पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) पर प्रसंगवश : धरती को पानीदार बनाएं, आइए, धरती बचाएं !

विश्व पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) के मौके पर प्रो. अज़हर हाशमी ने पनी इस कविता के माध्यम से बड़ी सीख दी है धरती बचाने की। आइये, जानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते प्रदूषण के कारण मरूस्थल की ओर बढ़ती हमारी धरती और हमारी सांसों को हम कैसे बचा सकते हैं।

पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) पर प्रसंगवश : धरती को पानीदार बनाएं, आइए, धरती बचाएं !
आइए, धरती बचाएं !

आइए, धरती बचाएं !

बड़ी - बड़ी ‘बातों’ से

नहीं बचेगी धरती

वह बचेगी

छोटी - छोटी कोशिशों से

मसलन

हम

नहीं फेंकें कचरा

इधर - उधर

स्वच्छ रहेगी धरती

हम / नहीं खोदें गड्ढ़े

धरती पर

स्वस्थ रहेगी धरती

हम / नहीं होने दें उत्सर्जित

विषैली गैसें

प्रदूषणमुक्त रहेगी धरती

हम / नहीं काटें जंगल

पानीदार रहेगी धरती

धरती को पानीदार बनाएं

आइए, धरती बचाएं !

अज़हर हाशमी

कवि, साहित्यकार, चिंतक, प्रोफेसर

(कविता हिंदी दैनिक ‘पत्रिका’ समाचार पत्र से साभार)