नीर का तीर : ‘विवादों की विधि’ के बीच ‘अव्यवस्थाओं की शपथ’, पहले ही कानों में जूं तक नहीं रेंगती, अब आंखों में पट्टी ही बांध ली

रतलाम की नगर सरकार ने शपथ ग्रहण कर ली। शपथ ग्रहण समारोह में अव्यवस्थाओं का बोलबाला तो रहा ही, लोगों का मान-सम्मान भी हवा हो गया।

नीर का तीर : ‘विवादों की विधि’ के बीच ‘अव्यवस्थाओं की शपथ’, पहले ही कानों में जूं तक नहीं रेंगती, अब आंखों में पट्टी ही बांध ली
उल्टे तिरंगे चिपका कर शहीदों को टांग दिया टेंट की बल्लियों पर। तिरंगे का कैसा हुआ अपमान यह देखने के लिए फोटो के लाल घेरे वाले हिस्से को जूम करें...।

नीरज कुमार शुक्ला

बात रतलाम की... जनता जनार्दन ने नगर सरकार के लिए एक बार फिर ‘फूल वालों’ की सेना पर भरोसा जता दिया। हालांकि इसके सेनापतियों को ही अपनी सेना की कद्र है न ही फिक्र। जब आप अपनों के द्वारा ही अपमानित किए जा रहे हैं तो फिर सरकारी नुमाइंदों से मान-सम्मान की उम्मीद रखना बेमानी ही है। ऐसी अपेक्षा रखना तब और भी उचित नहीं जब जिम्मेदारों को शहीदों और देश की शान तिरंगे के सम्मान की ही फिक्र न हो। इसकी बानगी फूलछाप नगर सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में देखने को मिली। सीधे शब्दों में कहें तो यहां ‘विवादों की विधि (नियम)’ के बीच ‘अव्यवस्थाओं की शपथ’ हुई।

शुरुआत करते हैं राष्ट्रीय ध्वज और शहीदों से। ये दोनों ही हमारा गर्व हैं। इसके सम्मान के लिए ही कई लोगों ने अपने प्राणों आहुतियां तक दे डाली। हालांकि इसकी फिक्र नगर सरकार का शपथविधि समारोह आयोजित करने वालों को नहीं रही। जिस सभागार में आयोजन हुआ, उसकी छत पर शहीदों के पोस्टर ऐसे लटकाए दिए गए जैसे सुखाने के लिए गीले कपड़े टांग दिए जाते हैं। आजादी के अमृत महोत्सव के मौके यहां सिर्फ शहीदों का ही अपमान नहीं हुआ बल्कि उनके पोस्टर के नीचे प्रिंट किए गए राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के प्रतीक तिरंगी पट्टी के मान-सम्मान तक का भी ध्यान नहीं रखा गया। सभी पोस्टर में यह तिरंगी पट्टी उल्टी ही छाप दी गई। अब बात करते हैं आयोजन से जुड़े अन्य पहलुओं की जिन्हें आप (अ)व्यवस्था भी कह सकते हैं। आयोजन में और कहां मान-सम्मान दरकिनार हुआ इससे पहले यह जान और समझ लीजिए कि- जब जड़ों में ही गुटबाजी रूपी जहर घुला हो तो फिर पौधे में ‘शूल’ ही उगेंगे, ‘सौहार्द के फूल’ की अपेक्षा रखना तो बेमानी ही है। ऐसे में किसका, कैसा मान और कैसा सम्मान...।

पहले पैर जमीन पर नहीं थे, अब आसमान की सैर होगी

प्रदेश में ‘राज’ कर रहे ‘शिव’ एक ‘भक्त’ को ‘विजयी भव:’ का आशीर्वाद देकर ऐसे गए कि रत्नपुरी की ओर पलट कर ही नहीं देखा। भक्त के पैर तो पहले ही धरती पर नहीं पड़ते थे, अब तो ‘सिंहासन’ भी मिल गया है इसलिए अब अगर उड़ान भी आसमान तक ही सीमित रहे तो कदाचित् आश्चर्य नहीं होना चाहिए। गुप्त वार्ता तंत्र से अपुष्ट खबर मिली है कि भक्त ने किसी ‘धरती के नारद’ (संचार दूत) से यहां तक कह दिया कि- मेरा सिंहासन छोटा है। यह न तो नरों के इंद्र के सिंहासन जैसा है और न ही शिव के राज जैसा ही है। इसलिए जो कुछ भी मिला है, उसी में मौज करो। यह बात संचार दूतों में जंगल की आग की तरह फैल रही है। इससे कहीं कोई ‘आहत’ है तो कहीं किसी को ‘राहत’ भी है। इससे तय है कि आगामी दिनों में राहत पाने वाले ‘भक्त-मंडली’ को हर अवसर पर राह दिखाने और अपने नंबर बढ़वाने का प्रयास करेंगे तो आहत होने वाले ‘आह!’ दिखाने का। यह सिलसिला पंचवर्षीय योजना का रूप भी ले सकता है।

