"Mann ki Baat" में पहली बार गैस, पेट्रोल और डीजल की बात, "मित्रो..." आप भी जान लीजिए क्यों बढ़ रहे इतनी तेजी से दाम
mann ki baat में पहली बार गैस, पेट्रोल और डीजल की बात। जानिए, क्यों बढ़ रहे इन चीजों के दाम। किस-किस को इस वृद्धि से हो रहा फायदा ही फायदा।
अमित निगम @ एसीएन टाइम्स
Mann-Ki-Baat
मित्रो,
काफी समय से गैस, पेट्रोल और डीजल के दाम उत्साहपूर्वक बढ़े हैं। इसके संदर्भ में मैं काफी समय से आपके साथ 'मन की बात' करना चाह रहा था, परंतु ऐसे समय का इंतजार कर रहा था जब यह उत्साह चरमोत्कर्ष पर हो। यह तभी उपयोगी साबित होगी जब हर्षोल्लास का वातावरण हो और मेरे 'मन की बात' से आपके तन-मन में दोगुना-चौगुना उत्साह का संचार हो। अब दीपावली का हर्षोल्लास से भरा त्यौहार नजदीक आ गया है तो मैंने भी सोचा आज आपसे इन तीनों विषय पर 'मन की बात' कर ली जाए।
मित्रो, गैस, पेट्रोल व डीजल के दाम बढ़ने से आज आम आदमी को काफी राहत कोरोना काल के बाद मिली है। इनके दामों में जिस तेजी से उछाल हम लाए हैं, उतनी ही तेजी से आपकी आमदनी भी बढ़ी है। यह दीपावली का पर्व मनाने के लिए आप में दोगुनी शक्ति का एहसास कराएगी, हर्ष-उल्लास का अहसास कराएगी।
मित्रो, मैं बताना चाहूंगा कि गैस के दाम बढ़ने से आज आम जनता का एक बार पुनः बहुत भला हुआ है। जहां घर में हर महीने 1000 रुपए का अतिरिक्त पड़ता था, उसको हमने कम करने का प्रयास किया है। इसी प्रयास के लिए हमने एक योजना भी शुरू कर दी है 'चूल्हा जला योजना'। इस योजना का लाभ यह हुआ है कि हमने घर-घर में जो स्टेनलेस स्टील के गैस स्टोव दिए थे उनका सही-सही उपयोग होने लगया है। गरीब-मध्यमवर्गीय लोग एक बार पुन: अपनी मुख्यधारा से जुड़ गए हैं। कहते हैं कि जमीन से जुड़े रहना चाहिए और प्रकृति के नजदीक रहना चाहिए। देखिए, नई योजना से लोग फिर से जंगल जाने के लिए प्रेरित हुए हैं। खुद ही लकड़ियां ला रहे हैं, कंडे ला रहे हैं। इनका स्टेनलेस स्टील के चूल्हे में उपयोग भी कर रहे हैं।
मित्रो, ईको फ्रैंडली लूट के कारण स्टील के चूल्हे बनाने वाले 'आत्मनिर्भर' हुए हैं और 'भारत' भी मजबूत हो रहा है। अब माताओं और बहनों को भी काफी सुविधा मिली है। अब उन्हें हर हफ्ते अपने ईंट-गारे के चूल्हे लीपने-पोतने नहीं पड़ते। इससे उनका समय और श्रम दोनों बच रहाहै। नई योजना से 'पकोड़े' तलने को विवश कई लोगों को परंपरागत रोजगार मिला है। जंगल जाने से उनकी सेहत भी ठीक रहने लगी है। पहले घर की चार सीढ़ी चढ़ने से थक जाने वाले लोग अब कई-कई किलोमीटर पैदल आ-जा पा रहे हैं। इससे उनके फेफड़े मजबूत हुए हैं। ऐसे फेफड़े ही कोरोना जैसी घातक बीमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं। इससे उन्हें ऑक्सीजन कन्सनट्रेटर में या प्लांट में बनने वाली कृत्रिम ऑक्सीजन की जरूत नहीं पड़ेगी। वे ब्लैक फंगस जैसी बीमारी से भी बच सकेंगे।
