2023 के लिए मक्का शरीफ में तैयार हो रहे गिलाफ-ए-काबा में रतलाम की बेटियों ने लगाई बखिया, परिजन बोले- यह सौभाग्य की बात है

इन दिनों मक्का में गिलाफ-ए-काबा तैयार करने का काम चल रहा है। इसमें कुरआन की आयतों को उकेरने के लिए सोने व चांदी से बने धागों का उपयोग किया जा रहा है। रतलाम की दो बेटियों ने यहां एक-एक बखिया लगा कर सवाब हासिल किया।

2023 के लिए मक्का शरीफ में तैयार हो रहे गिलाफ-ए-काबा में रतलाम की बेटियों ने लगाई बखिया, परिजन बोले- यह सौभाग्य की बात है
गिलाफ-ए-काबा में बखिया लगाती रतलाम के बेटी जोया अंसारी।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । पवित्र स्थल मक्का में इन दिनों खाना ए काबा (गिलाफ-ए-काबा) तैयार किया जा रहा है। इस पवित्र गिलाफ में रतलाम की दो बेटियों को बखिया लगाने का सौभाग्य मिला। परिजन बोले- ये बेटियों और हमारे लिए किस्मत की बात है।

समाजसेवी एवं टूर्स एंड ट्रैवल्स व्यवसायी इरशाद मंसूरी ने एसीएन टाइम्स को बताया गिलाफ-ए-काबा जिसे किस्वा भी कहते हैं, इन दिनों मक्का में तैयार किया जा रहा है। यह 2023 में चढ़ाया जाएगा। इसे वहां की सरकार द्वारा एक फैक्टरी में तैयार किया जाता है। खुशकिस्मती है कि निर्माण प्रक्रिया के दौरान पाक गिलाफ-ए-काबा में एक-एक बखिया रतलाम मोमिनपुरा क्षेत्र के निवासी नाज़िम अंसारी की बेटियों ज़ोया (7 साल) और फ़ातेमा (4 साल) ने भी लगाई। मंसूरी के अनुसार दोनों बेटियां हमारे बड़े भाई नादिर अंसारी की भतीजियां हैं। बखिया लगाने का यह सवाब और ज़र्ब का मौका अल्लाह ने इन बच्चियों को दिया जो उनके लिए और परिवार के लिए सौभाग्य की बात है।

इरशान मंसूरी ने बताया हर साल बड़ी संख्या में रतलाम से श्रद्धालु हज और उमराह के लिए जाते हैं। जोया और फातेमा भी परिजन के साथ उमराह के लिए मक्का शरीफ पहुंची हैं। इसी दौरान वहां तैयार किए जा रहे गिलाफ-ए-काबा को स्पर्श करने का अवसर उन्हें मिला। बता दें कि मंसूरी की एजेंसी के माध्यम से रतलाम से 11 लोग वहां गए हैं। 29 अगस्त को वे भी जा रहे हैं। उनके साथ 60 अन्य सदस्य भी रहेंगे।

जानिए, क्या है गिलाफ-ए-काबा

इस्लाम धर्मावलंबियों के लिए काबा बहुत मायने रखता है। यह काले कपड़े जिसे गिलाफ-ए-काबा या किस्वा भी कहते हैं से ढका रहता है। यह हर साल बदला जाता है। इसका जिम्मा स्थानीय सरकार का है। गिलाफ-ए-काबा यहां स्थित किस्वा फैक्टरी में इटली से आयातित खास प्रकार के 670 किलोग्राम रेशम के धागों से तैयार होता है।

इसमें 120 किलोग्राम से ज्यादा सोने और चांदी के धागों का इस्तेमाल होता है जिससे कुरआन की आयतों को शक्ल दी जाती है। करीब 658 वर्ग मीटर लंबे, 18.9 फीट ऊंचे तथा 11 फीट चौड़े गिलाफ-ए-काबा को बनाने में कपड़े के 47 टुकड़े लगते हैं। प्रत्येक कपड़े की लंबाई 14 मीटर और चौड़ाई 101 सेंटीमीटर होती है।

किस्वा में आयतों के अलावा अल्लाह के नाम, किस्बा बनवाने वाले बादशाह के नाम भी उकेरे जाते हैं। यह काबा की चहारदीवारी के अलावा दरवाजे पर भी ढका होता है। दरवाजे वाले हिस्से की लंबाई 6 मीटर और चौड़ाई 3 मीटर होती है। इसे 240 से ज्यादा लोग पूरे सालभर में तैयार करते हैं। एक अनुमान के अनुसार इसे तैयार करने में तकरीबन 45 लाख डालर का खर्च आता है। उमराह और हज के दौरान धर्मावलंबी काबा-ए-गिलाफ का स्पर्श पाकर खुद को धन्य समझते हैं।