अभिषेक से पहले सिंहासन हथियाने की होड़, 'हिम्मत' के आगे घुटनों पर

नगर सरकार के ‘राज्य + अभिषेक’ को देखने ‘मान-सम्मान’ रूपी चिड़िया भी पहुंची थी जो ‘विवादों की विधि (नियम)’ के बीच ‘अव्यवस्थाओं की शपथ’ देख कहीं दूर जा बैठी। कहते हैं कि राज्याभिषेक के लिए आमंत्रण पाती तो छपी लेकिन बंटी सिर्फ अपनों को वह भी ‘अंधे की रेवड़ी’ की तरह। आम ही नहीं, कई खास के पास भी यह नहीं पहुंची। मंच पर भी कुर्सी प्रेमियों की ही भीड़ ज्यादा नजर आ रही थी। ऐसे में कुर्सी हथियाने की होड़ और तोड़-फोड़ स्वाभाविक है। यह देखकर उपेक्षा का शिकार एक खास ने तो ऐसी ‘हिम्मत’ दिखाई कि कल तक ‘नल’ और ‘जल’ का ख्वाब दिखाने वाले उनके सामने घुटनों पर आ गए और कान भी पकड़ लिए। दोनों के बीच कुछ बात भी हुई लेकिन आसपास वाले सुन नहीं। इस खास को मनाकर आयोजन स्थल पर ही रोक सके, इतनी हिम्मत वहां किसी में नजर नहीं आई।

मूछें हों तो नत्थूलाल जैसी, वरना न हों

मान-सम्मान रूपी चिड़िया के नगर सरकार के राज्याभिषेक से दूर रहने और आमंत्रण पाती में सिर्फ नाम लिखभर देने (बुलावा नहीं भेजने) से नाराज ग्रामीण इलाके के मुखिया भी ज्यादा देर चुप नहीं रह सके। उन्होंने फूल वालों के सेनापति से अपनी पीड़ा साझा कर डाली लेकिन करने के लिए सेनापति अफसोस जताने और अपनी मूछों में ताव देने से ज्यादा कुछ भी नहीं कर सके। जिसे भी इस बारे में पता चल रहा है, वह यही कह रहा है कि- ऐसी मूछें किस काम की जो किसी को मान-स्मान ही न दिला सकें। ‘मूछें हों तो नत्थूलाल जैसी’ ताकि कम से कम फिल्मों या कहीं और उदाहरण देने के तो काम आ सकें।

दल - दल में निर्दलीयों की फजीहत

जमाना दलों का है इसलिए जिनका कोई दल नहीं है उनकी फजीहत होना तय है। नगर सरकार का राज्याभिषेक भी इससे अछूता नहीं रहा। यहां भी एकदलीय व्यवस्था हावी नजर आई। नतीजतन दलों से दूर (निर्दलीय) रहकर जनता का आशीर्वाद पाने वालों के साथ भी वैसा ही व्यवहार हुआ जैसा फूल वाली सेना के खास लोगों के साथ हुआ। यह हाथ वालों ने पहले ही भांप लिया था। इसलिए उन्होंने एक दिन पहले ही बिना किसी औपचारिकता के शपथ ग्रहण कर ली।

चलते-चलते...

जवाब मांगने के लिए 20 दिन पहले तक नगर सरकार के पूर्व मुखिया को जनता-जनार्दन ढूंढ रही थी वह नई नगर सरकार के राज्याभिषेक के दौरान कुर्सी पर नजर आई तो हर कोई हैरान रह गया। लोग बोले- यह भी ईद के चांद के दीदार से कम नहीं।