मित्रो, हम नहीं चाहते कि लोग फिर से मिट्टी के कारण धूल-धूसरित हों। इसलिए इस शब्द वाली वस्तु भी हटाने का अभियान चला रखा है। शुरुआत मिट्टी के तेल को बाजार से हटाकर की है। हम नहीं चाहते कि साइकिल से या पैदल चलने से जिनका तेल निकल रहा हो, उन्हें मिट्टी मिला तेल मिले। मिट्टी के तेल को कुछ लोग घासलेट भी कहते हैं, यह भी बदलते भारत में निम्नतम सोच का पर्याय प्रतीत होता है। इसलिए अब न तो घास होगी और ना ही कोई लेटेगा।
साथियो, विरोधी कह सकते हैं कि लकड़ी और कंडे के युग में लौटने से गरीब और मध्यमवर्गीय लोगों को बीमारियां होंगी। इस बारे में मैं कहना चाहूंगा कि हम 'सबके साथ' और 'सबके विकास' के सिद्धांत पर चलने वाले लोग हैं। डॉक्टर और उनसे जुड़ी सहायक इकाइयां भी तो इसी समाज का हिस्सा हैं। इन कोरोना वारियर्स को भी रोजगार मिलता रहे और ये भी आत्म सम्मान से जी सकें, इसलिए किसी न किसी का तो बीमार होना जरूरी है। हमारा देश त्याग और बलिदान के लिए जाना जाता है। मुझे इस बात का गर्व है कि इस मामले में भी हमारे गरीब और मध्यमवर्गीय लोग अग्रपंक्ति में खड़े नजर आएंगे।
मैं सभी से आह्वान करता हूं कि- सिर्फ अपना फायदा मद सोचिए। चूंकि आप 'लोकल' हैं इसलिए डॉक्टरों और उनसे सहयोगियों की मदद के लिए 'वोकल' बनिए। चूल्हे से किसी की आंख में खराबी होती है तो होने दीजिए, दम घुटता है तो घुटने दीजिए। आपके इलाज के लिए भी मुफ्त इलाज की योजना चल रही है। आप अस्पतालों में भर्ती होंगे तो आपका मुफ्त इलाज भी होगा और चिकित्सकीय पेशे से जुड़े लोगों की रोजी-रोटी भी चलेगी।
जिस तरह डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ने से लोगों में निजी वाहनों के उपयोग की प्रवृत्ति कम हुई है उससे सार्वजनिक परिवहन की मांग बढ़ रही है। इससे कोरोना काल में बेरोजगार हुए लोगों को रोजगार भी मिलेगा। इसी तरह गैस महंगी होने से इलेक्ट्रॉनिक चूल्हों का उपयोग भी बढ़ा है। इससे बिजली कंपनी वालों को भी काम मिलेगा और उन किसानों को भी फायदा मिलेगा जो अपने खेत में सूरज से बिजली पैदा करने वाले प्लांट लगाने के इच्छुक हैं। मित्रो, मैं आप सब से एक सवाल पूछना चाहता हूं... कि- किसानों की अमदनी दो गुनी होनी चाहिए या नहीं ? हाथ उठा कर जवाब दीजिए, कि- किसानों की आमदनी दो गुनी होनी चाहिए या नहीं ? अगर इलेक्ट्रॉनिक चूल्हे ज्यादा बिकेंगे तो बताइये पैसा कहां जाएगा...? बताइये कहां जाएगा...? अरे और कहां...? अपने व्यापारियों की जेब में। अब बताइये, कि- आप व्यापारियों का भला चाहते हैं या नहीं ?
