‘मौत के मांझे’ से कटी 18 साल के युवक के गले की नस, पत्रकार की तत्परता और डॉक्टरों के प्रयास से बची जान

रतलाम में प्रतिबंधित चाइनीज मांझे की चपेट में आए 18 साल के युवक का जिला अस्ताल में ही इलाज होने से यहां के डॉक्टरों की सराहना हो रही है।

‘मौत के मांझे’ से कटी 18 साल के युवक के गले की नस, पत्रकार की तत्परता और डॉक्टरों के प्रयास से बची जान
चाइनीज मांझे से घायल 18 वर्षीय समीर।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । शहर के एक पत्रकार की तत्परता और जिला अस्पताल के डॉक्टरों की इन दिनों काफी चर्चा और सराहना हो रही है। वजह 18 वर्षीय एक युवक को मौत के मुंह से बाहर निकाल लाने की है। ‘मौत के मांझे’ के रूप में कुख्यात चाइनीज मांझे की चपेट में आए युवक के लिए डॉक्टर देवदूत बनकर सामने आए।

अन्य प्रतिबंधों की ही तरह जानलेवा चाइनीज मांझे की बिक्री और उपयोग पर लगा प्रतिबंध भी रतलाम जिले में ‘कागजी प्रतिबंध’ ही साबित हुआ। पतंगों के बजाय जिंदगी की डोर काटने वाले इस मांझे ने अकेले रतलाम शहर में ही आधा दर्जन से अधिक लोगों को अपनी चपेट में लिया। शहर के बापूनगर सेजावता के 18 वर्षीय समीर को तो मौत के मुंह तक ही पहुंचा दिया था। गनीमत रही कि समय रहते वह जिला अस्पताल पहुंच गया और डॉक्टरों की टीम ने उसे नया जीवनदान दे दिया।

जिला अस्पताल में ही इलाज के दिए निर्देश

युवक को जीवनदान मिलने में पहली भूमिका पत्रकार समीर खान की रही। उन्होंने सिविल सर्जन डॉ. एम. एस. सागर को मोबाइल पर सूचना दी कि 18 वर्षीय युवक समीर पहलवान बाबा की दरगाह के पास पतंग की डोर गले से लिपटने के कारण गंभीर रूप से जख्मी हो गया है। युवक को जिला चिकित्सालय लाया जा रहा है। सूचना मिलते ही डॉ. सागर ने आरएमओ डॉ. अभिषेक अरोरा को तत्काल अस्पताल पहुंचने के निर्देश दिए। उन्होंने यह भी ताकीद की कि युवक का यथासंभव जिला अस्पताल में ही इलाज किया जाए। इसके लिए जो भी आवश्यक हो मुझे अवगत कराएं। इलाज बगैर किसी दबाव के करें।

श्वास नली और वोकल कार्ड भी कटी

आरएमओ डॉ. अरोरा ने तत्काल वरिष्ठ सर्जन डॉ. गोपाल यादव एवं ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. अजय पाटीदार को अस्पताल पहुंचने के लिए कहा। वे स्वयं भी अस्पताल पहुँच गए। मरीज की हालत नाजुक होने से उसे सीधे ऑपरेशन थिएटर में ले जाकर प्रारंभिक उपचार शुरू किया। चूंकि चाइनीज मांझे से युवक की मांसपेशियां, ट्रेकिया (श्वास नली) और दोनों वोकल कार्ड भी पूरी तरह कट गई थी अतः तत्काल सर्जनी करना जरूरी था। इसकी जानकारी सिविल सर्जन डॉ. सागर को दी। चिकित्सकों ने सारी व्यवस्थाएं जुटाई और सर्जरी शुरू कर दी।

45 मिनट चली जटिल सर्जरी

श्वास नली और दोनों वोकल कार्ड को रिपेयर करना काफी जटिल कार्य था लेकिन जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने इसे कर दिखाया। पृथक से कृत्रिम श्वास नली ट्यूब के रूप में बनाकर ट्रेकिया कार्ड में डाली गई ताकि युवक श्वास ले सके। करीब 45 मिनट तक चली इस जटिल सर्जरी ने युवक को नया जीवनदान दिया। देवदूत बने डॉक्टरों की मदद नर्सिंग ऑफिसर और पैरामेडिकल स्टाफ ने की।

थोड़ी भी देर होती तो बचाना असंभव था

वरिष्ठ सर्जन डॉ. गोपाल यादव ने बताया कि यदि युवक को अस्पताल लाने और उसका उपचार शुरू होने में थोड़ी भी देर हो जाती तो उसे बचाना असंभव था। परंतु अब युवक खतरे से बाहर है। इधर, युवक को मौत के मुंह से बाहर निकाल लाने के लिए उसके परिजन ने जिला प्रशासन, सिविल सर्जन, सभी डॉक्टरों और स्टाफ के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया है।