अपनी ही मजबूरिया हैं।
परिवार विशेष के यहां गिरवी आस्थाएं भी नहीं रहीं साथ
कहा जा रहा है कि महापौर प्रत्याशी का टिकट और पार्षद के टिकट वितरण से असंतुष्ट हुए नेता न सिर्फ विधायक काश्यप के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकते हैं, अपितु इस नगरीय निकाय के साथ ही 2024 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की राह में रोड़ा बन सकते हैं। एक तरफ जमीनी पकड़ वाले सेवाभावी और हिंदुत्व के प्रति समर्पित नेताओं और परिवार अपनी उपेक्षा के चलते खुद का दायरा सीमित करते जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ शहर के कतिपय बड़े नेताओं ने अपनी आस्थाएं अन्यत्र केंद्रित होती दिख रही हैं। अगर यह कहें कि कुछ ने तो अपनी आस्था एक परिवार विशेष के यहां गिरवी ही रख दी है तो यह गलत नहीं होगा।
...तस्वीर तो धुंधली है लेकिन धुंध नहीं छटी तो नुकसान होना तय
इन सब बातों का असर स्टेशन रोड स्थित शक्ति के केंद्र पर ही पड़ना है। वैसे भी पहले जहां फूल वाली कांग्रेस हुआ करती थी वहीं अब पंजे वाली भाजपा हो गई है। शुक्रवार को कांग्रेस द्वारा हर दृष्टि से प्रभावशाली व्यक्ति मयंक जाट को महापौर प्रत्याशी बनाने का संकेत देने से आने वाले दिनों की राजनीति की तस्वीर का खाका खिंच गया है। बेशक यह तस्वीर अभी कुछ धुंधली है लेकिन अगर अब भी जिम्मेदारों की अहम् और अदूरदर्शिता रूपी धुंध नहीं छंटी तो बड़ा खामियाजा भाजपा को ही भुगतना पड़ेगा।