दोस्तो, हमने गैस के अलावा पेट्रोल-डीजल का भी पूरा ध्यान रखा है। हमने उसके दाम नहीं घटने दिए। ये कम होंगे भी नहीं, क्योंकि हम जानते हैं कि इसके दूरगामी परिणाम मध्यम वर्ग से लेकर उच्च वर्ग तक को मिल रहा है और आगे भी मिलता रहेगा। पेट्रोल निकालने वाले बड़े-बड़े आका बड़ी-बड़ी मशीनें लगाकर दिन-रात एक करके आपके लिए जो डीजल-पेट्रोल निकालने का काम करते हैं, उन्हें भी तो फायदा मिलना चाहिए कि नहीं ? बताइये- मिलना चाहिए कि नहीं ? देखो, आप भी तो चाहते हैं कि उन्हें लाभ मिलना चाहिए। मैं भी यही सोचता हूं। इसलिए तो हर वह प्रयास करता हूं जिससे उन्हें लाभ मिले। सोचिए, इससे क्या सिर्फ उन्हीं का फायदा है ? अरे भाई, पेट्रोल-डीजल निकालाने, पंपों तक पहुंचाने और फिर आपकी गाड़ियों में भरने तक हर काम में मानव श्रम लगता है या नहीं। आजादी के बाद से अब तक इन कामों में लगे लोगों का सिर्फ शोषण ही होता आया है, लेकिन हमने तय किया है कि न तो हम इनका शोषण करेंगे न किसी को करने देंगे। पेट्रोल-डीजल के भाव जितने ज्यादा बढ़ेंगे, उनतनी ही आमदनी इनकी भी बढ़ेगी।
पेट्रोल - डीजल के दाम नहीं बढ़ते तो भला मालभाड़ा बढ़ता। लोडिंग-अनलोडिंग में लगे कारोबारी और कर्मचारी औने-पौने दाम में सामान परिवहन करते रहते। हमें सब्जी, फल, तेल, दाल महंगा होगा तभी तो किसानों और व्यापारियों को ज्यादा मुनाफा मिलेगा। इससे उनकी आमदनी बढ़ी है और जीवन स्तर भी सुधरा है। लोगों के थोड़े से ज्यादा पैसे देने से अगर किसी का जीवन स्तर सुधरता है तो इन विरोधियों का पेट दर्द करने लगता है। आवागमन के साधन ऑटो-टैंम्पो गरीब ही तो चलाते हैं। बताइये, क्या इनकी आर्थिक स्थिति नहीं सुधरनी चाहिए ? कुछ गरीब लोगों के लिए हवाई जहाज का ईंधन सस्ता भी रखा है। इन सबसे गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों के जीवन स्तर में सुधार आया है। हमारा प्रयास रहेगा कि हम इसे और ज्यादा, बहुत ज्यादा ऊपर तक ले जाएं।
मित्रो, हमने जो कहा था, वह कर के दिखा दिया है। हमने बेरोजगारी का भी ध्यान रखा है। सभी टीवी चैनल खासकर ओटीटी प्लेटफॉर्म वालों को समझा दिया है। उनसे कहा कि वे ज्यादा से ज्यादा ऐसी वेब सीरीज बनाएं जिसे देखने में युवा दिनभर व्यस्त रहे। हमने कुछ मोबाइल गेम भी लॉन्च करवाए हैं जो युवाओं का ध्यान बाहर आने-जाने में भटकने के बजाय मोबाइल पर ही रहेे। इसके लिए अगर थोड़ी अश्लीलता परोसनी पड़े तो भी कोई बात नहीं लेकिन इससे पेट्रोल-डीजल की तो खपत घटेगी।
कुछ विदेशी मीडिया वाले हम पर उंगली उठाते हैं। इसलिए हमने कुछ टीवी वालों को खास हिदायत दी है, खासकर चैनल वालों को कि- सप्ताह भर में दो ऐसी खबरें दिनभर जरूर चलाएं जिससे युवाओं का ध्यान पूरे समय उसी पर लगा रहे। खबर ड्रग्स से संबंधित हो, घोटालों से संबंधित हो या फिर अन्य विषय से संबंधित। कंटेंट ऐसा परोसा जाए कि युवा दिनभर उसकी ही चर्चा करें और बेरोजगारी जैसे 'गैरजरूरी' विकास में बाधक मुद्दे भूल जाए। ऐसा हो भी रहा है। हमें इसके सार्थक परिणाम मिले हैं।
हमने देखा है कि इन वेब सीरीज और मोबाइल गेम के कारण एकदम से मोबाइल डाटा की मांग बढ़ी है। हमने मोबाइल कंपनियों का भी ध्यान रखा है और फ्री इनकमिंग को बंद कर कम से कम 80 रुपए का रिचार्ज अनिवार्य करा दिया है। पश्चिमी देशों ने सिर्फ फरवरी को ही 28 का बनाया था लेकिन हमने तो पूरे 12 महीने ही 28-28 दिन के करवा दिए हैं। इसका फायदा गरीब मोबाइल कंपनियों को थोड़ी सी राहत मिली है। यह राहत और बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। जल्दी ही हमारे महीने और छोटे होंगे। हम कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की तरह 15-15 दिन के महीने निश्चित करने का काम कर रहे हैं।
मित्रो, एक बात का मुझे बहुत ज्यादा अफसोस है। हमने विपक्ष को इतना नकारा कर दिया है कि वह हमारी इन उपलब्धियों को बिल्कुल भी गिना नहीं पा रहा है और उसका काम हमारे कुछ साथी या आम जनता कर रही है। मैं उनका धन्यवाद ज्ञापित करता हूं। हमने मीडिया के लिए भी अच्छा काम किया है। लगातार उनको विज्ञापन और टीआरपी बढ़ाने वाले मुद्दे भी दिए हैं।
हमने इस बार दीपावली पर पुनः वोकल फॉर लोकल का नारा दिया है। ध्यान रखा है कि इसका फायदा सभी वर्गों को मिले। स्वदेशी का पूरा-पूरा उपयोग किया जाए, प्रचार-प्रसार किया जाए। इसके लिए हमने सभी जगह निर्देश दिए हैं कि दीपावली पर मिट्टी के दिए ही खरीदें जो कि स्वदेशी तकनीक से बनाए और पकाए गए हों। इनको ज्यादा से ज्यादा बेचा जाए। मित्रो, अब दीपावली के दीयों की बात हुई है तो खाद्य तेल की और दीयों के तेल की भी बात करनी पड़ेगी। बताइये करनी पड़ेगी कf नहीं ? करनी पड़ेगी कि नहीं ? करनी पड़ेगी कि नहीं ?
दोस्तो, हमने इसका भी ध्यान रखा है। हमने खाद्य तेल के दामों में भी इतनी वृद्धि कर दी है कि लोग दीये तो खरीदेंगे लेकिन जला नहीं पाएंगे। इसके पीछे भी हमारा एक विजन है। विश्व ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से परेशान है, हम भी चिंतित है। दीये जलेंगे तो वातावरण का तापमान और बढ़ेगा। लोगों को दीये जलाने से रोकने के लिए एक और विचार किया है। हम चैनलों व समाचार-पत्रों के माध्यम से विज्ञापन जारी करेंगे कि- यदि आप दीये जलाते हैं तो अंटार्कटिका की बर्फ पिघल सकती है। इससे पूरे विश्व को बड़ा नुकसान हो सकता है।
मित्रों, हम अभी एक योजना पर और काम कर रहे हैं, मुफ्त दीया उजाला योजना। ऐसे लोग जो अपने घरों को चाइना की इलेक्ट्रॉनिक लाइट से रोशन नहीं कर पाएंगे, उनको दीया और तेल मुफ्त देने का प्रयास करेंगे। हां, बत्ती उनको खुद खरीदना होगी, क्योंकि हम "बत्ती" तो किसी को नहीं देते। आप भी "बत्ती" देने-लेने से बचें।
...तो मित्रो, देखा आपने हमारा अर्थशास्त्र और मेरे 'मन की बात' ? दोनों ही हैं न कमाल के ? जाते-जाते एक बात अवश्य कहना चाहूंगा- सभी लोग इस दीपावली पर हर्षोल्लास के साथ मिठाई आदि जरूर खरीदें। गैस, पेट्रोल व डीजल के दाम बढ़ने के कारण ये मिठाई के दाम बढ़ा सकते हैं (हम बिल्कुल ऐसा नहीं होने देना चाहते लेकिन ये नया भारत है, विकास के लिए थोड़ा त्याग करना पड़े तो फर्क नहीं पड़ता)। इनके घर भी ज्यादा पैसा पहुंच सके, इसका भी ज्यादा से ज्यादा ध्यान रखें। इसलिए अपना भी मुंह मीठा करें और दूसरों के भी करवाएं। पुनः मिलेंगे।
- अमित निगम